उदयपुर , एक सुहानी सुबह फतह सागर की ठंडी हवा के झोके और लबालब भरा हुआ फतह सागर का पानी हवा के साथ हिचकोले खाता बादलों से अटा हुआ आसमान मानो एसा लग रहा हो जेसे किसी शायर ने अभी अभी कोई ताज़ा दिलकश ग़ज़ल लिखी हो ,और इस सारे माहोल में चार चाँद लगाते , हमारे शहर के जिम्मेदार नागरिकों द्वारा सन्डे की शाम को खा कर फेके गए भुट्टों के ठुट्टे और कोल्ड ड्रिंक की खली बोतलें चाय कोफ़ी के खाली ग्लास जो पूरी पाल पर बिखरे हुए , कुछ पानी में तैरते हुए अपनी एक अलग ही खूबसूरती बयान कर रहे थे और इस शहर के नागरिकों की छवि बिना कहे बता रहे थे | ऐसा लग रहा था मानों दुनिया की सबसे खुबसूरत कालीन में ऐसे धब्बे जो अपनों ने ही लगाये थे , पानी के हिचकोलों के साथ ये भुट्टों के ठुट्टे अपनी अलग ही कहानी कह रहे थे अगर फतह सागर की फिजा उसकी खूबसूरती का एहसास करा रही थी तो ये भुट्टों के ठुट्टे , बोतलें और खाली प्लास्टिक के ग्लास कह रहे थे के प्लीज हमें कुछ मत कहो हम तो आप ही के शहर के जिम्मेदार नागरिको द्वारा बड़ी बेरहमी से फेके हुए है | अब जनता भी बिचारी क्या करे उसको इतनी समझ कहाँ है के अगर सन्डे की शाम हमने फतह सागर किनारे सुहानी गुजारी है तो हम अपना एक छोटा सा कर्तव्य निभाए की जेसे घर में कोई चीज़ खा कर एक डस्टबीन में डालते है यहाँ भी एसा ही करे अरे भाई नगर परिषद् है न साफ़ करने के लिए फेको कहीं भी बड़ा मजा आता हे और पानी में तैरते भुट्टों के छिलके और बोतले कितनी खुबसूरत लगती है | आखिर इस खूबसूरती को बनाने में हम योगदान नहीं देगे तो कोन देगा |
बेचारे हमारे संभागीय आयुक्त हाथ जोड़ जोड़ के थक गए के इन अनमोल झीलों को संभाल के रखो इनकी सफाई में योगदान दो अब यार संभागीय आयुक्त को कोन समझाए के के सफाई तो तब होगी जब हम गन्दगी करेगे तो लो साहब अब सफाई का ठेका आप किसी को भी दो गन्दगी का ठेका तो हम उदयपुर की जनता ने ले लिया है | और हम अब मानने वाले भी नहीं है आखिर भगवान् ने हमे इतना बड़ा तोहफा बिना मांगे ही दिया है उदयपुर की झीलें लबालब भर दी है तो अब इनको गन्दा करने का हक तो हमारा बनता है न | ………………………..क्यों साहब आप क्या सोचते है