नेहा राज,..
आप किसी अच्छी कंपनी में काम कर रहे हैं, पर मन में असंतोष है कि सैलेरी अच्छी नहीं मिल रही। ऎसी स्थिति हर किसी के साथ हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि इंटरव्यू में सलेक्ट होने के बाद सैलेरी के विषय में खुलकर बात कर ली जाए। इस मुद्दे पर आपको समझदारी से काम लेना होगा।
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ज्यादातर कैंडिडेट्स को कंपनी और सैलेरी स्ट्रक्चर के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। कई बार कैंडिडेट्स कह देते हैं कि मुझे अपने पद और लेवल के मुताबिक सैलेरी नहीं दी जा रही है। पर इससे पहले आपको कंपनी के सभी पदों और तनख्वाह के बारे में जानकारी जुटा लेनी चाहिए। यह भी याद रखें कि दो फम्र्स की ग्रेड्स समान नहीं हो सकती। साथ ही यह भी पता कर लें कि कंपनी की पे-स्केल, इंक्रीमेंट पॉलिसी और बोनस की नीति क्या है? इसके बाद अपने अनुभव, योग्यता और उपलब्धियों को इन कसौटियों पर परखें। कई बार इंडस्ट्री में मिलने वाले एक्सपोजर पर भी गौर किया जाता है। इसी के अनुरूप वेतन की बात की जाती है।
घर तक कितना पहुंचेगा?
ज्यादातर युवा मैनेजर्स तनख्वाह फिक्स करवाते समय इस बात पर गौर करते हैं कि आखिर में कट-पिटकर कितने पैसे हाथ में आएंगे? वहीं कंपनियां टोटल कॉस्ट को ध्यान में रखती है। बातचीत के दौरान कैंडिडेट्स दूसरे फायदों को नजरअंदाज करते हैं, वहीं कंपनी सही टैलेंट को खोजने पर फोकस करती है। ज्यादातर कंपनियां मूल तनख्वाह में दीर्घावधि के इंसेंटिव जोड़ती है। इसके बारे में भी कैंडिडेट को ध्यान देना चाहिए। कैंडिटेट को कॉस्ट टू कंपनी के सभी पहलुओं को समझने का प्रयास करना चाहिए। इसके साथ-साथ पिछले सालों से तुलना की जा सकती है कि वैरिएबल कंपोनेंट्स के साथ कितना भुगतान किया जा रहा है।
आपको चांद भी मिल सकता है!
सैलेरी नेगोसिएशन एक कला है। कई बार समय से पहले, जरूरत से ज्यादा मांग आपकी मेहनत पर पानी फेर सकती है। आपको कंपनी की डिमांड के अनुरूप ही काम करना है। कंपनी जो काम आपको दे रही है, उसकी इंडस्ट्री में क्या वैल्यू है, यह आपको पता होनी चाहिए। इसके बाद इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि कंपनी आगे से क्या ऑफर कर रही है? कंपनी जो पैकेज ऑफर कर रही है, क्या वह इंडस्ट्री और वर्क टाइप के अनुसार नहीं हो, तो आप अपनी बात को पुरजोर तरीके से कह सकते हैं। कई बार आप इंतजार नहीं कर पाते और गलत सैलेरी की मांग के कारण ही नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। ऎसे में सही यही है कि आप दूसरे कैंडिडेट्स को मोल-भाव करने दें और अपने पत्ते छुपाकर रखें। आखिर में जितने कम कैंडिडेट्स होंगे, आपकी बात उतने ही ध्यान से सुनी जाएगी। हो सकता है कि फासला नजरों का धोखा हो और चांद आपकी पहुंच में हो।
… पर मुट्ठी खुली रखनी होगी
कई बार कैंडिडेट बदमिजाज एटिट्यूड के साथ जाते हैं और तनख्वाह में एक फिक्स इजाफे की बात करते हैं। कैंडिटेट को लगता है कि बातचीत से पहले ही अपनी शर्तो को साफ कर दें। पर यह तरीका घातक हो सकता है। बाद में कई बार कैंडिडेट के साथ यही होता है कि चौबेजी छब्बेजी तो बन नहीं पाते, बल्कि दुब्बेजी बनकर रह जाते हैं। मतलब जहां आप कंपनी के मैनेजमेंट से मिलने से पहले ही आप शर्तो को गिना रहे थे, वहीं अब कंपनी अपनी तनख्वाह पर भी आपको रखने से परहेज कर रही है। कुल मिलाकर सैलेरी नेगोसिएशन के समय ज्यादा हार्ड बनने की कोशिश फिजूल है। इससे नुकसान आपका ही होगा। हो सकता है कि आपका काम शानदार हो और इंडस्ट्री में आपकी वैल्यू ज्यादा हो, पर कई बार दाव उल्टा पड़ सकता है। इसलिए होशियारी इसी में है कि ऑफर पर सोचने के लिए समय लें और सही तर्को के आधार पर अपनी बात को रखें।
हमें कॅरियर चाहिए और पैसा भी
किसी भी शानदार कॅरियर को पैसे से तोलकर देखा जा सकता है, पर यह हमेशा याद रखें कि लालच का कोई अंत नहीं होता। कई बार सैलेरी से ज्यादा लर्निग प्रोसेस और अपाच्र्युनिटी ज्यादा मायने रखती है। जब सब कुछ बैलेंस हो, तभी पैसे की धुन रखनी चाहिए। कैंडिडेट्स को अपनी स्किल्स को इम्प्रूव करने और नए एम्प्लॉयर के अनुरूप सैट करने पर ज्यादा जोर देना चाहिए।
पैसा के साथ-साथ काम भी बढ़ेगा
जो कैंडिडेट्स सिर्फ ज्यादा से ज्यादा सैलेरी के बारे में सोचते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि पैसे के साथ उन पर ज्यादा जिम्मेदारियां और ज्यादा टारगेट्स लादे जाने वाले हैं। अगर आप प्लेसमेंट कंसल्टेंट के संपर्क में हैं, तो खुद को राजा समझने की भूल न करें। आपको लचीला रूख भी अपनाना होगा। अगर काम करने का माद्दा और जुनून है, तो सैलेरी की मांग रखें, पर काम के लिए तैयार भी रहें।