कोटा से सीकर के लिए दुल्हन और उसके रिश्तेदारों से भरी दो स्लीपर कोच बसें जयपुर होकर गुजर रही थीं। टोंक रोड बी-2 बाईपास चौराहे पर शुक्रवार तड़के ट्रक ने एक बस को टक्कर मार दी। बस अनियंत्रित होने के बाद डिवाइडर पर चढ़कर पलट गई। हादसे में दुल्हन के मौसा मोठपुर (बारां) निवासी धनराज गर्ग (40) की मौत हो गई और सात रिश्तेदार गंभीर रूप से घायल हो गए। सभी घायलों को सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती कराया गया है। दूल्हा और दुल्हन दोनों पेशे से डॉक्टर हैं। दुल्हन ने अस्पताल में भी अपने रिश्तेदारों का इलाज किया, फिर शादी के लिए सीकर रवाना हुई।
दुल्हन के रिश्तेदारों के मुताबिक- कोटा में हलवाई का काम करने वाले नारायण लाल की बेटी गरिमा गर्ग की शादी शुक्रवार को नीम का थाना (सीकर) में होनी थी। लड़की वाले गुरुवार रात 11 बजे दो बसों से कोटा से रवाना हुए। शुक्रवार सुबह 4:45 बजे पीछे चल रही बस को बी-2 बाईपास चौराहा पर तेज रफ्तार ट्रक ने ट्रैफिक सिग्नल तोड़ते हुए टक्कर मार दी। बस लहराते हुए डिवाइडर पर जा चढ़ी और पलट गई। हादसे के बाद ट्रक मौके पर छोड़ ड्राइवर भाग गया। ट्रक भरतपुर नंबर का है। राहगीरों व अन्य वाहन चालकों ने बस में फंसे लोगों को बाहर निकाला और पुलिस को सूचना दी। घायलों को एसएमएस और जेएलएन मार्ग स्थित निजी हॉस्पिटल में ले गए। निजी हॉस्पिटल में गरिमा के मौसा धनराज गर्ग ने दम तोड़ दिया।
घायल अनिल ने बताया कि कोटा से बस को चलाकर लाए ड्राइवर ने निवाई में बस दूसरे ड्राइवर को सौंप दी। वह बस चलाते वक्त मोबाइल पर बात कर रहा था। इसीलिए ट्रक की टक्कर के बाद बस को संभाल नहीं पाया। इस बस में करीब 40 लोग बैठे हुए थे। हादसे के बाद पलटी हुई बस। लाड़ली के ब्याह में नहीं जा सकी नानी जानकीबाई। मामा सत्यनारायण बंसल, मौसा अनिल अग्रवाल, मौसी रेखा अग्रवाल, कोटा निवासी रिश्तेदार नरेन्द्र कुमार, हिमांशु और पूरणमल गुप्ता भी सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती हैं।
परिजन दुल्हन से शादी के लिए जाने की मिन्नतें कर रहे थे, वो जख्मों पर टांके लगा रही थी
उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज में पीजी कर रही कोटा की गरिमा कुछ घंटों बाद दुल्हन बनने वाली थी। वह रिश्तेदारों के साथ बस में बैठकर नीम का थाना जा रही थी, जहां उसकी शादी होने वाली है। उसकी बस के पीछे चल रही रिश्तेदारों की बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। खुशियों के गीतों की जगह चीख-चिल्लाहट थी। हंसी की फुहारों की जगह आंसुओं ने ले ली। ऐसे में गरिमा ने हौसला रखा। वह रिश्तेदारों का दर्द कम करने में जुट गई। उसने एसएमएस हॉस्पिटल में भर्ती अपने रिश्तेदारों का इलाज किया। जख्मों पर टांके व मरहम लगाए। उसके हाथों में मेहंदी रची थी।
कुछ समय पहले तक मंगल गीत गा रही नानी, मामा, मौसा-मौसी और भाई अस्पताल में खून से लथपथ कराह रहे थे। उन्हें संभाल रहे अन्य रिश्तेदार कह रहे थे- गरिमा को शादी के लिए रवाना करो। इन्हें हम संभाल लेंगे। …लेकिन गरिमा नहीं मानी। उसने स्टेथेस्कोप पकड़ा। परिजनों के लाख समझाने के बाद भी उसने करीब ढाई घंटे तक अस्पताल में एक जिम्मेदार डॉक्टर और रिश्तेदारों की लाड़ली बेटी की तरह सेवा की।
घायलों को टांके लगाने के लिए गरिमा ने नर्सिंग स्टाफ से सामान मांगा। इस पर स्टाफ ने स्वयं उपचार करने के लिए कहा। जब गरिमा ने बताया कि वे उदयपुर मेडिकल कॉलेज से पीजी कर रही हैं और उनके पति एसएमएस अस्पताल में ही गायनीकोलॉजी के डॉक्टर हैं तो उन्हें टांके लगाने दिए गए। ऐसे गमगीन माहौल में उनके जज्बे की हॉस्पिटल के स्टाफ ने तारीफ की।