उदयपुर। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र एवं राजस्थान उर्दू अकादमी की ओर से आयोजित ‘‘अखिल भारतीय मुशायरा’’ में देश के लब्ध प्रतिष्ठित शायरों ने अपनी गज़लों, नज़्मों से दर्शकों का दिल जीत लिया। इनमें जाने माने शायर राहत इंदौरी, लता हया, शीन काफ निजाम तथा अज़्म शाकिरी ने अपने कलामों से खवातिनो हज़रात का दिल जीत लिया।
शिल्पग्राम के मुक्ताकाशी रंगमंच पर आयोजित मुशायरे का आगाज़ शकील अहमद शकील से हुआ। जिन्होंने खूबसूरती से अपने शेरों से दर्शकों की दाद बटोरी। ‘‘अब कौन है जो अपना आकर हमें कह ेअब किससे जाकर हें टूट रहे हैं…’’ इसके बाद उनहोंने एक नज़्म ‘‘ये जो वक्त का तुम अदब कर रहे हो करना था पहले अब कर रहे हो…’’ सुना कर वाहवाही लूटी। मशहूर शायर राहत इंदौरी देर रात मंच पर आए और एक से बढ़कर एक मुशायरे पढ़े। रोज इन ताजा कसीदों की जरूरत नहीं, आप ताे इतना बता दिजिए जरूरत क्या है। हम अपनी जान के दुश्मन को जान कहते हैं, मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं। जो दुनिया में सुनाई दे उसे खामोशी कहते है, जो आंखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते हैंं आदि मुशायरे पढ़े।
मुशायरे में सबसे ज्यादा दाद रश्मि सबा ने बटोरी। अपने दिलकश अंदाज में उन्होंने एक एक कर शेर सुनाये तो दर्शक बंध से गये। ‘‘वो समंदर की तरह शोर मचाने से रही, जबकि सीने में नदी कितने भंवर रखती हैं…’’ सुनाई। इसके बाद एक और शेर ‘‘सिर्फ एक रात है जो ऐसा हूनर रखती है आसमानों में सजा कर वो गुहर रखती है..’ पे वाहवाही लूटी। महफिल की निजामत करने वाले शकील अहमद शकील ई इसके बाद श्रोताआंे की मांग पर उन्हें दोबारा बुलाया। तो उन्होने चंद शेर और सुना कर महफिल को आनन्दमय बना दिया।
भोपाल के मेहताब आलम ने इस मौके पर अपनी नज़्म ‘फूलों में झलक हुस्ने यार की निकली, हम खुश हैं कोई शक्ल तो दीदार की निकली..’ इसके बाद उन्होंने एक और शेर ‘‘ जिनकी लकों पे तेरे ख्वाब होते हैं लि भी तोड़़ते है तो सलीके से ना तोड़ा तू ने बेवफाई की भी आदाब हुआ करते हैं ’’ पेश किया। टोंक के जिया टोंकी ने इस अवसर पर ‘‘मुझे यारा ऐसी अदा बख्श दे जिसे देख कर तू ख़ता बख्श दे…’’ सजा और जज़ा उसके बस में है, ना जाने वो क्या बख्श दे सुना कर दर्शकों पर अपने कलाम का जादू सा कर दिया। इसके बाद टोंकी ने एक गज़ल ‘‘ इश्क की कायनात कुछ भी न थी, दिल का झगड़ा था बात कुछ भी न थी’’ सुना कर तालियां बटोरी।
मुंबई की सुहाना नाज़ ने महफिल में ‘‘मैं हया बेंच दू ऐसी नाचीज नहीं हां गरीबी फिक्र है कोई बीमारी नहीं, सूद के लुक्मे से अच्छा भूख मुझको मार दे जिन्दगी प्यारी भी है कुछ प्यार दे’’ सुनाई तो दर्शकों ने इरशाद इरशादर हौसला अफजाई की। इसके बाद उन्होंने एक और शेर ‘‘ ख्वाहिशें क्यू खत्म नीं होती मेरी उलझन भी कम नहीं होती सुना कर दाद बटोरी। रूड़़की के सिकंदर हयात गड़बड़ ने तंजो मिजा के शेर सुना कर माहौल को हल्का बनाय। उन्होंने ‘‘मुझपे तोहमत अहले फन यूे भी सुबहो शाम है, आलम फितनागरी में मेरा अव्व्ल नाम है’’ सुना दर्शकों को लुभाया। इसके बाद सिकंदर हयात ने एक और शेर सुना कर लोगों को हंसाया ‘‘बड़ी मगरूर लगती है बड़ी बेदर्द लग रही थी, वो जब गुस्सेमें आती है मर्द लग रही थी। जयपुर के खालिद जयपुरी ने इस अवसर पर ‘‘हाल अच्छा है उनको बताना पड़ा, दर्द होते हुए मुस्कुराना पड़ा सुना कर दाद लूटी। शाहिस्ता साना ने महफिल में ‘‘बड़ी अनमोल निशानी की तरह रखा है तेरा गम आंख में पानी की तरह रखा है, कोई भी पढ़ ना सके इसलिये उसने मुझको अधूरी सी कहानी की तरह रखा’’ नज़्म सुनाई।
उउदयपुर के शायर फारूख बख्शी ने मुशायरे में अपने मुख्तलिस अंदाज में ‘‘खामोशी को पिघलना चाहिये था कोई हल तो निकलना चाहिये था सुनाई इसके बाद उन्होंने ग्लोबलाइजेशन पर गांव की चैपाल से जुड़ी नज्म सुना कर दर्शकां के दिल को दॅ सा लिया। उदयपुर के ही शादि अजीज ने इस अवसर पर ‘‘बरबाद कैसे हो गई जागीर देखना, दुनियां में इश्क वालों की तकदीर देखना…’ सुना कर दाद बटोरी। मुशायरे में हर दिल अजीज शायर अज़्म शाकिरी के शेरो पर दर्शक सबसे ज्यादा फिदा हुए। दिल को दॅ लेने वाली इनकी शारी में ‘‘ हौंसला भी नहीं है जीने का, और जीने की आरजू रखता है’’, अब जख़़्मों में ताब नहीं है, अब क्यों मरहम लाये हो..’’ सुना रक दर्शकों में जोश संचार किया।
इसके अलावा लता हया, मलका नसीम, मोहाना नाज, अतीक अनवर, राहत इंदौरी, शीन काफ़ निजाम जेसे शायरों का सुनने के लिये दर्शक देर रात तक जमंे रहे। इससे पूर्व मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति जे.पी. शर्मा, राजस्थान उर्दू अकामी के अध्यक्ष अशरफ अली, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक फुरकान खान ने इल्मों अदब की शमा को रोशन कर महफिल का आगाज़ किया तथा फरकान खान ने अतिथि शायरों को पुष्प् गुच्छ व स्मृति चिन्ह भेंट किये।