उदयपुर. यह नजारा है चित्रकूट नगर की पहाडिय़ों के बीच मार्बल स्लरी डंपिग यार्ड का। कभी इस पहाड़ी के बरसाती नाले पास के रूपसागर को भरा करते थे। वर्ष 2006 में माार्बल स्लरी की डंपिंग क्या शुरू हुई, तलहटी में स्लरी की झील-सी बन गई। नतीजा यह कि बरसाती नाले खत्म हो गए और रूपसागर तक इनका पानी नहीं पहुंचता। स्लरी और केमिकल से इस तलहटी की वनस्पति भी खत्म हो रही है। विश्व पृथ्वी दिवस मंगलवार को है और इसे मनाने का संदर्भ भी यही है कि पृथ्वी और पर्यावरण को औद्योगिक गतिविधियों से हो रहे नुकसान से बचाया जाए। उदयपुर में भी स्लरी डंपिंग जैसी गतिविधियों पर नियंत्रण या समुचित प्रबंधन की जरूरत है।
बढ़ते प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग (जल वायु परिवर्तन) बढ़ी। इसे पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा संकट माना जाने लगा और विश्व स्तर पर चिंता बढ़ गई। इससे उबरने के लिए 22 अप्रैल 1970 को विश्व पृथ्वी दिवस मनाने की पहल हुई। मकसद था-लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना। अमेरिकी सीनेटर गेराल्ड नेल्सन ने पर्यावरण शिक्षा के रूप में इसकी शुरुआत की थी, जो 1990 तक पूरे विश्व में फैल गया। संयुक्त राष्ट्र ने भी 2009 में 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी।