उदयपुर – आई आई टी व आई आई एम सहित ऐसे संस्थानों जहां प्रवेशित होने वाले विद्यार्थी उच्च प्रतिशत अंक प्राप्त एवं प्रतिभाशाली होते हैं ,ऐसे उच्च संस्थानों के शिक्षकों के पास विद्यार्थियों के साथ प्रयोग करने के अवसर नहीं होते हैं। उनकी सामाजिक जिम्मेदारी भी अप्रत्यक्ष व तुलनात्मक रूप से कम हो जाती है। असली चुनौती तो उन शिक्षकों के समक्ष है जिन्हें पिछड़े, ग्रामीण व जनजाति समुदायों के विद्यार्थियों के साथ कार्य करना होता है, पर इन्हीं शिक्षकों के पास प्रदर्शन व प्रयोग के बहुआयामी अवसर होते हैं। यह विचार शिक्षाविद् डा. अरूण चतुर्वेदी ने नाईटर , भारत सरकार चण्डीगढ़ की ओर से विद्या भवन पॉलिटेक्निक में आयोजित ”पाठ्यक्रम, निर्माण, क्रियान्वयन व मूल्यांकन“ विषयक कार्यशाला के समापन समारोह में व्यक्त किये।
चतुर्वेदी ने कहा कि तकनीकी शिक्षकों को अपनी रचनाशीलता व सृजनशीलता को निरन्तर बनाये रखना चाहिए। राजकीय महिला पॉलिटेक्निक के प्राचार्य सैयद इरशाद अली ने कहा कि शिक्षकों व विद्यार्थियों को पुस्तकालय जाने एवं निरन्तर पढ़ते रहने की आदत को बनाये रखना चाहिए।
प्राचार्य अनिल मेहता ने बताया कि पांच दिवसीय कार्यशाला में डा. सुनील दत ने कार्य विश्लेषण, डा. ए.बी. गुप्ता ने पाठ्यक्रम क्रियान्वयन के प्रभावी तरीके ,डा. जयन्ती दता ने स्पष्ट सोचने को सीखना, सुदीति जिन्दल ने व्यक्तित्व विकास एवं संप्रेषण, पो. वी.पी. पुरी ने संसाधन प्रबन्धन, डा. एस.पी. बेदी ने विद्यार्थी आंकलन, प्रो. एस.के. भट्टाचार्य एवं अमरदेव सिंह ने उद्योग आधारित पाठ्यक्रम एवं उद्यमिता, प्रो. पी.के. सिंगला ने प्रोजेक्ट कार्य, रिपोर्ट लेखन पर व्याख्यान दिए।