उदयपुर। लोकतंत्र में अनपढ़ भी शिक्षामंत्री हो सकता है यह कटाक्ष भारतीय संस्कृति और साहित्य के उद्भट विद्वान डॉ. कर्णसिंह ने आज यहां राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के सप्तम दीक्षांत समारोह को मुख्य अतिथि पद से संबोधित करते हुए किया। उन्होंने तुरंत यह सफाई भी दी कि क्रक्रमैं वर्तमान में जो है, उनके लिए नहीं कह रहा। यह एक सत्य है।ञ्जञ्ज
डॉ. कर्णसिंह ने उपाधि धारण करने वालों से शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम करने, बौद्धिक दृष्टि से बलवान बनने के लिए नई-नई विद्याओं को सीखने, नशीले पदार्थों से दूर रहने तथा जीवन में सामुहिकता को अपनाकर नये भारत का निर्माण करने में जुट जाने का आह्वान किया।
डॉ. कर्णसिंह ने एक लोकोक्ति के जरिए ताश के प्रत्येक पत्ते से संस्कृति के प्रतीकों को बताते हुए शिक्षामंत्री को क्रजोकरञ्ज निरूपित किया, तो सभागार में हंसी के फव्वारे छूट पड़े।
उन्होंने पं. जनार्दनराय नागर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए डॉ. दौलतसिंह कोठारी और मोहनसिंह मेहता परिवार का भी देश के विकास में आभार माना। उन्होंने विद्यापीठ को कठिनाइयों से उबार कर फिर से खड़ा करने के लिए कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत एवं सभी कार्यकर्ताओं को बधाई दी। समारोह में डॉ. कर्णसिंह को विद्यावारिधि की उपाधि प्रदान की गई। इससे पूर्व विशिष्ठ अतिथि राज्यसभा सदस्य बीपी त्रिपाठी ने डॉ. कर्णसिंह को दार्शनिक राजा बताते हुए उनकी साहित्यक सेवाओं की प्रशंसा की। उन्होंने गुरु की प्रतिष्ठा को पुन: प्रतिष्ठित करने पर भी जोर दिया। समारोह का संचालन रजिस्ट्रार डॉ. सीपी अग्रवाल ने किया, जबकि अध्यक्षता चांसलर एचसी पारख ने की।
लोकतंत्र में अनपढ़ भी शिक्षामंत्री हो सकता है: डॉ. कर्णसिंह
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