राजस्थान में व्यक्ति गत करिशमा और राजनैतिक संगठन के बीच सर्वोच्चता की लडाई चल रही है जहां भाजपा सरकार के पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने उदयपुर जिले में गागुंदा से जनसम्पर्क यात्रा आरंभ कर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सीधी चुनौती दी है।
इस वर्ष मई में पहले कटारिया को अपनी लोक जागरण यात्रा राजे की धमकी के बाद स्थतगित करनी पडी थी, राजे ने जिन्होंने राष्ट्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाया था। अपने पूर्व गृहमंत्री को राजी करने के लिये कि वो अपने मिशन से दूर रहें। राजे इसे अपने नेतृत्व को चुनौती मान रही थीं।
नई दिल्ली और जयपुर दोनों जगह यह पूछा जा रहा है कि तब से अब तक ऐसा क्या हुआ कि कटारिया में यात्रा आरंभ करने का साहस आ गया। संभावित उत्तर ये दिए जा रहे हैं कि गुजरात को जीता जा चुका है और अब पडौसी राज्य राजस्थान की बारी है जिसे भाजपा को राज्य के साथ केन्द्र में भी सत्ता में वापस लाना है।
इस प्रश्न का दूसरा जवाब है कि यदि इस मुद्दे को लटके रहने दिया जाता है, तो सामूहिक नेतृत्व अथवा एक व्यक्ति की सर्वोच्चता का मुद्दा पार्टी की विश्वसनीयता को कमजोर करेगा, जिसकी वैचारिक रूप से यह मान्यता रही है कि संगठन व्यक्ति से ऊपर है तथा राष्ट्रीय हित पार्टी से भी सर्वोपरि होता है।
एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह मैसेज पार्टी में हर एक को जाना चाहिये, चाहे वो साधारण कार्यकर्ता हों या राजसी पृष्ठ भूमि से, कि सामान्यतया संघ और विशेष रूप से पार्टी ऐसी स्थिति नहीं आने देना चाहती कि कोई एक व्यक्ति पार्टी पर हुकुम चलाये। उन्होंने आगे जोडा कि संघ अफसोस करता है कि उसने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस स्तर तक बढने दिया कि आज वे किसी की भी परवाह नहीं करते।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि कटारिया को इस बार न केवल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मूक समर्थन है बल्कि राष्ट्रीय नेतृत्व के वर्ग का समर्थन प्राप्त है, जो पूर्व मुख्यमंत्री के ’निरंकुश’ रवैये से नाराज है। उनका कहना है कि राजे सत्ता का सुख भोगना चाहती है, उसके लिये ’खून-पसीना’ बहाये बिना।
एक वरिष्ठ नेता ने इस संवाददाता को बताया कि ’’ वे जयपुर आकर आगे से (प्रं*ट से) नेतृत्व नहीं करना चाहती, पर धौलपुर में अपने महल में बैठकर पार्टी पर रिमोट कंट्रोल करना चाहती है।’’ वे गत सप्ताह जयपुर में कोर कमेटी की मीटिंग तक में शामिल नहीं हुई, जिसे संघ तथा राष्ट्रीय नेतृत्व उनका अपनी ’एक्सकलूजिविटी’ (विशिष्ठता) दर्शाने का प्रयास मानना है।
जहां राज्य के नेताओं ने जयपुर मीटिंग में उनकी अनुपस्थिति पर टिप्पणी नहीं की थी, कटारिया ने जरूर कहा था,’’ यह बेहतर होता यदि राजे ने अपना फीडबैक अभियान जयपुर में किया होता।’’
केन्द्रीय नेतृत्व ’देखों और ’इंतजार करों’ का खेल खेल रहा है और उसने कटारियों को मेवाड क्षैत्र में अपनी जनसम्पर्क यात्रा शुरू करने के लिये गोपनीय स्वीकृति दी है। यह क्षैत्र भीलवाडा जिले के साथ, राज्य विधानसभा में 36 विधायक भेजता है।
केन्द्रीय नेतृत्व को राजस्थान के महत्व का भी अहसास है, क्योंकि यहां से 25 लोकसभा सांसद चुने जाते हैं और 2014 के आम चुनावों के बाद यह राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। राजनीति के भविष्य वक्ताओं का यह मानना है कि राज्य में कांग्रेस के खिलाफ हवा हि रही है तथा अशोक गहलोत सरकार के फीके प्रदर्शन ने 2013 के विधानसभा चुनावों में भजपा की वापसी के लिये जमीन तैयार की है। एक भाजपा नेता ने दिल्ली में कहा कि कटारिया कार्यकर्ताओं से निकले हैं तथा उनका राज्य की, विशेषकर उदयपुर क्षेत्र की जनता से सीधा जुडाव है, और उन्हें एक जन नेता के रूप में उभारा जा सकता है व वे विधानसभा चुनाव में विजय के लिये पार्टी का नेतृत्व कर सकते है। उनका मानना है कि राजे के झांसे(ब्लफ) को निपटाना होगा, वरना बहुत देर हो जायेगी। राजे राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं। यह राज्य विचारों में तथा शासन की स्टाइल में सामन्तवादी रहा है। राजे ने शासन में रहते समय राज्य के संघ कार्यकर्ताओं पर ध्यान नहीं दिया बल्कि उनकी अनदेखी की।
वे अपने आपकों ’राजसी’ मानती है, जिसका अधिकार है शासन करना। भाजपा इस ’राजसी करिश्में’ का लाभ तो लेना चाहती है पर यह ’राजसी व्यवहार’ स्थानीय नेताओं की नाराजगी बढाता है, क्योंकि उनका मानना है कि यह उनकी कडी मेहनत थी जिससे भाजपा इस स्थिति(स्तर) तक पहुंची। राज्य एक नेता ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर यह बात कही।
राजे और पार्टी के बीच संघर्ष आने वाले सप्ताहों और महीनों में और तीप होगा। इसका पहला संकेत था राज्य के वरिष्ठ नेता रामदास अग्रवाल का मंगलवार को यह कहना कि पार्टी किसी एक नेता का पर्याय नहीं है।
उनहोंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी और एल के आडवाणी जैसे महान नेताओं ने कभी ऐसे कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन नहीं दिया जो कहते थे कि पार्टी ’ ऐ (अटलबिहारी) से शुरू होकर ’ए’ आडवाणी पर समाप्त होती है, पर इन दिनों हम सुनते हैं कि पार्टी ’वी’ से शुरू होकर ’वी’ पर समाप्त होती है। वसुंधरा का नाम लिये बिना उन्होंने कहा कि यह प्रवृत्ति खतरनाक है।
अग्रवाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा,’’ राजस्थान में पार्टी ’ ए बी सी डी’ से नहीं चलती बल्कि विचारधारा से चलती है। पार्टी किन्हीं विशिष्ट नेताओं तक सीमित नहीं है तथा कार्यकर्ताओं को समझना चाहिये।’’ वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस के अवसर पर पार्टी कार्यकर्ताओं को सम्बोधित कर रहे थे। पार्टी ने यह दिवस सुशासन दिवस के रूप में मनाया है।
aap ka pura samachar padha ,ye vastvikta h,ki sangtan ek vayakti se nahi chaklta h,santhan ak juthta se chalta h,katariya g ne sangatan hit m yatra cansal k,ab sangthan hit m hi praramb kar rahe h.