14वां उम्मेदमल लोढा पर्यावरण पुरस्कार वितरण समारोह
उदयपुर, आदमी में किसी भी चुनौती पर फतह पाने के लिए विश्वास और जज्बे का समावेश हो तो मुकाम पर सहजता से पहुंचा जा सकता है। यही कार्य स्वयं के बजाय सामूहिक रूप से संपादित किया जाए तो सफलता की अनुभूति का अहसास कुछ और ही तरह का होता है। कुछ इस तरह का सार मंगलवार को सेवा मन्दिर एवं उम्मेदमल लोढा मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 14 वें उम्मेदमल लोढा पर्यावरण पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान वक्ताओं के संबोधन में उभर कर सामने आये। समारोह में पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं, व्यक्तियों, समूहों को विभिन्न श्रेणी के पुरस्कारों से नवाजा गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं वक्ता भारतीय सांख्यिकीय संस्थान नई दिल्ली के प्रो. ईश्वरन सोमनाथन् ने कहा कि वे पिछले दो वर्ष से सेवा मंदिर की और से वन सुरक्षा को लेकर चलाए जा रहे कार्यक्रम से जुडे हुए है। अभी उदयपुर जिले की झाडोल तहसील क्षेत्र में २००६ वनाधिकार कानून के प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है। अध्ययन के दौरान इस बात की जानकारी ली जा रही है कि जहां की भूमि पर खेती नहीं होती है वहां के इर्दगिर्द के जंगलों की स्थिति क्या है और जहां खेती की जाती है और उसके आसपास जंगल है तो क्या परिस्थितियां बन रही है। अभी अध्ययन शुरू हुआ है। इसके निष्कर्ष के संबंध में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
प्रो. सोमनाथन ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से नेपाल एवं उत्तराखंड के कुमायूं मण्डल में पर्यावरण एवं वनों से जुडे हुए मुद्दों पर उनके द्वारा किए गए गहन अध्ययन की जानकारी दी और कहा कि नेपाल में वर्ष १९५० में राष्ट्रीयकरण किया गया था तभी से वनों की कटाई ज्यादा होने लगी। हालांकि वर्ष १९८८ में इस देश में नई वन नीति को लागू किया गया। इसके पीछे इस देश की सरकार का यही मानना था कि इस कदम से वनों को सुरक्षित रखने में यह नीति कारगर साबित होगी। भारत की अपेक्षा नेपाल में वनों के प्रति सामुदायिक स्वायत्तता ज्यादा है। ऐसा अध्ययन के निष्कर्ष में सामने आया है।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए सेवा मन्दिर संस्था अध्यक्ष अजयसिंह मेहता ने कहा कि अभ्यास और अनुभव के माध्यम से हर क्षेत्र में अपेक्षा से ज्यादा कार्य की क्रियान्विति की जा सकती है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से देश में जहां विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ तो कई प्रकार की विकृतियों का भी जन्म हुआ है।
दीप प्रज्जवलन के साथ शुरू हुए इस समारोह के प्रारंभ में सेवा मन्दिर की मुख्य संचालक प्रियंका सिंह ने आगन्तुक अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि गांव के साधारण लोगों ने अपने प्राकृतिक संसाधनों का अहिंसात्मक तरीके से संरक्षण किया है। अनेकों कठिनाइयों एवं गरीबी के बावजूद निजी लालच को त्याग सार्वजनिक हित में काम करने का प्रयास किया है। अब समाज को उनके सहयोग में आने की आवश्यकता है।
प्रियंकासिंह ने बताया कि समारोह में ग्राम समूह बेड तथा गिर्वा प्रखण्ड को १०-१० हजार रूपये नगद, शॉल एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर समूह श्रेणी पुरस्कार दिया गया। साथ ही वन सुरक्षा एवं प्रबन्ध समिति- पीपलवास, प्रखण्ड गिर्वा तथा व्यक्तिगत श्रेणी के पुरस्कार में प्रखण्ड कोटडा के मणिशंकर तराल, प्रखण्ड गिर्वा की शान्तादेवी झाबला, प्रखण्ड झाडोल के सोनीराम गरासिया, प्रखण्ड गिर्वा के मावाराम को प्रदान किया गया। सभी को २००० रूपये नगद, शॉल एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। सायर कंवर लोढा छात्रवृत्ति के रूप में १२ हजार रूपए की राशि प्रखण्ड झाडोल के जामुन गांव की अलका कुमारी को प्रदान की गई। इसी तरह द्वितीय छात्रवृति पलेसर कोटडा की इंद्राकुमारी को दी गई।
शांति मार्च निकाल सौंपा ज्ञापन : सेवा मन्दिर एवं वन उत्थान संघ झाडोल के संयुक्त तत्वावधान में अपरान्ह ३ बजे शान्ति मार्च किया गया। इसका उद्देश्य वन अधिकार कानून २००६ के तहत् सामुदायिक वन अधिकार पर सरकार एवं समाज का ध्यान आकर्षित करना था। यह शान्ति मार्च विद्याभवन आडिटोरियम डॉ मोहन सिंह मेहता मार्ग से आरंभ होकर, खारोल कॉलोनी, फतेहपुरा पुलिस चौकी, सहेली मार्ग होते हुए जनजाति आयुक्त कार्यालय पहुंचा जहां आयुक्त को ज्ञापन दिया गया। इस शान्ति मार्च में लगभग ३०० ग्रामीणों सहित स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।