डिंगल साहित्य में इतिहास संस्कृति का भण्डार, जरूरत है पाण्डुलिपियों केे प्रकाशन की —- डॉ. आईदान सिंह
उदयपुर , सुप्रसिद्ध कवि, आलोचक डॉ0 आईदान सिंह भाटी ने कहा कि डिंगल साहित्य करूणा की कोख से पैदा हुआ रचना धर्म है इसलिये सदियों से जिन्दा हैं । इसी साहित्य ने वीर प्रसुता भूमि राजस्थान की आन बान व शान को दुनिया के कोने कोने तक पहुॅचाया हैं । डॉ. भाटी बुधवार को जनार्दन राय नागर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कवि राव मोहन सिंह स्मृति व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे । उन्होनंे कहा कि डिंगल साहित्य मानव अधिकारों का साहित्य हैं । जिसमें हमारी लोक संस्कृति एवं विश्वास के दीप जगमगा रहे है । समारोह की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत ने कहा कि हमें आधुनिकता के इस दौर में अपने जडों की ओर लौटना होगा। तब ही हम कविराम मोहन सिंह को सच्ची श्रद्धांजली दे सकेंगे। उन्होनंे कहा कि विश्वविद्यालय में कविराव मोहन सिंह के साहित्य पर शोध, अनुसंधान व प्रकाशन की विभिन्न योजनाओं पर कार्य कर रहा हैं जिसकी वेबसाईट भी शीघ्र बना दी जायेगी।
कवि, गीतकार, सत्यदेव संवितेन्द्र ने कहा कि अपने समय को रचते हुए कविराव मोहन सिंह ने साहित्य जगत को अपना सर्वश्रेष्ठ दिया जो आज हमारी धरोहर है । वरिष्ठ साहित्यकार किशन दाधीच ने कहा कि कविता ने सहिष्णुता की विधा को रचा है और जीवन को जीवन्त बनाया हैं जिसे मौजुदा राजनीति का कोई मुखौटा तोड नहीं पाएगा । हमारे महान कवियिों का बलिदान व्यर्थ नही जाएगा।
प्रारम्भ में प्रो. ज्ञानमल मेहता व डॉ. कुलशेखर व्यास ने अतिथियों का स्वोगत किया ं कार्यक्रम का संचालन कविराव मोहन सिंह पीठ के अध्यक्ष उग्रसेन राव ने किया ।