उदयपुर , एम पी यू ए टी में कृषि अर्थशास्त्र विभाग एवं भारतीय कृषि विपणन समिति (आई एस ए एम, हैदराबाद) के साझा प्रयास से आयोजित तीन दिवसीय कृषि विपणन सम्मेलन का समापन शुक्रवार को अनुसंधान निदेशालय में संपन्न हुआ। सम्मेलन के समापन सत्र की अध्यक्षता आई एस ए एम के अध्यक्ष प्रो. आर राधाकृष्णन ने की। इस अवसर पर, अर्थशास्त्र विभागाघ्यक्ष तथा सम्मेलन के आयोजन सचिव डॉ. एस एस बुरड़क, सोसाइटी के सचिव डॉ टी सत्यनारायणन, जाने माने अर्थशास्त्री – कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ एस एस आचार्य, जे एन यू की एमिरिटस प्रो.शीला भल्ला सहित अनेक कृषि अर्थशास्त्र विशेषज्ञ उपस्थित थे।
प्रो. आर राधाकृष्णन ने सम्मेलन के आयोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कृषि विपणन के क्षेत्र में उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों के हितों में संतुलन बनाते हुुए मूल्य सुधरों को लागु किये जाने की आवश्यकता है ।
समापन सत्र के तीनों थीम एरिया पर आयोजित तकनीकि सत्रों के अध्यक्षों ने अपनी तकनीकि रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी।जिस पर सभी विशेषज्ञांें ने गहन मंथन किया। इस प्रकार तीन दिवसीय कृषि विपणन के राष्ट्रीय सम्मेलन में निम्न अनुशंषाऐं दी गयी ।
1. सम्मेलन के प्रथम थीम क्षेत्र का विषय दलहन, तिलहन, उद्यानिकी व रेशे वाली फसलों के विपणन में राज्यों की भूमिका पर केंद्रित रहा। इस दौरान शोध पत्रों के माध्यम से निम्न अनुशंषाऐं उभर कर आईः-
1.कृषि उत्पादों के विपणन में बाजार नियंत्रण को ब्लाक स्तर तक बढाने की अवश्यकता।
2. कृषि के क्षेत्र में सहकारी संस्थाओं की अधिकाधिक भागीदारी सुनिश्चित की जाऐं जिससे उत्पादों की विपणन लागत को धटाया जा सकें।
3. कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन हेतु अधिकाधिक उद्योगों की स्थापना के प्रयास किए जाएंे।
4. कृषि उत्पादों के विपणन हेतु मोबाइल बाजार की सम्भावनाऐं तलाशी जाएंे जिससे कृषक के खेत से सीधे उपभोक्ता के द्वार तक ताजे व उच्च गुणवत्ता के उत्पाद पहुँचाएंे जा सकें।
5. दलहनों के लिये बफर स्टाक बनाया जाय तथा समर्थन मूल्यों का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए।
6. तिलहनों के 1980 के दशक के विपणन पैकेज को पुनः स्थापित किया जाए।
2 सम्मेलन की द्वितीय थीम मत्स्य एवं मत्स्य उत्पादों के विपणन में 12 शोध पत्रों का वाचन किया गया। इन शोधपत्रों के माध्यम से मुख्यतः निम्न अनुशंषाऐं सामने आईः-
1 मछली पालन की विभिन्न विधाओं को बढावा दिया जाना चाहिए गरीबी उन्मूलन एवं रोजगार उबलब्ध करवाने में इसकी महती भूमिका सिद्ध होगी।
2 मत्स्य विकास प्राधीकरण एवं राष्ट्रीय मत्स्यकी विकास बोर्ड की मत्स्य विकास एवं नीतियों के पालन में महती भूमिका।
3 मत्स्यकी के क्षेत्र में आसान वित्त, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, नियंत्रित विपणन व बाजार की आवश्यकता।
4 बहुरंगी मछली पालन एवं व्यवसाय में स्वरोजगार प्रदान करने की अच्छी क्षमता को देखते हुए इसे बढावा देने की आवश्यकता ।
5 मछली निर्यात को बढावा देने के लिए नवीन पर्यावरण प्रबंध एवं गुणवत्ता की जाँच करने हेतु अधिक टेस्टिंग प्रयोगशालाओं की स्थापना की आवश्यकता।
3. तृतीय थीम राजस्थान में कृषि विपणन के नवोन्मेषी सुधारों की स्थिति एवं समीक्षा पर केंद्रित रही । इस सेशन में 21 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। इस की मुख्य अनुशंषाऐं इस प्रकार रहीेें-
1 कृषि नवोन्मेषी परियोजना के अंतर्गत बुवाई के पूर्व एवं कटाई पूर्व फसल उत्पादन के मूल्यों का पूर्वानुमान 90 से अधिक सटीक साबित हुआ जिससे कृषकों को फसल की बुवाई एवं विपणन के निर्णय लेने में बहुत मदद मिली, अतः इस प्रकार की परियोजनाओं की निरंतरता बनाऐ रखने एवं देश के सभी जिलों में कम से कम एक ऐसा केंन्द्र स्थपित करने की आवश्यकता है।
2 स्थानीय फसलों की बहुलता व व्यापकता को देखते हुए क्षेत्र विशेष के विशिष्ट खाद्य संरक्षण , भंडारण, प्रसंस्करण व विपणन की व्यवस्थाओं को नीति निर्धारण में प्राथमिकता देने की आवश्यकता।
3 बाजार व विपणन की व्यापकता को देखते हुए ई-मार्केटिंग एवं ई-अँाक्श्न को बढाने की आवश्यकता।
4 कृषि उत्पाद विपणन समिति के अंतर्गत संचालित कृषक कल्याणकारी योजनोओं के पुनरावलोकन की आवश्यकता ।
5 राजस्थान की वर्षा आधारित फसलों के समर्थन मूल्यों की पुनः समीक्षा।
उपरोक्त अनुशंषाओं को भारत एवं राज्य सरकारों के साथ ही कृषि विपणन एवं नीति निर्माण से जुडी सभी प्रमुख संस्थाओं कृषि विश्वविद्यालयों इत्यादि को भेजा जाएगा। सम्मेलन के प्रस्तुत शोधपत्रों का प्रकाशन कृषि विपणन सोसाइटी द्वारा किया जाएगा।
कार्यक्रम का समापन अतिथियों को प्रतीक चिह्न देकर किया गया। धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ. एस एस बुरड़क ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ लतिका शर्मा ने किया।