इतिहास के सभी स्त्रोतों का दोहन आवश्यक – प्रो. सारंगदेवोत
साहित्य को भी इतिहास के स्त्रोत में स्वीकारें – प्रो. व्यास
उदयपुर ,जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के इतिहास विभाग की ओर से बुधवार को महाविद्यालय के सिल्वर जुबली हॉल में ‘‘राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत’’ विषयक पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, सम्मानित अतिथि पूर्व कृषि मंत्री सवाई हरि सिंह चुण्डावत, अध्यक्षता डीन कला संकाय प्रो. प्रदीप पंजाबी, विशिष्ठ अतिथि इतिहासविद् प्रो. के.एस. गुप्ता, मुख्य वक्ता प्रो. एस.पी. व्यास थे। स्वागत उद्बोधन विभागाध्यक्ष प्रो. निलम कोशिक ने दिया। समारोह में मुख्य वक्ता प्रो. एस.पी. व्यास ने कहा कि इतिहास लेखन में इतिहास के रूप में सभी प्रकार के संसाधनों, समीक्षात्मक विषलेश्ण कर प्रयोग करना चाहिए। तत्कालीन साहित्यिक सामग्री , ऐतिहासिक अभिलेख, भाषा, कला, संस्कृति, लोक गीत, काव्य संग्रह आदि भी हमारे राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत है। जिससे हमें महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है तथा किसी भी प्रकार की सामाजिक संरचना, लोक साहित्यिक, व्यापारिक परम्परा, तकनीकी साहित्य में भी राजस्थान का इतिहास जीवंत है। मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि राजस्थान के इतिहास को समझने के लिए उत्पादन के साधनों को जानना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। इन उत्पादनों के साधनों से ही राजस्थान का समग्र रूप इतिहास लिखना संभव है। उत्पादन के साधनों के द्वारा ही राजस्थान की विरासत को समझा जा सकता है। समारोह का संचालन डॉ. हेमेन्द्र चौधरी ने किया जबकि धन्यवाद गिरीश पुरोहित ने दिया।
इन मोनोग्राफ व शोध जर्नल का हुआ विमोचन:-
प्रो. नीलम कोशिक तथा डॉ. हेमेन्द्र चौधरी द्वारा लिखित इतिहास विभाग की शोध पत्रिका विरासत तथा विभागीय सदस्यों द्वारा लिखित मोनोग्राफ महाराजा राजसिंह, महाराणा कुंभा, वागड़ की महिला स्वतंत्रता सेनानी, उदयपुर के मुर्ति कला में अभिव्यक्त पार्थि जगत, श्री धूल जी भाई भावसार के मोनोग्राफ का विमोचन किया।