कहते हैं बदनसीबी इंसान से उसका सब कुछ छीन लेती है। भादसोड़ा गांव की उपबस्ती मीरागंज निवासी 14 वर्षीय अर्जुन खटीक को देखकर तो हर कोई यही कहेगा।
बदनसीबी ने अर्जुन से उसका बचपना छीन लिया। होश संभालते ही जन्म देने वाली मां चल बसी। उंगली पकड़ कर दूनिया दिखाने वाला पिता भी अकाल मौत का शिकार हो गया।
बड़ा भाई पहले ही जिंदगी के रास्तों में उसे बेसहारा छोड़ गया। मानसिक रोग का शिकार अर्जुन अब काल कोठरी में बंद हो गया है। वर्षों से बंद कमरे में रहते हुए उसके पैर बेजान हो गए हैं। वह खुद के सहारे खड़ा होकर ठीक से चल भी नहीं सकता।
अनाथ अर्जुन की जिंदगी अब उसके नजदीकी रिश्तेदारों के भरोसे है, लेकिन आर्थिक तंगी से यह सहारा भी डगमगाने लगा है। ऐसा नहीं कि अर्जुन जन्म से इस बीमारी का शिकार है। किसी समय में वह खुद के भरोसे दैनिक कामकाज करता था। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उपचार के अभाव में अब वह बेसहारों की जिंदगी जीने को मजबूर है।
संभव है उपचार
लोगों का मानना है कि अर्जुन का उपचार संभव है। आर्थिक कारणों के चलते परिजन समय पर उसका उपचार नहीं करा सके। बताते हैं कि सात-आठ वर्ष की आयु में अर्जुन को चलने-फिरने में किसी भी तरह की परेशानी नहीं थी, लेकिन बंद कमरे में रहते-रहते हुए वह अपाहिज हो गया है। अब तक उसकी मदद के लिए कोई सामने नहीं आया है।
कभी सामान्य था जीवन
नजदीकी रिश्तेदारों की मानें तो मीरागंज-लेसवा मार्ग निवासी भंवरलाल खटीक का परिवार आज से कुछ वर्षों पहले तक सामान्य था। भंवरलाल अजीविका के लिए व्यवसाय करता था।
उसके दो बेटे थे, रमेशचंद्र और अर्जुन। लेकिन, पांच साल पहले भंवरलाल की पत्नी अणछी की अकाल मौत हो गई। इससे मानसिक रोग का शिकार दोनों बेटों के पालन पोषण की जवाबदारी भंवरलाल पर आ गई। मजबूर होकर भंवर ने व्यवसाय बंद कर बकरी पालन को आय का जरिया बनाया।
इस बीच पुत्र रमेशचंद्र (25) उपचार के अभाव में काल का ग्रास बन गया। मानसिक रोगी बेटे अर्जुन को बंद कमरे में छोड़कर भंवरलाल बकरियों को चराने जाता था। इस दौरान बकरियों का पेट भरने के लिए एक माह पहले पेड़ पर चढ़े भंवरलाल की भी यहां गिरने से मौत हो गई।
भाई के लिए छोड़ा घर
रिश्ते में ताऊ कहने वाला भंवरलाल के भतीजे मुकेश खटीक ने अर्जुन की सार संभाल का साहस जुटाया। उसने स्वयं के मकान में अर्जुन को शिफ्ट किया और खुद किराए के मकान में परिवार के साथ रहने लगा।
लेकिन, अर्जुन के पालन पोषण की जवाबदेही और आर्थिक तंगी ने मुकेश को भी बेबस बना दिया है। चचेरे भाई को पालने के लिए मिलने वाली विकलांग पेंशन के पांच सौ रुपए भी कम पड़ रहे हैं। बताया गया है कि अर्जुन के पास भी कोई पैतृक मकान और कृषि भूमि नहीं है।