जोहान्सबर्ग। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला का लंबी बीमारी के बाद गुरुवार रात जोहान्सबर्ग में निधन हो गया। मंडेला पिछले दो साल से फेफड़े की बीमारी से ग्रस्त थे। नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त 95 वर्षीय मंडेला ने अपने घर में अंतिम सांस ली। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा ने उनके निधन की घोषणा करते हुए कहा कि राष्ट्र ने अपने सबसे महान बेटे को खो दिया है। हमारे लोगों ने अपने पिता को खो दिया। साथियो, नेल्सन मंडेला ने हमें एकजुट किया और हम सब साथ मिलकर उन्हें विदाई देंगे।’
विश्व भर के नेताओं ने उनके निधन पर गहरा शोक जाताया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि मंडेला न सिर्फ अपने समय के महानतम नेता थे बल्कि वो इतिहास के महानतम नेताओं में शामिल हैं। मंडेला के निधन पर शोक जताने वालों में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा, प्रिंस विलियम्स सहित देश और दुनिया के कई नेता शामिल हैं।
दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति को रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाने वाले प्रिय नेता के रूप में जाना जाता रहेगा। उनके जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र ‘नेल्सन मंडेला डे’ के रूप में मनाता रहा है। इसका मकसद पूरी दुनिया में शांति, स्वतंत्रता और समानता का संदेश फैलाना है। वो दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे। मंडेला को 1990 में भारत सरकार ने भारत रत्न से भी सम्मानित किया था। मंडेला ऐसे दूसरे गैर भारतीय थे, जिन्हें यह सम्मान मिला। उनके अतरिक्त पाकिस्तान के खान अब्दुल गफ्फार खान को भी 1987 में ‘भारत रत्न’ मिला था।
कौन हैं नेल्सन मंडेला
नेल्सन मंडेला का जन्म 18 जुलाई, 1918 को कुनू गांव के थेंबु शाही परिवार में हुआ। उनके बचपन में नाम ‘रोहिल्लाहल्ला मंडेला था। जिसे बाद में एक टीचर ने स्कूल में नेल्सन कर दिया। 1964 में सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर रोबेन द्वीप जेल में उम्र कैद की सजा काटने के लिए भेज दिया। 27 साल जेल में बिताने के बाद 1990 में रिहा हुए। 1993 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला। 1994 में दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने।
2004 में उन्होंने सार्वजनिक जीवन से भी रिटायरमेंट की घोषणा की। नेल्सन मंडेला के बड़े बेटे मैकगाथो की मौत 2005 में एड्स से हुई। इसके बाद उन्होंने एड्स के खिलाफ बड़े अभियान की अपील की थी।
नेल्सन मंडेला ने 2010 में दक्षिण अफ्रीका में फुटबॉल वर्ल्ड कप के आयोजन के निर्णय में प्रमुख भूमिका निभाई थी और इसकी क्लोजिंग सेरेमनी में वह शामिल भी हुए थे। दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने नवंबर 2012 में उनकी तस्वीर वाले नोट भी जारी किए थे।
13 बच्चों में तीसरी संतान थे मंडेला, पिता ने की थी तीन शादियां
नेल्सन मंडेला का पूरा नाम ‘नेल्सन रोहिल्हाला मंडेला’ रखा गया था, लेकिन दुनिया उन्हें नेल्सन मंडेला के नाम से जानती है। मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका की बासा नदी के किनारे ट्रांस्की के मवेजों गांव में 18 जुलाई, 1918 को हुआ था। उनके पिता ने उन्हें नाम दिया ‘रोहिल्हाला’ यानि पेड़ की डालियों को तोड़ने वाला या फिर प्यारा शैतान बच्चा। नेल्सन के पिता ‘गेडला हेनरी’ गांव के प्रधान थे। नेल्सन के परिवार का संबंध क्षेत्र के शाही परिवार से था। अठारहवीं शताब्दी में यह इस क्षेत्र का प्रमुख शासक परिवार रहा था, जब तक कि यूरोप ने इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं कर लिया। नेल्सन मंडेला के पिता ने तीन शादियां की थीं और वह तीसरी पत्नी की संतान थे। उनकी मां का नाम ‘नेक्यूफी नोसकेनी’ था। वह 13 भाइयों में तीसरे थे। नेल्सन के सिर से पिता का साया 12 साल की उम्र में ही उठ गया था।
विद्यार्थी जीवन में हुआ ‘रंगभेद’ से सामना
नेल्सन मंडेला को विद्यार्थी जीवन में रोज याद दिलाया जाता कि उनका रंग काला है और सिर्फ इसी वजह से वह यह काम नहीं कर सकते। उन्हें रोज इस बात का एहसास करवाया जाता कि अगर वे सीना तान कर सड़क पर चलेंगे तो इस अपराध के लिए उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। ऐसे अन्याय ने उनके अंदर असंतोष भर दिया। उन्होंने हेल्डटाउन से अपनी स्नातक शिक्षा पूरी की। हेल्डटाउन अश्वेतों के लिए बनाया गया एक विशेष कॉलेज था। यहीं पर उनकी मुलाकात ‘ऑलिवर टाम्बो’ से हुई, जो जीवन भर के लिए उनके दोस्त और सहयोगी गए।
1940 तक नेल्सन मंडेला और ऑलिवर टाम्बो ने कॉलेज कैंपस में अपने राजनीतिक विचारों और कार्यकलापों से लोकप्रियता पा ली। कॉलेज प्रशासन को जब इस बात का पता लगा तो दोनों को कॉलेज से निकाल दिया गया और परिसर में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ‘फोर्ट हेयर’ उनके क्रियाकलापों के मूर्त गवाह के रूप में आज भी खड़ा है। कॉलेज से निकाल दिए जाने के बाद मंडेला माता-पिता के पास ट्रांस्की लौट आए। उन्हें क्रांति की राह पर देखकर परिवार परेशान था और चाहता था कि वह हमेशा के लिए घर लौट आएं। जल्दी ही एक लड़की पसंद की गई, जिससे नेल्सन को पारिवारिक जिम्मेदारियों में बांध दिया जाए। घर में विवाह की तैयारियां जो-शोर से चल रही थीं, दूसरी ओर नेल्सन का मन उद्वेलित था और आखिर में उन्होंने अपने निजी जीवन को दरकिनार करने का फैसला किया और घर से भागकर जोहान्सबर्ग आ गए। वह जोहान्सबर्ग की विशाल सड़कों पर भटक रहे थे। नेल्सन ने एक सोने की खदान में चौकीदार की नौकरी करना शुरू कर दिया। जोहान्सबर्ग की एक बस्ती अलेक्जेंडरा उनका ठिकाना थी। नेल्सन ने अपनी मां के साथ जोहान्सबर्ग में ही रहने का इरादा किया। इसी जगह पर उनकी मुलाकात ‘वाल्टर सिसुलू’ और ‘वाल्टर एल्बरटाइन’ से हुई। नेल्सन के राजनीतिक जीवन को इन दो हस्तियों ने बहुत प्रभावित किया। नेल्सन ने जीवनयापन के लिए एक कानूनी फर्म में लिपिक की नौकरी कर ली, लेकिन वह लगातार खुद से लड़ रहे थे। वह देख रहे थे कि उनके अपने लोगों के साथ इसलिए भेद किया जा रहा था, क्योंकि कुदरत ने अश्वेता बनाया है। उन्हें लगा कि अश्वेत होना मानो कोई अपराध है, लेकिन वह सम्मान चाहते थे और उन्हें लगातार अपमानित किया जाता था।