विश्व में 40 प्रतिशत आत्महत्या करने वालों में 30 वर्ष से कम आयु के होते हैं। इस मामले में भारत पांचवें स्थान पर है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा आंकडे बताते हैं कि विश्व में आत्महत्या के मामले में भारत पांचवें स्थान पर है। देश में प्रत्येक घंटे में 14 लोग आत्महत्या करते हैं। इनमें हर तीन में से एक युवा होता है। जबकि हर पांच में से एक गृहिणी होती है। देश में प्रत्येक दिन 123 महिलाएं आत्महत्या कर रही है।
मनोचिकित्सकों का मानना है कि आमतौर पर विश्व में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के जमाने में तनावग्रस्त के चलते अवसाद में आने के बाद सर्वाधिक युवा आत्महत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त करते हैं।
एसोसिएशन ऑफ स्टडीज फॉर मेंटल केयर के मनोचिकित्सक डॉ.नरेश पुरोहित ने आत्महत्या बना मुक्ति का उपाय शीर्षक से हाल ही में तैयार की एक शोध रिपोर्ट के संबंध में चर्चा करते हुए बताया कि अवसाद से लोगों में आत्महत्या करने की घातक प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है। इससे पहले आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाने वालों का 6.4 प्रतिशत था जो पिछले दो दशकों में बढ़कर 10.5 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।
उन्होंने अपने शोध में आत्महत्या की प्रवृत्ति एक लक्ष्य है रोग का निदान नहीं होने की जानकारी का उल्लेख करते हुए कहा कि आत्महत्या करने वालें अपने अस्त व्यस्त विचारों के अपने खालीपन के कारण प्राय: ऎसा कदम उठाते हैं और इसका दूसरा मुख्य कारण यह भी है कि अधिकांश व्यक्ति सभी तरह की उम्मीदों के साथ जीते है और अगर उन्हें अपनी आशाएं पूरी नहीं होती।