डॉ.पी.सी.जैन
सर देखो इसका मुँह पुरा नहीं खुलता है। इसके तो मुँह में दो ऊँगली ही जाती है। सर मेरी सुपारी छुड़वा देवों, ये तो बीड़ी पीता है? सर इसने मैदान में तम्बाकू छिपा रकी है। ये तो प्लीज मेरी शराब छुड़ावा दो। मेरे बेटे ने इस महिने 50,000 हजार में मंगाये तो मुझे शक हुआ कि कही वो कोई नषा तो नहीं करता है। ये वाक्य स्कूलों कॉलेजो में मेरी वार्ता के बाद एकान्त में मुझे बताये जाते है।
फ्रेन्डस के प्रभाव, फैषन, फिल्मस, फ्रीडम, फन (मजा लेने के लिये) ये 12 एफ है जो नशे की और छात्र-छात्राओं को खींचते है। एक बार खरपातवार लगी तो गहरी जड़े जाने से पूर्व ही उन्हे उखाड़ देवे तो वह आसान है। इसी तरह नषारोग भी जड़े जमाने से पूर्व ही समाप्त किया जावे तो भविष्य में कितने ही नौजवानों की जाने बचाई जा सकती है। यह विचार डॉ.पी.सी. जैन ने लोकमान्य तिलक षिक्षक प्रषिक्षण महाविद्यालय में आयोजित पांच दिवसीय किषोरावस्था षिक्षा कार्यषाला में प्रस्तुत किए।
अपने सी.डी. शो के माध्यम से वरिष्ठ चिकित्सक वर्षा जल सरक्षण व नषा निवारण अभियान में लगे डॉ.पी.सी.जैन ने यह बात उपस्थित षिक्षकों को बताई कि षिक्षक कैसे भावी पीढ़ी को नषे की गर्त में जाने से बचा सकते है। इस पर उन्होने कहा कि पहले स्वयं नषा न करना, छात्रों को नषे के कुप्रभावों की जानकारी देना, नषा प्रष्न पत्र हल करवाना, शपथ दिलवाना, ”षिकायत पैटी“ जिसमें नषा करने वालो की षिकायत डाली जा सके और उसके बाद षिक्षक उनका उचित विषेषज्ञ से ईलाज करवाये तो नषे की बढ़ती गति पर रोक लग सकती है। षिक्षकों को नषा प्रष्न पत्र, षिक्षक व अभिभावक नषा कैसे छुड़ाये पत्रक दिये गये। षिक्षकों ने नषामुक्ति शपथ पत्र भरा तथा नषा गीत गाया। इस कार्यषाला की अध्यक्षता प्रो. आर.पी.सनाढ़य ने की कार्यषाला का आयोजन डॉ. सुनिता मुर्डिया एवं डॉ.सरिता मेनारिया के मार्गदर्षन में किया जा रहा है।
”ताकि पाठषाला नषा शाला न बन जाये“
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