निजी स्कूल मालिक और सरकार आमने-सामने

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आरटीई के तहत भर्ती बच्चों को पाठ्य सामग्री देने को तैयार नहीं निजी स्कूल
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उदयपुर। एक तरफ तो राज्य सरकार ने निजी स्कूलों को आरटीई के तहत प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों को पाठ्यपुस्तकें नि:शुल्क देने का प्रावधान किया है । दूसरी तरफ निजी स्कूल वाले अपनी मनमानी पर अड़े हुए है, और छात्रों को पाठ्य पुस्तकें नहीं देकर सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला कर रहे है।
शहर के अधिकांश स्कूल सरकार के इन निर्देशों की पालना नहीं कर रहे है। ऐसे में गरीब बच्चों के माता पिता की मुश्किलें बढ़ गयी है, उन्हें ऊँचे दामों में पैसे उधार और जुगाड़ कर किताबें खरीदनी पढ़ रही है। गरीब एवं अभाव ग्रस्त बच्चों को नि:शुल्क प्रवेश तो मिल गया लेकिन अब स्कूल की मनमर्जी से उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है। कई स्कूलों में तो नया सत्र शुरू हुए 15-20 दिन हो गए लेकिन आरटीई में प्रवेश पाने वालों के पास अभी तक पाठ्य पुस्तकें नहीं हैं।

रोज कहते हैं किताब लाओ : आरटीई के तहत प्रवेश पाने वाले बच्चों को स्कूल में विषय अध्यापक रोजाना किताब लाने पर दबाव बना रहे हंै। अभिभावक स्कूल में जाकर पूछते हैं, तो स्कूल प्रबंधन न तो पुस्तक देने से स्पष्ट मना करते है और ना ही पाठ्य पुस्तक उपलब्ध करवाते हैं। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
कैसे खरीदें महंगी पुस्तकें : गरीब बच्चों के अभिभावकों की परेशानी यह है कि इतनी मंहगी किताबें आखिर वे कैसे खरीदें? नर्सरी, केजी क्लास की किताबों की कीमत भी 1200 से 3000 रुपए तक है। इतनी राशि जुटाना उनके लिए भारी पड़ रहा है।
नहीं तो देने पड़ेंगेे रुपए : विभागीय अधिकारियों के अनुसार अधिनियम के नए प्रावधानों में आरटी ई के तहत प्राइवेट स्कूलों प्रवेशित बच्चों को निशुल्क पाठ्य पुस्तकें व सहायक सामग्री उपलब्ध करवाना भी संबंधित स्कूल का दायित्व है। नहीं देने पर स्कूलों को दी जाने वाली प्रतिभूति राशि (नि:शुल्क प्रवेश के बदले) में से पाठ्य पुस्तकों की कीमत के बराबर राशि संबंधित छात्र को प्राप्त करने का अधिकार है।
विरोध में हैं निजी स्कूल : अभी हाल ही में निजी स्कूल के संगठनों ने हिरणमगरी की एक स्कूल में बैठककर निर्णय लिया था कि निशुल्क पाठ्यसामग्री उपलब्ध करवाने के विरोध में वह सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे और सरकार को अपना यह फैसला वापस लेने पर मजबूर करेंगे।

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