उदयपुर। सर्दियों के दस्तक देने के साथ ही शहरवासियों की रोजमर्रा के जीवन में भी बदलाव शुरू हो गए हैं। घरों में रखे वुलेन आउट फिट को धूप दिखाई जाने लगी है। रजाई-गद्दों ने बेड पर फिर से अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है। किचेन में भी च्वयनप्राश, अदरक, काली मिर्च और गरम मसालों ने अपनी जगहें पक्की कर ली। लेकिन इन चेंजेस के साथ ही कुछ और भी बदलाव रूटीन का हिस्सा बन रहे हैं। हाई प्रोटीन-फैट वाली डाइट प्लेट में सजने लगी है और नींद के घंटों में कुछ और इजाफा हो गया है पर हाई कैलोरी और नो फिजिकल एक्टिविटीज की यह आदत दिल के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
हार्ट अटैक सबसे ज्यादा
साल भर में बाकी सीजन्स के मुकाबले सर्दियों में हार्ट अटैक का खतरा सबसे ज्यादा होता है। मेडिकल रिपोट्र्स सर्दियों के दौरान ही हार्ट अटैक से होने वाली मौतों का आंकड़ा सबसे ज्यादा होने की बात कहती है। दरअसल सर्दियों में लड प्रेशर काफी बढ़ जाता है। वहीं शरीर में ऐसे प्रोटीन्स बनने का लेवल भी बढ़ जाता है, जो लड क्लॉटिंग बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। कड़ाके की ठंड में 1.8 फॉरेनहाइट तक का टेंम्परेचर कम होने तक से हार्ट अटैक के केसेज दुगुने तक पहुंच जाते हैं। जिनमें 70 से 85 साल के बुजुर्गो की तादाद ज्यादा है।
ये आराम जान पर भारी: सर्दियों में आराम का मामला जान का जोखिम बढ़ाने के लिए भी जिम्मेदार है। ठंड के दिनों में फिजिकल एक्टिविटीज से दूर रहने वालों के लिए यह बेहद खतरनाक है। सर्दियों में प्रोटीन-फैट रिच डाइट लेने के बावजूद कोई भी वर्कआउट या फिजिकल मूवमेंट न करने से लड में कोलेस्ट्रोल का लेवल काफी हद तक बढ़ जाता है। कोलेस्ट्रोल के बढने से आर्टरीज सिकुड़ जाती हैं। इससे लड सर्कुलेशन का फ्लो बेहद धीमा हो जाता है और हार्ट पर लड पंप करने में एक्स्ट्रा प्रेशर पड़ता है, जो धीरे धीरे कभी भी हार्ट अटैक या पैरालिसिस अटैक का कारण बनता है। सर्दियों में वर्कआउट या नॉर्मल फिजिकल मूवमेंट न करने वालों के लिए बोन प्रॉलम की भी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। यह खतरा अमूमन 50 साल की उम्र से शुरू हो जाता है। दरअसल ठंड शुरू होते ही नर्व सेंसिटिविटी बढ़ जाती है। ऑस्ट्रियोऑर्थराइटिस और ज्वॉइंट पेन के पेशेंट्स के लिए सर्दियों में आराम और भी पेनफुल है। ठंड के दिनों में ज्वॉइंट्स और फिंगर्स व टोज में स्वैलिंग हो जाती है। ज्वांइट्स में तेज दर्द के साथ ही स्टिफनेस की प्रॉलम श्ुारू हो जाती है। जबकि ठंड का प्रकोप बढ़ते ही कई बार हाथ पैर भी सुन्न हो जाते हैं। ऐसे में एक्सपट्र्स हल्की एक्सरसाइज व हाथ पैरों की रोजाना मूवमेंट की सलाह देते हैं।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम से करें बचाव: मेटाबॉलिक सिंड्रोम पांच बीमारियों का कॉम्बीनेशन है। जिसमें मोटापा, लड प्रेशर, डायबिटीज, एल्कोहल-स्मोकिंग और आराम पसंद लाइफ स्टाइल शामिल हैं। एक्सपट्र्स के मुताबिक इन पांच में से तीन का होना ही मेटाबॉलिक सिंड्रोम है। 40 साल की उम्र के बाद से ही हार्ट के लिए पहले की तरह लड पंप करना आसान नहीं होता। ऐसे में मेटाबॉलिक सिंड्रोम हार्ट को कमजोर करने का काम करता है। डाइट बैंलेस्ड न होने और फिजिकल एक्टिविटीज से बचने वालों के लिए हार्ट अटैक से जुड़े गंभीर खतरे शुरू हो जाते हैं।
घी- बटर भी खाएं संभलकर
प्लेट में घी और बटर की एक्स्ट्रा क्वांटिटी भी दिल को जानलेवा दर्द देने के लिए जिम्मेदार है। घी, डालडा व बटर सैचुरेटेड फैट में आते हैं। वहीं चिकेन, मीट और फिश में भी पाया जाने वाला फैट सैचुरटेड होता है, जबकि रिफांइड ऑयल अनसैचुरेटेड फैट का हिस्सा हैं। एक्सपट्र्स बताते हैं कि शरीर में सैचुरेटेड फैट की जरूरत कुल फैट की महज 25 परसेंट है। लेकिन डाइट में इस क्वांटिटी से ज्यादा का सैचुरेटेड फैट कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है। इससे लड जमने लगता है। एक्सेसिव सैचुरेटेड फैट शरीर में हार्ट अटैक ही नहीं बल्कि ब्रेन हैमरेज और किडनी को भी नुकसान पहुंचाने के लिए भी जिम्मेदार है।