उदयपुर। विद्यार्थियों को घर से स्कूल और स्कूल से घर तक लाने-ले-जाने वाली वैनों का संचालन सुरक्षा मापदंड़ों के अनुरूप नहीं हो रहा है। इससे विद्यार्थी की जान को भी खतरा है, वहीं वैनों में घरेलू गैस का उपयोग किया जा रहा है, जो कभी भी दुर्घटना को अंजाम दे सकता है। दूसरों तरफ इन वैनों में क्षमता से अधिक बच्चों को बिठाया जाता है और किराया भी मनमाना वसूला जाता है। वैन में सुरक्षा उपकरणों का भी अभाव होता है। यह सबकुछ जानते हुए पुलिस, परिवहन एवं शिक्षा विभाग इस तरफ से आंखें मूंदे हंै। कारवाई कि अगर बात करें तो आरटीओ ने इनकी निगरानी के लिए डीटीओ नियुक्त कर रखे हंै, लेकिन फिर भी साल में इक्का-दुक्का कारवाई नाम मात्र की होती है।
अधिकतर वैन घरेलु गैस से संचालित
शहर में बाल वाहिनी के तौर पर चलने वाली अधिकतर वैन घरेलू गैस से संचालित होती है, जिनकी कभी जांच नहीं होती। वैन में गैस रिसाव के चलते दुर्घटनाएं भी हो चुकी है। शहर में चलने वाली कई वैन तो आरटीओ से एप्रूड गैस किट भी नहीं लगा रखा है। काली बड़ी टंकी के नाम पर धोखा देते हुए बिना एप्रूव्ड किट के लोकल किट से संचालित कर रहे हैं।
मनमाना शुल्क वसूला जा रहा है
सबसे बड़ी बात अधिकतर वैन चलती गैस से हैं, लेकिन इनके किराया पेट्रोल के दाम बढऩे के साथ बढ़ते जाते हंै। कई बड़ी स्कूलों के वैन संचालक, तो स्कूल के की फीस के बराबर किराया वसूलते है। इनका किराया 1000 रुपए से शुरू होता है और प्रति किलोमीटर की दूरी के साथ बढ़ता जाता है। इस पर न परिवहन विभाग की लगाम ह और ना ही स्कूल संचालकों की।
बाल वाहिनी के नियम
> बाल वाहिनी का परमिट जरूरी है।
> गाड़ी का रंग पीला होना चाहिए।
> गाडी पर बाल वाहिनी लिखा होना चाहिए।
> क्षमता से अधिक विद्यार्थी नहीं होने चाहिए।
> वाहनों में सीज फायर का इंतजाम होना चाहिए।
> प्रत्येक स्कूल में यातायात संयोजक नियुक्त होना चाहिए।
> स्कूल की तरफ से चालक को परिचय पत्र होना चाहिए।
शहर में चलने वाली एक भी वैन इन नियमों को पूरा नहीं करती है और ना ही इन पर कभी कोई कारवाई होती है।
:इनकी जांच के लिए हमने डीटीओ लगा रखेे हैं, जो निरंतर कारवाई करते हैं। अगर शहर में बिना नियमों के बाल वाहिनियां चल रही है, तो डीटीओ को निर्देशित कर प्रभावी कार्रंवाई की जाएगी।
-मन्नालाल रावत, एटीआरओ, उदयपुर
खतरे में नन्हें-मुन्नों की जान
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