चुनाव आयोग जनता के साथ राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा की जा रही धोखाधड़ी में शामिल है। चुनाव लडऩे वाले अधिकतर उम्मीदवार अपनी संपत्ति के बारे में झूठा शपथ-पत्र प्रस्तुत करते रहे हैं। यह सिलसिला आज भी चल रहा है। इसी प्रकार चुनाव खर्च का गलत ब्योरा देने वाले दस्तावेज भी चुनाव आयोग स्वीकार करता रहा है। चुनाव आयोग ने आज तक कभी भी यह पड़ताल नहीं की है कि उम्मीदवारों के शपथ पत्र में दिए गए आंकड़े सही भी है अथवा नहीं! इसी प्रकार चुनाव लडऩे वाले अधिकतर उम्मीदवार चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा से कई गुना अधिक राशि खर्च कर रहे हैं, लेकिन क्रमॉनीटरिंगञ्ज करने वाले अधिकारियों ने आज तक कोई केस दर्ज करके किसी भी प्रत्याशी को सजा नहीं दिलवाई। वैसे कानून में ऐसे लोगों को दंड देने के लिए पर्याप्त प्रावधान है। यदि कोई व्यक्ति झूठा-शपथ पत्र पेश करता है, तो उसे साढ़े पांच साल तक की बामशक्कत कैद की सजा दी जा सकती है। लेकिन आज तक एक भी केस दर्ज करके छानबीन करने की नज़ीर मौजूद नहीं है।
अत: यह तथ्य स्थापित हो जाता है कि क्रकाले धन की अर्थव्यवस्था चलाने में इस संवैधानिक निकाय की मौन सहमति है।ञ्ज वैसे काले-धन की समस्या कोई जटिल समस्या नहीं हैं। देश विदेश में चल रहा क्रकाला धनञ्ज मात्र अपनी करेंसी बदलकर एक हफ्ते में समाप्त किया जा सकता है। हालांकि यह आयोग का काम नहीं है, लेकिन उसके सामने पेश कानूनी दस्तावेजों में अंकित तथ्यों की जांच करके झूठे शपथ-पत्र प्रस्तुत करने वालों को सींखचों के पीछे धकेलने का काम तो चुनाव आयोग को ही करना है। फिर ऐसा क्यूं नहीं किया जा रहा है? इसका जवाब चुनाव आयोग को तुरंत देना चाहिए।