उदयपुर। हिन्दुस्तान जिंक की ‘सखी परियोजना’ ग्रामीण महिलाओं को दे रही है व्यावसायिक कौषल में प्रषिक्षण। ग्रामीण महिलाओं ने विभिन्न प्रकार की आकृतियों में सुगन्धित मोमबत्तियां बनाने में दिखाई रूचि।
हिन्दुस्तान ज़िक के हेड-कार्पोरेट कम्यूनिकेषन पवन कौषिक ने बताया कि राजस्थान में ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को सषक्त बनाने के लिए नये व्यावसायिक कौषल सिखाये जा रहे हैं। ग्रामीण महिलाएं रोजगार प्राप्त करने के लिए अपने खाली समय का सद्पयोग कर रही है। राजस्थान में वेदान्ता समूह की कंपनी हिन्दुस्तान ज़िक ने ‘सखी’ परियोजना का शुभारम्भ किया है जिससे ग्रामीण एवं आदिवासी महिलाओं को व्यावसायिक कौषल में प्रषिक्षण के माध्यम से उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थित सषक्त हो रही है। वे नियमित आय के लिए उत्पादों की बिक्री के लिए सीधे बाजार से जुड़ी हुई है।
तुलसी एक ऐसी ही महिला है। तुलसी उदयपुर शहर से 15 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव कलड़वास में रहती है। हिन्दुस्तान जिंक ने तुलसी से व्यावसायिक कौषल में प्रषिक्षण के लिए सम्पर्क किया और वह इसके लिए सहमत हो गई तथा अपने अन्य साथियों को प्रषिक्षण के लिए साथ लाने के लिए कही। व्यावसायिक प्रषिक्षण संचालन में मुख्य सड़क से दूर होना तथा आधारभूत सुविधाओं एवं बिजली की कमी मुख्य समस्याएं थी। उन्होंने ऐसे जगह की व्यवस्था की जहां व्यावसायिक प्रषिक्षण दिया जा सके तथा जगह उपलब्ध करायी।
आधारभूत सुविधाओं के साथ सुनिष्चित किया गया कि सुगन्धित मोमबत्ती बनाने के लिए प्रषिक्षण कार्यषाला का आयोजन किया जाए तथा प्रषिक्षण के दौरान ही लगभग 2000 मोमबत्तियां बनायी जाए। इन मोमबत्तियों की शीघ्र ही बिक्री की जाएगी। तुलसी ने सहमती एवं वादा किया कि सीखने एवं इस परियोजना के संचालन के लिए और अधिक महिलाएं आएगी।
2-दिनों के भीतर सब कुछ तुलसी द्वारा आयोजित किया गया। हिन्दुस्तान जिं़क ने सभी कच्चे माल की व्यवस्था की और तुलसी ने मोम पिघलाने के लिए रसाई गैस, बर्तन और अन्य जरूरत के सामान जो घर में उपलब्ध थे व्यवस्था की।
और इस प्रकार कलड़वास गांव में 18 ग्रामीण महिलाओं के साथ 2000 मोमबत्तियां बनाने का ‘‘सखी’’ परियोजना शुरू हुआ।
परियोजना प्रारम्भ करते समय तुलसी और उसके दोस्तों को कई चुनौतियों को सामना करना पड़ा। तुलसी ने अपनी कौषलता से महिलाओं को समूह में बांटा और प्रत्येक समूह की महिलाओं को अपनी पसंद के अनुसार अलग-अलग कार्य करने को कहा गया। किसी ने नए-नए सॉंचें तैयार किये, मोम पिघलाये तथा किसी ने पैकेजिंग का कार्य किये। यह एक सपने के सच होने जैसा था।
सभी भावुक हो गई जब उनको इस कठिन परिश्रम का मानदेय दिया गया। तुलसी भी रो पड़ी। यह उसके लिए एक सपना सच होने जैसा था। सिखाने की व्यवस्था तथा इनाम के रूप में नकद मानदेय वास्तव में बहुत ही प्रोत्साहित था।
‘सखी’ उन सभी ग्रामीण महिलाओं के लिए आषा है जो अपने सपने और इरादों को पूरा करने की इच्छा रखती हैं।