उदयपुर, लेकसिटी में इन दिनों पर्यटकों की बहार आयी है साथ ही छबी वाड़ा (कमीशन) के चलते लपकों की भी पौ बारह हो गयी है। इन लपकों के हर जगह कमीशन फिक्स है ओर इसी कमीशनखोरी के चलते पर्यटक यहां से जाते हुए कहता है सिटी अच्छी है लेकिन बहुत मंहगी है। क्यों कि पर्यटकों को हर चीज के 2 से 8 गुना तक ज्यादा पैसे देने पडते है।
सर्दिया शुरू होते ही दीपावली की छुट्टियां व गुलाबी ठंड की वजह से लेकसिटी पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केन्द्र होती है ओर विदेशी पर्यटकों के साथ साथ देसी पर्यटक भी उमड पडते है। प्रशासन जो हर वक्त लपकों पर अंकुश के दावे करता है इस बार उसके दावे खरे नहीं उतरे। पर्यटक लेकसिटी मे कदम रखते ही ना चाहते हुए भी लपकों की गिरफ्त में आ जाता है। और उसको हर कदम पर दुगुना पेसा देना पडता है ओर लपकें अपनी छबीवाडा (कमीशन) के चक्कर में पर्यटकों को ऐसा उलझाते है कि कई पर्यटक तो दुबारा यहां न आने की कसम खा कर चले जाते है।
कमीशन का अजगर झीलों की नगरी में इतना बडा हो चुका है कि लेकसिटी में हर जगह यह पर्यटकों की जेब से हजारों रूपये निगल रहा है ।
सूत्रों के अनुसार होटल किराया में 20 प्रतिशत, खरीददारी में 20 से 40 प्रतिशत, टयूरिस्ट पांइट पर बोटिंग, रोपवे घोडा सवारी, ऊंट सवारी आदि में 10 से 20 प्रतिशत जहां रेट फिक्स है जैसे फतहसागर पिछोला पर बोटिंग की रेट फिक्स है वहां 10प्रतिशत कमीशन होता है लेकिन वहीं सीजन मे अगर ऊंट सवारी करनी है या घोडा सवारी करनी है तो यहां 20रूपये लगते है वहीं 50 से 100रूपये वसूले जाते है। और 20 से 30 प्रतिशत कमीशन यह लपके ले जाते है लपके अपनी बातो ओर स्वभाव के जाल में फ़ांस कर पर्यटकों को उनकी मनचाही जगह खरीददारी कराने ले जाते है। वहां से भी कमीशन उठाते है। यहां तक की विदेशी पर्यटकों से तो बाल कटवाने के लिए भी 50रूपये की जगह 300 से 500रूपये वसूल कर 100 से 200 रूपये कमीशन ले लेते है।
पहले से बुक करा लेते है होटले : दीपावली के बाद गुजराती हजारों की संख्या में आते है लपके पहले ही होटल के रूम बुक करा लेते है। नाम पते नहीं छापने की शर्त पर एक लपके ने बताया कि इस सीजन में उसने अलग अलग होटल में 500 से 1000 रूपये में 15 रूम चार दिन के लिए बुक करवाये है और उन रूम के5 से 7 हजार रूपये प्रतिदिन के हिसाब से पर्यटको से वसुले।
पार्टी देखते ही पता लगा लेते है कितना पैसे देगें : लपके पर्यटक (पार्टी) पहचानने मे इतने शातिर होते है कि देखते ही भांप लेते है पिछले 8 साल से टयूरिस्ट लाइन में काम कर रहे रंजीत टेलर ने बताया कि पर्यटको का वाहन, उनके कपडे जूते और साथ लाये नये बेग को देख कर अंदाजा हो जाता है कि यहां ’’पतिया’’ (बेकार) है या ’’ चोकर’’ है।
शहर के बाई पास से होती है मोनिटरिंग : सीजन के दिनों में सुबह जल्दी बाईपास पर जाकर खडे हो जाते है और वहीं से गाडी के पिछे लग जाते है ओर यदि एक लपका गाडी के पिछे लगता है तो दूसरा फिर उसके काम में दखल नहीं देता तथा जब तक वह पर्यटक उदयपुर नहीं छोडता उसका कमीशन वहीं लपका लेता है। और बस स्टेण्ड व निजी ट्रावेल्स की आने वाली बसों पर पुराने और गिरोह बना कर काम करने वाले लपके अपना मालिकाना हक समझते है और उसमे से उतरते हर पर्यटक को वही डील करते है।
100रूपये की चीज के 500रूपये : कमीशन खोरी के चक्कर में जगदीश चौक और घंटाघर सहेलियों की बाडी दूधतलाई आदि हैडीक्राफ्ट की दुकानों पर 100 रूपये की कोई चीज 500 से 1000 रूपये मे बिकती है।एक साधारण शॉल जिसकी लोकल मार्केट मे किमत 100रूपये है उसके 500 से 1000 रूपये वसुले जाते है। चमडे की छोटी छोटी चीजे भारी दामों में बिकती है। हैण्डीक्राप*ट के बडे बडे शो रूम मालिक तो विदेशी टयूरिस्ट को उनके शो रूम तक लाने का ही हज़ारों रूपया देते है कि बस एक बार हमारे शो रूम में विदेशी पर्यटक पहुंच जाए।
प्रशासन को परवाह नहीं : इतना सब कुछ खुले आम धडल्ले से चलता है कि प्रशासन को पता होते हुए भी कोई कार्यवाही नहीं होती। टयूरिस्ट पुलिस तो लपकों से ही हफ्ता वसूल कर सोयी रहती है। तो स्थानिय पुलिसवालें भी निष्क्रिय है। शहर पुलिस अधीक्षक का कहना है कि कार्यवाही होती है और लपकागिरी करते हुए पकडे भी गये है।