गुजरात विधान सभा चुनावों में कौन हैं वो तीन देवियाँ जो राजनीति के मैदान में अचानक प्रकट हो गईं हैं. किन सीटों से खड़ीं हैं यह देवियाँ और किसे मिलेगा इनका श्राप या आशीर्वाद.
श्वेता भट्ट
गुजरात के चर्चित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट क्लिक करें नरेन्द्र मोदी को उनके गढ़ मणि नगर से चुनौती दे रहीं है. श्वेता के पति संजीव भट्ट की प्रदेश के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से ठनी हुई है. श्वेता भट्ट ने अपना पर्चा दाखिल कर दिया है.
संजीव भट्ट नरेन्द्र मोदी को गुजरात में साल क्लिक करें 2002 में हुए दंगों का ज़िम्मेदार ठहराते रहे हैं. भट्ट को गुजरात सरकार उनके आरोप लगाने के बाद एक अन्य मामले में जेल भी भेज चुकी है.
श्वेता भट्ट का ना राजनीति से ना ही कॉंग्रेस पार्टी से अब तक कोई खुला या लंबा नाता रहा है. यह उनकी पहली राजनीतिक पारी होगी.
इस चुनाव में यह उम्मीद किसी को नहीं है की वो नरेन्द्र मोदी को पछाड़ना तो दूर उनकी मणि नगर सीट पर मोदी को परेशान भी कर पाएंगी. कॉंग्रेस इस टिकट से एक राजनीतिक संदेश देने की कोशिश कर रही है जो कि गुजरात ही नहीं गुजरात के बाहर भी काम करे.
भारतीय जनता पार्टी के अनुसार श्वेता भट्ट के लड़ने से यह साफ़ हो गया है की उनके पति द्वारा लगे गए सभी आरोप राजनीतिक रूप से प्रेरित थे.
जागृति पंड्या
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व नेता स्वर्गीय क्लिक करें हरेन पंड्या की पत्नी जागृति केशु भाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी के टिकट से अहमदाबाद के एलिसब्रिज क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं. उनके खिलाफ होंगे नरेन्द्र मोदी के ख़ास माने जाने वाले विवादास्पद नेता अमित शाह.
गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री रहे हरेन पंड्या एक ज़माने में नरेन्द्र मोदी के बेहद नज़दीकी थे. राजनीतिक पत्रकार अजय उमठ का कहना है कि पंड्या को पहला विधानसभा का टिकट दिलाने वाले मोदी थे. बाद में पंड्या केशुभाई पटेल और संजय जोशी के पक्के समर्थक हो गए और मोदी के राजनीतिक शत्रु.
साल 2003 में वो रहस्यमय हालात में अपनी कार में मृत पाए गए. कथित रूप से उनकी हत्या ‘चरमपंथियों’ ने की थी, लेकिन उनकी हत्या के आरोप में पकड़े गए सभी लोगों को अदालत ने निर्दोष करार दे दिया. अभी तक यह नहीं पता लगा है कि उनकी हत्या के पीछे कौन था.
जागृती पंड्या का कहना है कि उनके पति के हत्यारों को पकड़ने में किसी ने कोई रूचि नहीं दिखाई और अब वो न्याय के लिए और अपने पति के अधूरे कामों को पूरा करने के लिए लड़ रही हैं.
जागृति भी जीतेंगी इसकी संभावना बहुत ही कम है लेकिन उनके माध्यम से उनकी पार्टी चर्चा में तो आ ही जायेंगी और अगर वो जीत गईं तो यह शायद गुजरात चुनावों के सबसे बड़े उलट फेर में से एक माना जाएगा.
संगीता पाटिल
संगीता पाटिल गुजरात के सूरत की लिंबायत सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरीं हैं. राजनीतिक अनुभव के नाम पर उनके खाते में केवल नरेन्द्र क्लिक करें मोदी समर्थक महिला मंडल की उपाध्यक्ष होना लिखा है. इस संगठन का दावा है कि उनकी सदस्य संख्य 75000 है.
इस संगठन की महिलाओं को कमल फूल बनी साड़ियाँ पहन कर नरेन्द्र मोदी और भाजपा की रैलियों में शिरकत करने के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है.
किसी ज़माने में एक स्थानीय केबल टीवी चैनल की मराठी भाषी यह नेता अपना टिकट घोषित होने के बाद भाजपा के स्थानीय कार्यकार्ताओं के गुस्से का निशाना बनी.
लिंबायत सीट पर यूं तो मराठी भाषी मतदाताओं का खासा जोर है लेकिन भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता उन्हें बाहरी करार दे रहे हैं.
स्थानीय नेता उन्हें महज़ सी आर पाटिल का शिष्य करार दे रहे हैं उससे ज़्यादा कुछ नहीं.
पाटिल के जीतने की संभावना पंड्या और भट्ट से ज़्यादा है. अव्वल तो वो भाजपा के टिकट पर एक ऐसी सीट से लड़ रही हैं जहाँ शहरी मतदाता ज़्यादा है जिसमे भाजपा की काफी पैठ है.
दूसरे उनके खिलाफ कॉंग्रेस और एनसीपी दोनों ने अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं जिससे भाजपा विरोधी मतों के बंटवारे की संभावना बढ़ गयी है.
एनसीपी ने जहाँ राजदीप उर्फ़ ज़हीर खान पठान को चुनाव में उतारा है वहीं कॉंग्रेस के टिकट से मराठी दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले नेता सुरेश सोनवाने मैदान में हैं.
सो . बी बी सी