दो टोलियों में थे लुटेरे ट्रेन के अन्दर भी थे लुटेरे

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-देबारी के निकट रेल लूट का मामला, ट्रेन में भी सवार थी लूटेरों की एक टोली, दूसरी टोली ने देबारी के पास सिग्नल के तार काटे और दिया लूट की वारदात को अंजाम।
उदयपुर। देबारी के निकट देर रात रतलाम-उदयपुर एक्सप्रेस में हुई लूट के मामले में पुलिस को नई जानकारी हाथ लगी है। पता चला है कि कच्छा-बनियान गिरोह के बदमाश दो टोलियों में थे। इनमें से एक टोली ट्रेन में सवार थी, जिसने ट्रेन की चेन खींचकर ट्रेन को रूकवाया, वहीं दूसरी टोली ने देबारी आउटर के बाहर सिग्नल के तार कार दिए। ट्रेन रूकने के बाद लुटेरे ट्रेन के डिब्बों में चढ़े, जिन्होंने जमकर लूटपाट की। शहर के इतना करीब ट्रेन लूट की इस वारदात ने शहर पुलिस के साथ ही रेलवे पुलिस की मुस्तैदी की पोल खोल दी है। मामले की जांच की जा रही है, लेकिन लुटेरों का कोई सुराग अब तक हाथ नहीं लगा है।
घटना देर रात एक बजे की है। देबारी आउटर के बाहर ट्रेन में मौजूद लुटेरों ने
ने चेन खींच ली, वहीं बाहर मौजूद लुटेरों की दूसरी टोली ने सिग्नल के तार कार दिए। ट्रेन के रूकने के बाद लुटेरे ट्रेन में चढ़े, जिन्होंने जमकर लूटपाट की। यात्रियों के साथ मारपीट करके उनके मोबाइल छीन लिए, सोने की चेन और अन्य आभूषण उतरवाए। लुटेरों ने चेहरे व हाथ-पैरों पर ग्रीस लगा रखा था। यह लूटपाट जनरल कोच 14407 और 14407 की गई। बाद में यात्रियों से मारपीट और पथराव करते हुए लुटेरे भाग गए, जिनका कोई सुराग न तो रेलवे और ना ही शहर पुलिस के हाथ लगा है।
ट्रेन लेट होने की परवाह नहीं: अगर रेलवे विभाग मुस्तैद होता, तो शायद लुटेरे पकड़े जाते। जब ट्रेन आउटर पर रूकी, तो सिग्नल पर मौजूद गार्ड या रेलवे के कर्मचारी को जानकारी लेनी चाहिए थी। आधा घंटा लूट चलती रही लेकिन ट्रेन क्यों रूकी हुई है? इसकी किसी ने सुध नहीं ली, जबकि ट्रेन के जीपीएस से जुड़े होने के कारण हर जगह की इंफोर्मेशन होती है, जिससे पता चलता है कि ट्रेन कहां पर है?
असुरक्षित रेलवे : रेलवे पुलिस चाहे ट्रेनों और यात्रियों की सुरक्षा का दम भरती हो, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। खुद रेलवे अधिकारी और कर्मचारी ही यात्रियों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उदयपुर-जयपुर के बीच दिन में दो ट्रेने चलती है। उनमें एक भी सुरक्षा गार्ड नहीं होता। यही हाल बाकी ट्रेनों का भी है। यही नहीं साधारण डिब्बे के यात्रियों की कभी आईडी तक चैक नहीं की जाती।
सुरक्षागार्ड की कमी : उदयपुर से रोज करीब 16 ट्रेन जाती है और इतनी ही ट्रेनें आती है। इनमें कई ट्रेनें लंबी दूरी की है, जो रातभर सफर के बाद अपने गंतव्य पर पंहुचती है। कुछ ट्रेनों को छोड़ दे, तो रेलवे पुलिस यात्रियों की सुरक्षा को लेकर बिलकुल भी गंभीर नहीं है। लंबी दूरी की ट्रेनों के हर डिब्बे में एक बंदूकधारी गार्ड तैनात होना चाहिए, जबकि इन ट्रेनों में इक्का-दुक्का ही मिलते हंै। डेली चलने वाली इंटरसिटी और जयपुर स्पेशल एक्सप्रेस में तो वो भी नजऱ नहीं आते। ऐसे में कई बार यात्रियों में आपस में मारपीट भी हो जाए, तो बीच बचाव के लिए कोई नहीं आता।
टीसी खुद करते हैं सुरक्षा में छेद : नियमानुसार टीसी द्वारा हर यात्री की फोटो आईडी को चैक किया जाता है, लेकिन यहां टीसी खुद ही इन नियमों की धज्जियां उड़ाते देखे जा सकते हैं, जो लोग पहले से टिकट लेकर बैठते हैं, उनके तो आईडी चैक की जाती है, लेकिन अगर कोई छोटे या बीच में किसी स्टेशन से बैठे, तो उनको टीसी पैसे लेकर ना केवल सीट उपलब्ध करवाता है, बल्कि उनकी आईडी भी चैक नहीं की जाती।

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