उदयपुर। भागमभाग की जिंदगी में यह फलसफा आम है कि मरने के बाद ही चैन मिल पाता है लेकिन जनाब, यहां तो मुर्दा की परेशानी देख हर किसी का दिल पसीज जाता है। सुनने में अटपटा जरूर लग रहा होगा लेकिन यह सच है कि शहर के महाराणा भूपाल अस्पताल के मुर्दाघर में आना वाला हर मृत शरीर पानी को तरस जाता है और चिकित्सकीय प्रक्रिया में लगा स्टॉफ मूक दर्शक बन बगले झांकता है। पानी का यह संकट होली के बाद से अनवरत जारी है और अब ज्यों-ज्यों पारा ऊंचाई नाप रहा है स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।
उल्लेखनीय है कि इस बड़े चिकित्सालय में पूरे संभाग के अलावा सीमावर्ती मध्यप्रदेश से बड़ी तादाद में गंभीर रोगियों का रेला लगा रहता है। आए दिन दो से तीन लोगों की दौराने इलाज मौत हो जाती है। इन मृत लोगों को चिकित्सक प्रक्रिया के तहत मुर्दाघर भेजा जाता है जहां पोस्टमार्टम सहित अन्य कार्रवाई उस समय ठप हो जाती है जब पानी की उपलब्धता शून्य हो जाती है।
दो बाल्टी से चल रहा काम
मुर्दाघर में पानी के अभाव में अभी वहां लगा स्टॉफ धोबीघाट से दो बाल्टी पानी लाकर काम चला रहा है। मुर्दाघर में प्रतिदिन हाथ धोने, मुर्दे की साफ-सफाई करने, फर्श साफ करने तथा अन्य कार्याे में पानी की आवश्कता होती है। शवों की संख्या अधिक होने पर ज्यादा परेशानी हो जाती है।
पानी है लेकिन…
मुर्दाघर में पानी के संकट को देखते हुए स्थानीय विधायक कोटे से बकायदा परिसर में टयूबवैल खुदवाया गया। पानी भी ठीकठाक आ गया लेकिन उसमें समर्सिबल पम्प उतारा गया वो ज्यादा दिन साथ नहीं दे सका। होली के बाद तो पम्प ने एक बाल्टी पानी भी नहीं उगला कि मुर्दे को स्नानादि करवाया जा सके। अस्पताल प्रशासन की ओर ेसे लगातार संबंधित विभाग को पत्राचार किया जा रहा है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। जानकारों ने बताया कि टयूबवैल महज चार माह पूर्व ही खोदा गया और इतने कम समय मे समर्सिबल पम्प खराब हो जाना उसकी खरीद करने वाली एजेंसी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है।
अवकाश के चलते समस्या आ गई है। दो-तीन दिन में मोटर ठीक करवा देंगे। हालांकि तब तक धोबीघाटी से पानी की व्यवस्था करते हुए काम चलाया जा रहा है। पहले भी यहीं व्यवस्था थी।
डॉ. डी.पी. सिंह, अस्पताल अधीक्षक एमबी. चिकित्सालय
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