अपनों की बुरी नज़र का शिकार होती बेटियां

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sad-and-alone-emo-girlदो हफ़्ते पहले दिल्ली में एक चलती बस में एक 23 वर्षीय लड़की का बलात्कार करने वाले लोग भले ही उसकी जान-पहचान के न हों लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 10 में से नौ बलात्कारी पीड़िता के दोस्त या घर के लोग ही होते हैं.

ताज़ा खबरों के मुताबिक अपनों की बुरी नज़र का शिकार होने की दो घटनाएं राजस्थान में प्रकाश में आई हैं. एक ओर जहां जयपुर में पुलिस ने एक पिता को अपनी 13 साल की बेटी के बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है. वहीं कोटा में एक जीजा को अपनी नाबालिग साली के साथ बलात्कार करने के आरोप में हिरासत में लिया गया है.

राजस्थान की इन दोनों घटनाओं को छोड़ दें तो नज़दीकी रिश्तेदारों के हाथों यौण शोषण के मामले सामने नहीं आ पाते हैं.

विशेषज्ञ कहते हैं कि बलात्कार के अधिकतर मामले पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज़ किए ही नहीं जाते. फिर भी दर्ज़ किए गए अपराधों में बलात्कार का अपराध दूसरे ज़ुर्मों के मुकाबले सबसे तेज़ी से बढ़ रहा है.

चिंता की बात यह है कि इसमें सज़ा दूसरे अपराधों की तुलना में सब से कम हो रही है.

सरकार कहती है

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2010 में बलात्कार के 20,262 मुकदमे दर्ज़ किए गए जबकि 2011 में इस से चार हज़ार ज़्यादा.

आंकड़ों पर नज़र डालें तो बलात्कार के मामलों में मध्य प्रदेश सब से आगे है. पिछले साल राज्य में बलात्कार के 3,406 मुक़दमे दर्ज किये गए थे. अगर शहरों की बात करें तो वर्ष 2011 में बलात्कार के 507 मामलों के साथ दिल्ली सबसे आगे रही. उसी साल मुंबई में 117 मुक़दमे दर्ज किये गए.

पीड़ितों के बीच काम करने वाली संस्था शक्ति वाहिनी के अध्यक्ष रवि कांत कहते हैं कि बलात्कार के मामले तेज़ी से इसलिए बढ़ रहे हैं क्योंकि पुलिस वालों और पुलिसिंग दोनों में कई खामियां हैं.

वह कहते हैं, “पुलिस महकमे को महिलाओं पर अत्याचार के प्रति संवेदनशील बनाने की ज़रुरत है. जांच की खामियों को दूर करना होगा व कानून को और मज़बूत करना होगा”

 

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