मुंबई से बाहर मीरा रोड में अफ्रीका से आकर रहने वालों की संख्या काफी है.
वो बाज़ार या दुकानों में अक्सर देखे जा सकते हैं. लेकिन ऐसा मालूम होता है इस देश में उनका स्वागत नहीं है.
उनका कहना है भारतीय उनके साथ नस्ली भेदभाव करते हैं. इन अफ्रीकी मूल के लोगों के अनुसार उनके काले रंग के कारण उन्हें किराये का घर नहीं मिलता और पुलिस उनके साथ बुरा सुलूक करती है.
उनके इस इल्ज़ाम को आजमाने मैं मुंबई के बाहर मीरा रोड के बाज़ारों में पहुंचा और लोगों से अफ्रीकियों के बारे में उनके विचार पूछे.
एक ने कहा, ” क्लिक करें वो काले हैं इस लिए हम उन्हें कालिया कहते हैं”. एक महिला ने कहा, “शायद उनका रंग काला है इस लिए हम उन्हें कालिया कहते हैं. उन से डर लगता है. ”
वहां मौजूद खुद को स्थानीय पत्रकार कहने वाले एक बुज़ुर्ग कहते हैं, “अगर आप टकले हैं तो आपको टकला न कहें तो क्या कहें? अगर आप बिहार से हैं तो बिहारी न कहें तो क्या कहें. इसी तरह अगर कोई काला है तो उसे नीग्रो न कहें तो क्या कहें?”
एक युवा ने बताया अफ्रीकियों को मुंबई में जगह नहीं मिलती इस लिए वो मीरा रोड आकर रहते हैं. “वो तस्करी करते हैं. पता नहीं क्या करते हैं. उन पर भरोसा नहीं.”
रहने को घर नहीं
नाइजीरिया के साम्बो डेविस मुंबई और इसके आस पास रहने वाले 5,000 अफ्रीकियों में से एक हैं. वो यहाँ नकली बालों को अपने देश निर्यात करने का काम करते हैं. वो कहते हैं: “हमें कोई किराये पर घर नहीं देता. सारे दस्तावेज़ सही रहने के बावजूद हमें पुलिस परेशान करती है. हमें यहाँ लोग ड्रग डीलर समझते हैं.”
साम्बो डेविस कहते हैं इसका कारण केवल एक है, “हमारा रंग काला है.”
साम्बो डेविस की पत्नी शीबा रानी मुंबई की हैं. वो कहती हैं, “मैं जब भी अपने पति के साथ मॉल या बाज़ार जाती हूँ मुझे लोग बदचलन औरत समझते हैं क्योंकि मेरे पति काले अफ़्रीकी हैं.”
शीबा और साम्बो डेविस हाल में किराये का एक घर लेने नवी मुंबई के खार्गर इलाके में गए. उनके अनुसार मामला तय हो गया और उन्हें ने दो महीने का अग्रिम किराया भी दे दिया. साम्बो ने कहा कि जब हाउसिंग सोसाइटी को पता चला कि वो नाइजीरियन हैं तो उन्हें घर देने से मना कर दिया. “हाउसिंग सोसाइटी ने कोई कारण नहीं बताया केवल इतना कहा इमारत में विदेशियों को घर नहीं दिया जाता.”
साम्बो डेविस कहते हैं उनके देश में लाखों की संख्या में भारतीय आबाद हैं. “मेरे दोस्त आप नाइजीरिया जा कर देखो हम भारतीयों का कितना आदर करते हैं.”
अवैध रहते हैं
लेकिन आम भारतीयों की शिकायत ये है कि अफ़्रीकी लोग यहाँ अवैध तौर पर रह रहे हैं और उन्हें घर न देने का कारण ये भी है कि वो अक्सर हिंसा पर उतारू हो जाते हैं.
महाराष्ट्र पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी अहमद जावेद कहते हैं अफ्रीकियों की संख्या इतनी कम है कि उनकी शिकायत ठीक तरह से सुनी नहीं जाती. वो कहते हैं, “भारत एक गणतंत्र है. किसी भी नागरिक और विदेशी को कोई शिकायत करनी हो तो उसके लिए वो हम से मिल सकता है या अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकता है.”
उन्होंने इस बात से इनकार किया कि पुलिस अफ्रीकियों के साथ खराब सुलूक करती है. लेकिन ये ज़रूर स्वीकार किया कि भारतीय समाज में अफ्रीकियों के बारे में जो सोच है, पुलिस विभाग में उसकी झलक मिल सकती है. वो कहते हैं, “पुलिस वाले भी समाज का ही हिस्सा हैं.”
मुंबई के मुहम्मद अली रोड में नाइजीरिया के इकियोरह जूनियर अपने देश वासियों के लिए एक रेस्टोरेंट चलाते हैं. वो भारतीयों को तंज़ भरे अंदाज़ में अपने खिलाफ भेद भाव का जवाब यूँ देते हैं, “हमें भारत के लोग कालिया के नाम से बुलाते हैं. क्या हम उन्हें गोरिया कहें? वो गोरे भी तो नहीं.”
सो. बी बी सी