कमजर्फ़ों ने खुद को इस्लाम से जोडक़र मुसलमानों को किया बदनाम – आतंकवादियों के खिलाफ मुस्लिम धर्म गुरुओं में गुस्सा

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उदयपुर। देश और दुनिया में होने वाली आतंकी घटनाओं पर उदयपुर के ओलेमाओं-मौलानाओं ने आक्रोश जताते हुए इसको इस्लाम के खिलाफ बताया है। इस्लाम को मोहब्बत और भाईचारे का धर्म बताते हुए कहा कि इस्लाम में दहशतगर्दी और खौफ फैलाने वालों के लिए कोई जगह नहीं है। मासूमों का क़त्ल करने वाले इस्लाम तो दूर वो इंसान कहलाने के लायक नहीं है। पाकिस्तान के पेशावर में मासूम बच्चों के कत्ले-आम पर दु:ख जाहिर करते हुए सभी ओलेमाओं ने तहरीके-ए-तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को इस्लाम मानने वाला ही नहीं बताया। ओलेमाओं ने कहा कि ये लोग इस्लाम तो क्या किसी धर्म के नहीं हो सकते, क्योंकि आतंक जैसे कृत्य के लिए किसी धर्म में कोई जगह नहीं है।
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह कमिटी के सदर असरार अहमद खान ने कहा ……..
आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान का यह घर्णात्मक एवं कायरतापूर्ण कृत इस्लाम विरोधी होते हुए इंसानियत के खिलाफ हैं। ऐसे गैर इस्लामी काम को अंजाम देने के लिए आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान को इस्लाम से खारिज कर दुनिया के मुसलमानों को अपने दामन से आतंकवाद के दाग को साफ करने के लिये साकारात्मता से एक जुट होना होगा। आतंकी घटनाओं को अंजाम देना गैर शरई होते हुऐ इस्लाम के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ है। आतंकवाद जैसे कोई घटना के लिए इस्लाम में कोई जगह नहीं है।
-असरार अहमद खान, सदर ख्वाजा मोइनीद्दीन चिश्ती दरगाह कमेटी, अजमेर

मुस्लिम धर्मगुरुओं ने बोला
कुरआन में फरमाया गया है कि जमीन पर फसाद मत करो। अपनी बोली भी ऐसी रखो जिससे किसी को दु:ख नहीं पहुंचे और जिस तरह से ये आतंकी मासूम लोगों का क़त्ल करते हैं, वो न तो इस्लाम में है और ना ही कुरआन में है, न ही किसी हदीस में और ना ही अल्लाह इसकी इजाजत देता है। हुजूर मोहम्मद साहब ने फरमाया है कि परिंदों के घोसलों को भी मत तोड़ो और ये कमजर्फ़ लोग तो मासूम बच्चों और बेगुनाह लोगों को मारते हैं, जाने किस इस्लाम की बात कर रहे हैं ये लोग। अल्लाह को मानने वाले नहीं है ये शैतानी लोग। इनको इनके किए कि कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
-मौलाना मुर्तज़ा, पल्टन मस्जिद
मासूमों और बेगुनाहों को कत्ल करना शैतानी काम है, जिसकी इस्लाम में कोई गुंजाइश नहीं। ऐसे कत्लों गारत की इस्लाम में कोई जगह नहीं, जिस मजहब में बच्चों, बूढ़ों और औरतों चाहे जिस भी मजहब की हो, उनके लिए ख़ास हक़ दे रखे हैं। उन पर जुल्म तो दूर जऱा सी तकलीफ भी इस्लाम के खिलाफ हो जाती है, तो फिर बेगुनाहों के क़त्ल की तो कही बात ही नहीं है। हुजूर का फरमान है मजलूमों, बच्चों, औरतों की हिफाज़त करना हर मुसलमान का फज़ऱ् है। किसी भी इंसान पर जुल्म करना हराम करार दिया है। कुरआन ने हर जगह मोहब्बत का पैगाम दिया है। इस्लाम में नफरत के लिए कोई जगह नहीं। मासूमों का क़त्ल करने वाले इस्लाम को मानने वाले हो ही नहीं सकते।
-मौलाना शकीरूल कादरी, धोलीबावड़ी मस्जिद
ज़ालिम है वो लोग, गुनाहे अज़ीम के हक़दार है, जिनकी जगह दोजख में है और जिन पर खुदा की लानत है। ऐसे लोगों को सूली पर चढ़ा देना चाहिए। मजहबे इस्लाम में ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे लोग अपने आप को इस्लाम का मानने वाला कहते है। ये लोग तो इंसान कहलाने के लायक नहीं। फिर इस्लाम के लायक कैसे हो सकते हैं। हुज़ूर ने फरमाया है कि अगर तुम्हारा पडोसी चाहे जिस मज़हब को मानने वाला हो अगर वो भूखा सो गया तो तुम से खुदा भी नाराज़ हो जाएगा। इस्लाम में मसलमानों के लिए फरमान है कि जितनी खैर और इज़्ज़त तुम अपनी बेटी की करते हो उतनी ही खैर और इज़्ज़त एक ब्राह्मण की बेटी या दूसरे धर्म की बेटी की भी करो। फिर ये कायर और घटिया लोग कैसे इस्लाम को मानने वाले हो सकते हैं। ऐसे आतंकियों का कोई मजहब नहीं है। ये लोग तो खंजिर (सूअर) की जात के है। ऐसे कमजर्फ़ लोगों ने खुद को इस्लाम के साथ जोडक़र पूरी दुनिया में मुसलामानों और इस्लाम को बदनाम कर रखा है। आज हम इन पिल्लों की वजह से बदनामी झेल रहे हंै। जिस तरह से मासूम बच्चों को इन्होंने मारा खुदा इन्हें जन्नत तो दूर दोजख में भी जगह नहीं देगा। इस्लाम का पहला कलमा पहला पाठ मुहब्बत का है। फिर ये कैसे इस्लाम की बात करते हंै, जिसमें बंदूकों और मासूमों के क़त्ल की बात करते हैं। इनको इस जमीन पर कहीं नहीं रहने देना चाहिए।
-कारी अब्दुल क़ाज़ी अजमेरी

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