उदयपुर,राज्य में एक माह से बजरी खनन पर चल रही रोक हट गई है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राज्य में बजरी खनन का रास्ता साफ करते हुए कहा कि खनन के लिए आवेदन करने वाले 82 आवेदनकर्ता ही खनन कर सकते हैं। कोर्ट मामले में मार्च 2014 में सुनवाई करेगा। जस्टिस ए.के. पटनायक, जस्टिस एस.एस. निज्जर और जस्टिस एफ.एम.आई. कलीफुल्ला की पीठ ने राजस्थान राज्य सरकार व नवीन शर्मा की विशेष्ा अनुमति याचिकाओं पर यह आदेश दिया। हाईकोर्ट ने 24 अक्टूबर 2013 को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी बिना बजरी खनन करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, अनुमति के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल से आग्रह करने को कहा।
पूर्व में हाईकोर्ट की ओर से दी खनन की छूट की मियाद 16 अक्टूबर को खत्म होने से राज्य में समस्या पैदा हो गई। इसी स्थिति का हवाला देकर राज्य सरकार व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट से दखल करने का आग्रह किया था।
किसने क्या कहा
अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष्ा सिंघवी ने आग्रह किया, राज्य में बजरी खनन पर रोक से मुश्किल आ रही है, ऎसे में 21 जून 2012 को जारी अधिसूचना के हिसाब से खनन पट्टे के लिए आवेदन करने वाले लेटर ऑफ इंटेंट (एलओआई) धारियों को खनन की अनुमति दे दी जाए। नेचर क्लब ऑफ राजस्थान की ओर से अधिवक्ता अशोक गौड़ व संदीप शेखावत ने कहा, खनन व्यवस्थित तरीके से ही करने की अनुमति दी जाए। केन्द्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा, खनन मंजूरी की प्रक्रिया में 245 दिन समय लगता है, राज्य की अर्जियां पर्यावरण मंत्रालय को जून और उसके बाद में मिली हैं। ऎसे में फरवरी तक प्रक्रिया पूरी हो पाएगी।
उदयपुर सहित चार जिलों में रहेगी रोक
न्यायालय की बजरी खनन पर सशर्त अनुमति के बाद उदयपुर सहित चार जिलों के खननकर्ताओं में खलबली मच गई है क्योंकि न्यायालय ने लाइसेंसधारकोें को खनन की अनुमति दी जबकि उदयपुर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा व डूंगरपुर में एक भी लाइसेंसी नहीं है। महाराष्ट्र न्यायालय के आदिवासी क्षेत्रों में खनन पट्टे आदिवासियों को देने के फैसले के बाद सरकार ने प्रदेश सरकार ने इस सम्बंध में कोई स्पष्ट नीति जारी नहीं की थी।
राजसमंद, चित्तौड़ का आसरा
लाइसेंसधारियों में चित्तौड़गढ़ व राजसमंद के खननकर्ता भी शामिल हंै। चूंकि उदयपुर सहित आदिवासी क्षेत्रों में एक भी लाइसेंसी नहीं है, ऎसे में रेत चित्तौड़गढ़ व राजसमंद जिले से ही मंगवानी पड़ेगी।