उदयपुर , संयम का सीधा सा अर्थ है आत्म नियन्त्रण। संघ परिवार और समाज के समुचित विकास और अनेक शानदार उपलब्धियों के लिये संयम एक नितान्त आवश्यक गुण है। व्यक्ति संयम के द्वारा अपनी जीवनी शक्ति का संचय तो करता ही है, वह अपनी जीवन विधियों में अनुपम शक्ति का विकास कर देता है।
उक्त विचार श्रमणसंघीय महामंत्री सौभाग्य मुनि जी म.सा. ने बडगांव के नाहर परिसर में आयोजित स्वागत सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होनें कहा कि सर्व प्रथम अपनी वाणी पर संयम रखना आवश्यक है। हम जितना अधिक बोलेगे। उतने ही कठिनाई में जाएगें। सही और थोडा बोलकर हम वह सबकुछ प्राप्त कर सकते है, जो हमें चाहिये। वाणी में ही वह शक्ति है कि शत्रु और ईष्र्या ग्रस्त व्यक्ति को भी मित्र और हितैषी बना दे। उन्होनें कहा कि संयम सचमुच जीने कि एक सुन्दर कला है। इसे अपना कर मानव निष्कंटक रूप से विकास पूर्ण और उपलब्धियों से भरा जीवन जी सकता है।
’अधिक बोलना परेशानियों का आमन्त्रित करना’
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