सोहराबुद्दीन “फर्जी एंकाउन्टर” मामले में, अमित शाह की मुश्किलें फिर बढ़ सकती है .

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उदयपुर पोस्ट । भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष अमित शाह गुजरात में 2005 में सोहराबुद्दीन शेख की फर्जी मुठभेड़ में हुई हत्या के मामले में एक बार फिर परेशानी में फंस सकते हैं। हालांकि उन्हें 2014 में बरी कर दिया गया था और मुम्बई की एक अदालत ने पिछले माह इस केस के सभी 22 आरोपियों को भी दोषमुक्त कर दिया था, लेकिन शाह का नाम सुप्रीम कोर्ट द्वारा सार्वजनिक की गई रिपोर्ट में आया है। यह जांच रिपोर्ट पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एच.एस. बेदी ने तैयार की है।
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एच.एस. बेदी की अध्यक्षता वाली मॉनिटरिंग अथॉरिटी की गत वर्ष 26 फरवरी को एक बन्द लिफाफे में प्राप्त हुई रिपोर्ट को जारी करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में जस्टिस बेदी की अध्यक्षता में मॉनिटरिंग अथॉरिटी का गठन कर उसे गुजरात में 2002 से 2006 के बीच हुई सभी 22 फर्जी मुठभेड़ों की जांच करने के लिए कहा था और जिसमें सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ हत्याकांड भी शामिल था।
हालांकि शाह को फिलहाल कोई परेशानी होने वाली नहीं है लेकिन चार सप्ताह बाद कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बैंचने यह उपलब्ध लगाते हुए कहा कि उसने अब तक बेदी रिपोर्ट स्वीकार नहीं की है और वह सभी संबंधित पक्षों को आपत्तियां दर्ज कराने का समय दे रहा है। कोर्ट ने रिपोर्ट स्वीकार करने या इसे अंतिम रिपोर्ट मानने के प्रश्न पर अगली सुनवाई चार हफ्तों बाद तय की है। चीफ जस्टिस के अतिरिक्त जस्टिसएल. नागेश्वर राव और जस्टिस संजय किशन कौल की बैंच ने गुजरात सरकार के रिपोर्ट को सार्वजनिक ना करने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और आदेश दिया कि फर्जी मुठभेड़ों की जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं के साथ साथ मीडिया को भी रिपोर्ट उपलब्ध करायी जाए।

बैंच ने राज्य सरकार के इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं से रिपोर्ट साझा करने से पूर्वाग्रह पैदा हो जाएगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि कोर्ट ने जस्टिस बेदी से 8 पृष्ठ का नोट प्राप्त किया है तथा उन्होंने मॉनिटरिंग अथॉरिटी के सभी सदस्यों से विचार-विमर्श किया है। उनकी प्रतिक्रिया जानने के बाद चीफ जस्टिस ने कहा: यदि जस्टिस बेदी रिपोर्ट देने के लिए अधिकृत हैं, जो कि हम समझते हैं। कि वे हैं, तो राज्य इस पर कैसे आपत्ति कर सकता है। शीर्ष अदालत ने स्वर्गीय वयोवृद्ध पत्रकार बी.जी. वर्गीस, जिनका दिसम्बर 2014 में निधन हो गया था, जाने-माने गीतकार जावेद अख्तर और दिल्ली की सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी द्वारा 2007 में दायर की गई याचिका के मद्देनजर उक्त अथॉरिटी का गठन किया था और यह जांच करने को कहा था कि क्या मुठभेड़ों के तरीके से ऐसा लगता है कि इसमें अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आतंकवादी मानकर निशाना बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज बेदी की अध्यक्षता वाले पैनल ने गुजरात में 2002 और 2006 के बीच विभिन्न स्थानों पर हुई गोलीबारी से संबंधित साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन किया था।
बैंच ने गुजरात सरकार के वकील सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता के रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करने के दखल को निरस्त कर दिया। मेहता ने कहा था कि रिपोर्ट पर जिम्मेदारी की भावना से काम करने की आवश्यकता है। कोर्ट ने केस में लगातार स्थगन मांगने के लिए गुजरात सरकार की आलोचना करते हुए नोटिंग की कि किस प्रकार उसके वकील ने यह तर्क देकर अदालत से मामले में स्थगन लिए कि सॉलीसिटर जनरल कोर्ट में व्यस्त हैं। जस्टिस गोगोई ने कहा

“गुजरात राज्य मामले में बार-बार और बार-बार स्थगन नहीं मांग सकता। यदि सॉलीसिटर जनरल कोर्ट नम्बर एक में (चीफ जस्टिस कोर्ट) प्राथमिकता नहीं देते और किसी अन्य कोर्ट में जाना चाहते हैं तो यह उनका अपना निर्णय है, लेकिन उन्हें यहां के लिए कोई ना कोई प्रबंध करना होगा।”

रिपोर्ट की एक प्रति गुजरात सरकार को भी प्रत्युत्तर के लिए दी गई और उसका यह अनुरोध खारिज कर दिया गया कि रिपोर्ट को मीडिया की दृष्टि से बचाकर गोपनीय रखा जाए। गत सुनवाई में गुजरात सरकार ने यह कहकर रिपोर्ट पर आपत्ति उठाई थी कि जस्टिस बेदी ने मॉनिटरिंग अथॉरिटी के सदस्यों से विचार-विमर्श किए बिना रिपोर्ट प्रस्तुत की है। जस्टिस बेदी ने बैंच को दिए गए नोट में इस आरोप को नकारा यह स्पष्ट करते हुए कि वे रिपोर्ट को अंतिम नहीं मान रहे हैं और यदि कोई आपत्तियां हों तो उन्हें उठाने के लिएइसे केस के दोनों पक्षों से साक्षा कर रहे हैं, चीफ जस्टिस ने रिपोर्ट को साझा ना करने का गुजरात सरकार का अनुरोध निरस्त कर दिया और कहा कि इसने अपना काम शुरू कर दिया है।
कोर्ट ने हालांकि यह स्पष्टकिया कि “हमारे द्वारा स्वीकार करने के बाद ही रिपोर्ट प्रभावी मानी जाएगी।
। कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी द्वारा रिपोर्ट जारी करने के संबंध में उठाई गई इस आपत्ति को भी अस्वीकार कर दिया कि ऐसा करने से उस संभावित आरोपी के केस में पूर्वाग्रह की स्थिति बन जाएगी जिसकी वे पैरवी कर रहे हैं।

रिपोर्ट – जाल खंबाता-राष्ट्रदूत दिल्ली ब्यूरो

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