[ad type=”300×250″ src=”http://www.udaipurpost.com/wp-content/uploads/2013/11/shahi-green-copy.jpg” link=”” align=”” adsense=””]उनकी मखमली आवाज जब फ़िज़ा में गूंजती थी तो थार मरुस्थल का ज़र्रा-ज़र्रा कुंदन सा चमकने लगता… वे राजस्थान के शेखावाटी अंचल के एक गांव में पैदा हुईं थीं लेकिन उनका गायन कभी सरहद की हदों में नहीं बंधा.
अपने ज़माने की मशहूर पाकिस्तानी गायिका क्लिक करें रेशमा ‘लम्बी जुदाई’ का गाना सुनाकर हमेशा के लिए जुदा हो गई. रेशमा के निधन की ख़बर उनके जन्म स्थान राजस्थान में बहुत दुःख और अवसाद के साथ सुनी गई.
संगीत के कद्रदानों के लिए पिछले कुछ समय में ये दूसरा दुःख भरा समाचार है. पहले शहंशाह–ग़ज़ल क्लिक करें मेहंदी हसन विदा हुए और अब रेशमा ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया.
रेशमा राजस्थान में रेगिस्तानी क्षेत्र के चुरू जिले के लोहा में पैदा हुई और फिर पास के मालसी गाव में जा बसी. भारत बंटा तो रेशमा अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गई. लेकिन इससे ना तो उनका अपने गांव से रिश्ता टूटा न ही लोगों से.
मिट्टी से रिश्ता
रेशमा को जब भी मौका मिला वो राजस्थान आती रहीं और सुरों को अपनी सर-ज़मी पर न्योछावर करती रहीं. लोगों को याद है जब रेशमा को वर्ष 2000 में सरकार ने दावत दी और वो खिंची चली आईं तब उन्होंने ने जयपुर में खुले मंच से अपनी प्रस्तुति दी और फ़िज़ा में अपने गायन का जादू बिखेरा.
रेशमा ने न केवल अपना पसंदीदा ‘केसरिया बालम पधारो म्हारे देश’ सुनाया बल्कि ‘लम्बी जुदाई’ सुनाकर सुनने वालो को सम्मोहित कर दिया था.
इस कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े अजय चोपड़ा उन लम्हों को याद कर बताते हैं जब रेशमा को दावत दी गई तो वो कनाडा जाने वाली थीं और कहने लगी उनको वीसा मिल गया है.
मगर जब उनको अपनी माटी का वास्ता दिया गया तो रेशमा भावुक हो गईं. अजय चोपड़ा बताते हैं कि रेशमा को उनकी माटी के बुलावे का वास्ता दिया वो ठेठ देशी मारवाड़ी लहजे में बोलीं, “अगर माटी बुलाव तो बताओ फेर मैं किया रुक सकू हूं?”
ये ऐसा मौका था जब क्लिक करें राजस्थान की माटी में पैदा पंडित जसराज, क्लिक करें जगजीत सिंह, मेहंदी हसन और रेशमा जयपुर में जमा हुए और प्रस्तुति दी.
इस वाकये के बारे में अजय चोपड़ा बताते हैं होटल में रेशमा ने राजस्थानी ठंडई की ख्वाहिश ज़ाहिर की तो ठंडई का सामान मंगाया गया और रेशमा ने खुद अपने हाथ से ठंडई बनाई.
अजय ने बताया, ”वो अपने गांव, माटी और लोगों को याद कर बार-बार जज़्बाती हो जाती थीं. रेशमा ने मंच पर कई बार अपने गांव- देहात और बीते हुए दौर को याद किया और उन रिश्तों को अमिट बताया.”
विनम्र स्वभाव
राजस्थानी गीत संगीत को अपनी रिकॉर्डिंग के काम से ऊंचाई देने वाले केसी मालू का गांव रेशमा के पुश्तैनी गांव से दूर नहीं है.
केसी मालू को मलाल है रेशमा की चाहत के बावजूद भी वो उनके गीत गायन को रिकॉर्ड नहीं कर सके. खुद रेशमा ने उनसे ‘पधारो म्हारे देश’ गीत रिकॉर्ड करने को कहा था.
केसी मालू कहते हैं, “हमने राजस्थान की लोक गायकी और पारम्परिक गीतों की कोई चार हज़ार रिकॉर्डिंग की हैं मगर हमें आज अफ़सोस है हम रेशमा के सुर रिकॉर्ड नहीं कर सके. उनकी रेकॉर्डिग के बिना हमारा संकलन अधूरा सा लगता है.”
अरसे पहले ये नामवर गायिका अपने परिजनों के साथ जोधपुर आईं तो उनके साथ रेशमा के जेठ भी थे. वे रेशमा की भूरि-भूरि प्रंशसा कर रहे थे.
उन्होंने बताया, ” रेशमा बहुत बड़ी गुलकार हैं मगर घर-परिवार में छोटे-बड़े का अदब करना कभी नहीं भूलतीं.”
उनके जेठ ने बताया कि उनके घर में जीवन, रस्मों-रिवाज़ और व्यवहार वैसा है जैसा राजस्थान में रहते था.
संगीत से जुड़े श्री मालू कहते हैं रेशमा अपने गांव से बहुत लगाव रखती थीं. वे बताते हैं, “उस वक्त उनका गांव सड़क से नहीं जुड़ा था. रेशमा को इसका बहुत दर्द था. उनकी इस बात को सरकार तक पहुंचाया और सड़क बन गई तो रेशमा बहुत खुश हुईं.”
रेशमा अब नहीं रहीं. दमादम मस्त कलंदर सुनाकर वो चली गईं. आखिरी बार जब रेशमा ने जयपुर में ‘लम्बी जुदाई’ सुनाया तो कौन जानता था कि ये जुदाई बहुत लम्बी होने वाली है, इतनी लंबी कि फिर न मिले.
रेशमा न सही मगर फिज़ा में बिखरे उनके बोल उनकी मौजूदगी की गवाही देते रहेंगे.
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