उदयपुर, शिल्पग्राम उत्सव के समापन अवसर पर मुख्य रंगमंच पर कार्यक्रम ‘‘माटी के रंग’’ की शरूआत कचरे खां मांगणियार के गायन से हुई इसके बाद हिमाचल का नाटी पेश किया गया। इस अवसर पर मणिपुर का पुंग चोलम में नर्तकों की तारतम्यता व पुंग वादन श्रेष्ठ बन सकी। मणिपुर के ही कलाकारों ने स्टिक डांस में तीन लकड़ियों को संतुलन के साथ उछाल कर दर्शकों को लुभाया।
कार्यक्रम में गुजरात का सिद्दि धमाल तथा फोक सिम्फनी झंकार प्रमुख आकर्षण रहा। लोक वाद्य मुगरवान, मसीण्डो, ताशा की थाप पर शंख ध्वनि के साथ ‘‘शोबिला हे शो बिला…’’ गीत पर अफ्रीकी मूल के सिद्दि कलाकारों ने अपनी थिरकन तथा भाव भंगिमाओं से दर्शकों को न केवल रिझाया वरन उनहे अपने साथ थिरकाया भी। समापन पर ही देश की माटी से जुड़े लोक वाद्यों की सिम्फनी ‘झंकार’ ने कला प्रेमियों के कानों में लोक संगीत के सुर ताल संगम से रूबरू करवाया। समापन अवसर पर ही पाइका, भपंग, कालबेलिया की प्रस्तुति दर्शनीय बन सकी वहीं उत्तर प्रदेश का मयूर नृत्य कार्यक्रम की मोहक प्रस्तुति रही।
इससे पूर्व दस दिवसीय उत्सव के अंतिम दिन शिल्पग्रा परिसर में लोगों का मानो सैलाब सा आ गया। दोपहर स ेले कर देर शाम तक शहरवासियों का रेला मानो शिल्पग्राम में निकल पड़ा। लोगों ने आखिरी दिन भी खूब खरीददारी की तथा मेले का आनन्द उठाया।
संस्कृति मंत्री श्रीमती चन्द्रेश कुमारी कटोच ने कहा कि कला और संस्कृति से देश में एकजुटता को बढ़ावा मिलता है। यह बात उन्होंने रविवार शाम पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित राष्ट्रीय हस्त शिल्प एवं लोक कला उत्सव ‘‘शिल्पग्राम उत्सव-2012’’ के समापन अवसर पर कही। दस दिवसीय उत्सव के समापन अवसर पर शिल्पकारों ने कलात्मक वस्तुओं की दिल खोल कर बिक्री की वहीं रंगमंच पर लोक कलाकारों की धमाल से दर्शक व कला प्रेमी झूम उठे। इस अवसर पर लोक वाद्य यंत्रों की सिम्फनी में तार वाद्य, फूँक वाद्य, ताल वाद्यों ने अपने सुर ताल के संगम से दर्शकों को थिरकाया।
समापन पर ही श्री दशोरा ने उत्सव को सफल बनाने में योगदान देने वाले जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, नगर विकास प्रन्यास, नगर परिषद्, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, एक्सिस बैंक, आई.डी.बी.आई. बैंक इत्यादि के प्रति आभार प्रदर्शित किया। इस अवसर पर शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती निलीमा सुखाड़िया भी मौजूद थी।