विलुप्त कलाओं ने रंग जमाया, बिन्दोरी ने गैर का आभास कराया
उदयपुर, हवाला गांव के ग्रामीण कला परिसर शिल्पग्राम में आयोजित तीन दिवसीय ‘‘कला मेला’’ शनिवार लोक वाद्य ‘‘बम’’ की ढमक से हुआ। इस अवसर पर दर्शकों को विलुप्त कला शैलियाँ देखने का मौका तो मिला ही साथ ही कई दुर्लभ वाद्य यंत्र भी देखने को मिले।
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, राजस्थान सरकार के कला, साहित्य, संस्कृति, एवं पुरातत्व विभाग तथा राजस्थान साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘‘कला मेला’’ की शुरूआत स्कूली बालकों द्वारा मेवात का चर्म लोक वाद्य ‘‘बम’’ वादन किया। कार्यक्रम की शुरूआत झालावाड़ के बिन्दोरी नृत्य से हुई। जिसमें कलाकारों ने डफड़े की थाप पर हाथ में डंडे ले कर नर्तन किया। नृत्य में नर्तकों ने विभिन्न संरचनाएँ बनाई। इसके बाद ढाक वादन ने कला रसिकों का ध्यान खींचा। मंथर गति के डमरूनुमा वाद्य के स्वर दर्शकों को रास आये वहीं इस साज के साथ कलाकारों ने लोक गायन सुनाया।
कार्यक्रम में ही घोसुण्डा के मिर्जा अकबर बेग व उनके साथियों ने लोक नाट्य तुर्रा कलंगी अखाड़े को जीवन्त बनाया। नृत्य, संगीत और नाट्य के अनूठे मिश्रण वाली इस शैली में कलाकारों ने शौर्य की गाथा प्रस्तुत की। कार्यक्रम में कामडिय़ा गीत लोगों द्वारा पसंद किया गया। इस प्रस्तुति में कलाकारों द्वारा निर्मित सारंगी विशेष आकर्षण का केन्द्र रही।
तीन दिवसीय मेले में पारंपरिक व्यंजनों में लोगों को लाल चावल की राब, रागी माल्ट, मिस्सी दलिया, रागी वडे, सामा उपमा, मल्टीग्रेन टिक्कड़, सामा टिक्की, मोठ स्प्राउट सलाद, मिक्स स्प्राउट सलाद का स्वाद आगंतुको ने चखा।