सलमान ख़ान में मुझे तीन आदमी नज़र आते हैं या आज की ज़ुबान में कहें तो तीन कैमियो का मिश्रण.
वह बिना किसी जतन के ब्लॉकबस्टर फ़िल्में देते हैं. ऐसा लगता है कि लोग उन्हें चाहते हैं और आलोचक तक उनकी सफलता में कमी निकालने में असहाय महसूस करते हैं.
अमिताभ बच्चन या नसीरुद्दीन शाह अभिनय कर सकते हैं, जबकि सलमान जो हैं उसी के लिए जाने जाते हैं.
वो अपनी सहजता में उतने ही पूरे दिखते हैं, जितना रहमान या इल्लै राजा अपनी प्रतिभा के साथ. फिर भी वो सफल हैं.
धर्माचार्य बने पत्रकार
एक दूसरे सलमान हैं: टीवी कार्यक्रम ‘बिग बॉस’ वाले सलमान. वो बड़े भाई की भूमिका निभाते हैं, जो समझदार है और कॉमन सेंस वाला होस्ट है और उनकी मौजूदगी से ही कार्यक्रम चल जाता है.
इसमें ज़्यादातर अभिनेता दूसरे दर्जे के हैं जो पहले दर्जे का होना चाहते हैं या ऐसा जताते हैं. सलमान दूसरे दर्जे के हैं और ऐसे ही रहकर ख़ुश हैं.
तीसरे सलमान वो खुद हैं: एक प्यारा आदमी जो एक चैरिटी चलाता है, अर्जुन कपूर को कई किलो वजन कम कर स्टार बनने के लिए मनाता है और एक ऐसा आदमी जो अब भी इंसान है, जिसकी सीमाएं हैं.
बुधवार को सलमान पर आए फ़ैसले से बॉलीवुड और मीडिया बावला सा हो गया और हर छोटा-मोटा वकील और पत्रकार धर्माचार्य की तरह उपदेश देने लगा.
पीड़ित के परिवार की प्रतिक्रिया यह थी कि, न्याय तो ठीक है, लेकिन मुआवज़ा मिलता तो बेहतर रहता. एक स्तर पर तो फ़ैसले के साथ मामला शांत हो गया, लेकिन दूसरी ओर इससे नई मुश्किलों का पिटारा खुलने की आशंका है.
क़ानून पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है, लेकिन लगता है कि फ़ैसले से कुछ लोग संतुष्ट नहीं हैं. ऐसा लग रहा है कि जैसे यह कहानी ठीक तरीक़े से आगे नहीं बढ़ पाई.
महज़ स्टार नहीं
पहली समस्या तो मामले के इतना लंबा चलने से है. अगर राजनीति में एक हफ़्ता लंबा समय है तो क़ानूनी मामलों में एक दशक अनंतकाल जैसा है.
मैं मानता हूं कि इसमें थोड़ा पाखंड है. मुझे नहीं लगता कि फ़ुटपाथ पर जीने और मरने वाले पीड़ित और उसके परिवार के बारे में किसी ने थोड़ी देर को सोचा भी होगा.
अब जब इंसाफ़ हो चुका है, सलमान न सिर्फ़ ख़बरों में हैं बल्कि चिंता भी उन्हीं की जा रही है.
आप उन्हें एक अमीर बिगड़ा हुआ स्टार कहकर ख़ारिज़ नहीं कर सकते, जो अपनी लंबी ‘जवानी’ के बावजूद पचास के क़रीब पहुंचता जा रहा है.
वो एक परिपक्व आदमी हैं और उन्हें अपनी ज़िंदगी को लेकर कुछ पछतावा तो ज़रूर ही होगा. ज़ेल से उनका करियर मोटे तौर पर ख़त्म ही हो जाएगा. पांच साल में वह बॉलीवुड की याद बनकर रह जाएंगे, जिनकी जगह स्क्रीन का कोई अन्य कम चमकदार पहलवान ले लेगा.
आपको अहसास होता है कि वर्ग विश्लेषण से कुछ नहीं होगा. लोग उनके चाहने वाले हैं. कई बार तो उन लोगों को भी उनमें कुछ दमदार नज़र आता है जो मानते हैं कि वो एक ख़राब अभिनेता हैं.
ऐसा लगता है कि एक दशक लंबी चली सुनवाई के दौरान वो कुछ परिपक्व हुए हैं और लोगों में भी उनके प्रति प्रेम बढ़ा है. अगर दुर्घटना के कुछ ही महीनों के अंदर मुक़दमा चलता और फ़ैसला होता तो सलमान के लिए रोने वाले काफ़ी कम होते.
तब वह सिर्फ़ एक स्टार होते न कि जनता के बीच के एक लेजेंड, जो कि वो अब हैं.
भुलाए नहीं जाएंगे
मैं ज़रा एक ऐसी बात बताऊं जिसमें बॉलीवुड के रंग तो हैं ही, लेकिन यह उससे कहीं बढ़कर है. यह नैतिक मरम्मत (ethical repair) का विचार है.
नैतिक मरम्मत एक ऐसी क्रिया है जिसमें अपराधी अपने अपराध का पश्चाताप करता है और उस परिवार के लिए कुछ करता है जिसका उसने नुक़्सान किया है.
मैं ख़ैरात की नहीं बल्कि असली योगदान की बात कर रहा हूँ जिसमें दरअसल सलमान फुटपाथ पर रहने वालों के लिए कुछ करते हैं, समाजसेवा के लिए नहीं बल्कि सचमुच इंसानियत के नाते, वंचित समुदाय के लिए.
यह एक ऐसी शहरी घटना है जिस पर बॉलीवुड की कई पटकथाएं आधारित रही हैं. मुझे लगता है कि सलमान ख़ान में कुछ है जो इसके काबिल है
मुझे उम्मीद है कि यह कोई ऐसी पटकथा नहीं बनेगी जिसे उनके प्रशंसकों पर बम की तरह फेंका जाएगा.
लेकिन मुझे लगता है कि सलमान खान की कहानी अभी ख़त्म नहीं होने जा रही. वो हमारे अंदर इस क़दर हिस्से बन चुके हैं कि उन्हें आसानी से नहीं भुलाया जा सकता.