भारत के 66वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने धर्म को टकराव की वजह नहीं बनाने पर जोर दिया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि अलग-अलग समुदायों के बीच ‘सहनशीलता’ और सद्भाव की भावना की हिफाजत ‘बेहद सावधानी और मुस्तैदी’ से किए जाने की जरूरत है। उन्होंने महात्मा गांधी का कथन याद दिलाते हुए कहा कि धर्म एकता की ताकत है। हम इसे टकराव का कारण नहीं बना सकते।
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान लोकतंत्र की पवित्र पुस्तक है। यह ऐसे भारत के सामाजिक-आर्थिक बदलाव का पथप्रदर्शक है, जिसने प्राचीन काल से ही बहुलता का सम्मान किया है, सहनशीलता का पक्ष लिया है और अलग-अलग समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा दिया है। प्रणब ने मोदी सरकार की ओर से कानून बनाने के लिए लिए जा रहे ऑर्डिनेस पर चिंता जताते हुए कहा है कि संसद के अंदर बातचीत कर ही कानून पास होने चाहिए।
अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर राष्ट्रपति ने कहा कि 2015 उम्मीदों का साल है। उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2014-15 की पहली दोनों तिमाहियों में पांच प्रतिशत से अधिक की विकास दर की प्राप्ति, 7-8 प्रतिशत की उच्च विकास दर की दिशा में शुरुआती बदलाव के स्वस्थ संकेत हैं।
उन्होंने कहा, मतदाता ने अपना कार्य पूरा कर दिया है। अब यह निर्वाचित हुए लोगों का दायित्व है कि वे इस भरोसे का सम्मान करें। यह मत एक स्वच्छ, कुशल, कारगर, लैंगिक संवेदनायुक्त, पारदर्शी, जवाबदेह तथा नागरिक अनुकूल शासन के लिए था।