सोमवार से भारत में मुसलमानों ने रोज़े रखने शुरू कर दिए हैं लेकिन सोशल मीडिया में एक बार फिर इस बात पर बहस छिड़ गई है कि इस पवित्र महीने को रमज़ान कहा जाए या रमदान.
भारत में पहले तो इसे रमज़ान कहा जाता था, लेकिन पिछले कुछ साल से कुछ लोग इसे रमदान कहने लगे हैं. आख़िर इसकी वजह क्या है?
इंडियन काउंसिल फ़ॉर वर्ल्ड अफ़ेयर्स में सीनियर रिसर्च फ़ेलो डॉक्टर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं कि यह केवल उच्चारण का फ़र्क़ है.
उनके अनुसार, ”अरबी भाषा में ‘ज़्वाद’ अक्षर का स्वर अंग्रेज़ी के ‘ज़ेड’ के बजाए ‘डीएच’ की संयुक्त ध्वनि होता है. इसीलिए अरबी में इसे रमदान कहते हैं जबकि उर्दू में आमतौर पर इसे रमज़ान कहते हैं.”
सवाल यह है कि आख़िर पिछले कुछ सालों से ही यह फ़र्क़ क्यों दिख रहा है.
डॉक्टर रहमान कहते हैं कि यह भारत और सऊदी अरब से बीच बढ़ते सांस्कृतिक संबंधों का नतीजा है.
सऊदी अरब का असर
उनके अनुसार भारत से अब ज़्यादा से ज़्यादा लोग अरब जा रहे हैं और वहां से लौटने के बाद वहां की बोलचाल, वेशभूषा और वहां का रहन-सहन भारत में लागू करने की कोशिश कर रहे हैं.
अजमेर शरीफ़ स्थित ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के गद्दीनशीन सैय्यद सरवर चिश्ती भी कहते हैं कि यह केवल अरबी और उर्दू भाषा के कुछ अक्षरों के उच्चारण का फ़र्क़ है.
उनके अनुसार भारत उपमहाद्वीप में तो रमज़ान ही कहा जाता रहा है. लेकिन उन्होंने भी माना कि पिछले कुछ वर्षों में रमदान शब्द के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी हुई है.
सरवर चिश्ती कहते हैं, ”भारत और सऊदी अरब के बढ़ते रिश्ते और भारत में मदरसों के ज़रिए सऊदी अरब के बढ़ते प्रभाव के कारण ऐसा हो रहा है.”
ये बहस न केवल भारत में बल्कि पाकिस्तान में भी छिड़ी हुई है.
पाकिस्तान के जाने माने कार्टूनिस्ट साबिर नज़र ने एक कार्टून बनाया है, जिसमें अरबी वेशभूषा में एक आदमी तोते को सिखा रहा है कि ये रमदान है, रमज़ान नहीं.