जयपुर। राज्य सरकार बीते चार साल में 15 लाख से अधिक प्रशिक्षित बेरोजगारों से शिक्षक योग्यता परीक्षा के नाम पर 76 करोड़ रूपए से अधिक वसूल चुकी है, लेकिन अब तक नौकरी एक को भी नहीं दी।
शिक्षा विभाग ने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से 2011 और 2012 में दो बार राजस्थान टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (आरटेट) आयोजित करवाया। वर्ष 2013 में फिर परीक्षा के लिए आवेदन भरवा लिए, लेकिन परीक्षा करवाई नहीं।
इन तीनों ही परीक्षाओं में 15 लाख से अधिक बीएड और बीएसटीसी योग्यताधारी अभ्यर्थियों ने आवेदन किए, लेकिन पहली दो परीक्षाएं सरकारी ढिलाई और अधिकारियों की लापरवाही के कारण विवादित हो चुकी हैं और तीसरी आयोजित ही नहीं हुई है।
सूचना के अधिकार के तहत राजस्थान उच्च न्यायालय के एडवोकेट संदीप कलवानिया ने हाल में बोर्ड से ये जानकारी मांगी। उन्होंने बोर्ड से पूछा कि आखिर तीन परीक्षाओं के नाम पर कितना पैसा वसूला गया। कलवानिया का कहना है कि तीनों ही परीक्षाओं का मकसद आज तक पूरा नहीं हुआ। ऎसे में सरकार को तुरंत सभी अभ्यर्थियों को उनकी ओर से भरी गई आवेदन की राशि लौटा देनी चाहिए।
रीट के नियम स्पष्ट नहीं
राज्य सरकार ने आरटेट को बंद कर अब रिक्रूटमेंट कम एलिजिबलिटी टेस्ट (रीट) का प्रावधान कर दिया है। इस व्यवस्था की घोष्ाणा को करीब आठ माह बीत चुके हैं। अब तक इसके नियम स्पष्ट नहीं किए गए हैं।
पीड़ा ऎसी: पैसा गया और समय भी
दौसा जिले के भंडारेज की रहने वाली प्रेमलता कुमावत ने बताया कि वर्ष 2010 में बीए किया। वर्ष 2011 में बीएड। इसके बाद टेट की तैयारी के लिए जयपुर आकर कोचिंग की। पहले टेट के दोनों चरणों के लिए परीक्षा ली गई, शुल्क भी वसूला गया और सफल होने पर प्रमाणपत्र भी दिया गया, जिसकी वैधता 7 साल थी।
कुछ ही माह में सरकार ने स्पष्ट किया कि बीएड किए हुए अभ्यर्थी टेट के प्रथम लेवल के योग्य नहीं होंगे। इससे पूरी फीस बेकार गई और प्रमाण-पत्र धूल खा रहा है।
दोबारा टेट दी तो आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया और 55 प्रतिशत अंक आने पर पास कर दिया गया। फिर नया नियम बताया गया कि आरक्षण पर असमंजस रहेगा। मामला कोर्ट में गया। इसके बाद फिर से तीसरी बार टेट का आवेदन भर दिया। अब परीक्षा रद्द कर रीट का प्रावधान कर दिया गया है। अब इसका भी क्या भरोसा?