पोस्ट न्यूज़ । ए आई सी सी में उच्च पद पर स्थित सूत्रों का कहना है कि ए आई सी सी महाधिवेशन के बाद राहुल गांधी के निजी पसंदीदा तथा आंकडों के खेल के माहिर नेता का पत्ता कटना तय है।
ए आई सी सी महासचिव सी पी जोशी ९ राज्यों में प्रभारी हैं, जो राहुल गांधी द्वारा स्वयं घोषित इस मंशा के विरूद्घ है कि एक महासचिव एक ही राज्य का प्रभारी होगा ताकि वह उस राज्य के प्रति न्याय कर सके जिसकी वह देखभाल कर रहा है।
सी पी जोशी के प्रभार के आधीन ७ उत्तर पूर्वी राज्यों में से कांग्रेस छ: राज्यों में सत्ता गंवा चुकी है। सातवां राज्य मिजोरम है जहां इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। एक समय उत्तर पूर्व पर शासन करने वाली कांग्रेस हाल में हुए चुनावों में त्रिपुरा तथा नागालैंड में शून्य अंक पाकर आज साफ हो चुकी है। उनके प्रभार में दो अन्य राज्य बिहार तथा पश्चिम बंगाल हैं। बिहार में राज्य पी सी सी अध्यक्ष अशोक चौधरी सहित चार विधायक पार्टी छोडकर जद (यू) में शामिल हो चुके हैं। गत दो दिनों में दो जिला अध्यक्ष भी कांग्रेस छोड गये हैं।
सी पी जोशी को राहुल के नजदीक माना जाता है। कम्प्यूटर के आंकडों के विश्लेषण में वे दक्ष हैं। माना जाता है कि इससे वे राहुल को संतुष्ट कर देते हैं कि अधिक चिंता की आवश्यकता नहीं है क्योंकि पार्टी को लगभग उतने ही मत मिल रहे हैं जितने पहले मिला करते थे। लेकिन वह ये बताना भूल जाते हैं कि ये मत सीटों में क्यों नहीं बदल रहे हैं।
इन राज्यों के कांग्रेसियों ने कभी यह शिकायत करने का प्रयास नहीं किया कि जोशी को पार्टी के लोगों से मिलना पसंद नहीं है, वे उन क्षेत्रों का दौरा करने के प्रति अरूचि रखते हैं जिसके वे प्रभारी हैं तथा उनका रूख रूखा तथा अवज्ञा पूर्ण है जो पार्टी के लोगों को निराश कर देता है और डांटे जाने के डर से पार्टी कार्यकर्ता उनसे दुबारा नहीं मिलना चाहते।
राजस्थान के एक वरिष्ठ ब्राह्मण नेता के रूप में वे राजस्थान के मुख्यमंत्री पद में बहुत रूचि रखते थे और रखते हैं। उन्हें आशा है कि राहुल गांधी से उनकी निकटता उन्हें राज्य का शीर्ष पद दिलवा देगी। उन्होंने अशोक गहलोत से गठजोड किया है जो राज्य के शीर्ष पद के एक और दावेदार हैं। यह दोनों सचिन पायलट का हटना सुनिश्चित करने के लिए मिल कर कार्य कर रहे हैं।
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जो रहस्य बना हुआ है वह ये कि राहुल गांधी ने जोशी से अभी तक वे कई राज्य छीने क्यों नहीं है जिनके वे प्रभारी हैं, जब कि खुद उनके निर्णय के अनुसार एक व्यक्ति के पास एक राज्य होना चाहिये। पार्टी के लोग कहते हैं कि वे उलझन में हैं क्योंकि उन्होंने उन सभी राज्यों को बर्बाद कर दिया है जिन्हें वे संभाल रहे हैं और उत्तर पूर्व में वे परिणाम नहीं दिला पाए हैं। उत्तर पूर्व में निर्वाचन के गत चक्र में मणिपुर को पार्टी के हाथ से फिसल जाने देने के लिये उनकी कडी आलोचना हुई थी क्योंकि उन्होंने मौके पर रहने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये कोई प्रयास नहीं किये थे कि पार्टी अपनी स्वयं की सरकार बनाए। इस बार मेघालय में यही दोहराया गया।
राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद कई ए आई सी सी महा सचिवों से उनके राज्य वापस ले लिये गए थे लेकिन आश्चर्यजनक रूप से सी पी जोशी के मामले में राहुल ने अपने ही निर्देश की अनदेखी कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि उत्तर पूर्व को संभालने के तरीके तथा जिस तरीके से पार्टी कई राज्यों में शून्य के स्तर पर पहुंच गई है उसको लेकर पार्टी के भीतर बहुत अधिक आलोचना हो रही है।
इस दशा में राहुल भी दोष मुत्त* नहीं रहते क्योंकि सूत्रों के अनुसार ममता बनर्जी ने भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिये त्रिपुरा में कांग्रेस से गठबंधन की पेशकश की थी। लेकिन ज्ञात हुआ है कि कांग्रेस नेतृत्व ने इसे अस्वीकार कर दिया। जो स्पष्ट नहीं है वह ये कि क्या ऐसा राहुल के खुद के विवेक से किया गया था या इसमें सी पी जोशी की सलाह का हिस्सा भी था। चाहे जो रहा हो, उत्तर पूर्व के नेता आज जिस खराब दशा में पार्टी स्वयं को पा रही है उसके लिये सी पी जोशी को दोष देने में संकोच नहीं कर रहे हैं। और शायद अब समय आ गया है कि राहुल गांधी उन राज्यों सहित जिनके मुखिया सी पी जोशी हैं, कई राज्यों में सुधार के लिये कदम उठाएं।
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