प्रचार सामग्री बेचने वालों का धंधा ठप

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A worker looks at a Congress party flag carrying a picture of Gandhi next to flags of India's BJP inside an election campaigning material workshop on the outskirts of the western Indian city of Ahmedabad
आयोग की सख्ती से नहीं दिख रहा चुनावी माहौल
उदयपुर। एक समय था, जब चुनाव आते ही गली-मोहल्लों में माहौल देखने लायक होता था। घरों की छतों पर पार्टियों के झंडे लगे हुए होते थे, दुकानों के बाहर प्रत्याशियों के पोस्टर टंगे होते थे। शोरगुल की बातें करें, तो थोड़े-थोड़े समय में ही लाउड स्पीकरों पर बजते हुए गीत और उनके बीच में प्रत्याशियों के वोट डालने की अपील करते कार्यकर्ता दिखाई पड़ते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। न तो झंड़े-पोस्टर दिखाई पड़ रहे है और ना ही चुनावी लाउड स्पीकर का शोर गुल सुनाई पड़ रहा है।
लोकसभा चुनाव के लिए मतदान दिवस में छह दिन शेष रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग की ऐसी सख्ती है कि शहर में पार्टियों के झंडे-बैनर ढूंढे से भी नहीं मिल रहे। चुनाव आयोग ने खर्च सीमा तो 70 लाख कर दी है, लेकिन प्रत्याशी इस डर से कि कही खर्च ज्यादा ना हो जाए, हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। शहर के मुख्य मार्गों पर पोस्टर दिख भी जाए, लेकिन गांवों में तो यह भी नहीं है।
धंधा ठप्प : शहर में प्रचार सामग्री बेचने वालों की मानें, तो उनका व्यापार पहले के मुकाबले दस फीसदी रह गया है। आलम यह है कि सबसे ज्यादा वोटिंग करने वाली कच्ची बस्तियां और मुस्लिम इलाकों में भी प्रचार सामग्री नजर नहीं आ रही है। कहीं कोई सभा या प्रत्याशी के जनसंपर्क का कार्यक्रम होता है, तो जरूर झंडे बैनर लग जाते हैं, लेकिन इसके अलावा कहीं कुछ नहीं दिख रहा। बापूबाजार और मंडी में प्रचार सामग्री बेचने वाले दुकानदारों का कहना है कि चुनाव आयोग की सख्ती ने प्रचार सामग्री का व्यापार लगभग खत्म कर दिया है। पहले माल कम पड़ता था। अब यह हालत है कि जो माल मंगवा लिया है, वही नहीं निकल रहा है। इनके साथ ही कागज़ के पोस्टर व स्टीकर छापने वाले प्रिंटिंग प्रेस वालों के पास भी चुनाव का काम एक चौथाई रह गया है।
कांग्रेस 25 फीसदी तो भाजपा 75 फीसदी :
यूं तो प्रचार सामग्री बेचने वालों का धंधा काम चल रहा है। लेकिन जो बिक्री हो रही है, उसमें भाजपा की प्रचार सामग्री की मांग ज्यादा है। उदयपुर शहर में प्रचार सामग्री से जुड़े लोगों की माने तो आज भाजपा की खरीद जहां 75 फीसदी है, तो कांग्रेस की 25 फीसदी के आसपास है। भाजपा की प्रचार सामग्री में वही सामान बिक रहा है, जिसमे नरेंद्र मोदी के नाम व फोटो है।
राज्यपाल ने बताई थी शोक सभा :
पिछले दिनों चुनाव आयोग के एक कार्यक्रम में चुनाव आयोग की सख्ती को लेकर राज्य की राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने कहा था कि अब लोकतंत्र का उत्सव शोक सभा में तब्दील हो गया है।

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