सोलहवीं लोकसभा में भारत के संसदीय इतिहास में सबसे अधिक महिलाएं सासंद होंगी. लेकिन दूसरी तरफ़ इस सदन में वैसे सासंदों की तादाद बढ़ी है जो दसवीं पास भी नहीं हैं.
ग्रेजुएट प्रतिनिधियो की संख्या भी पहले के मुक़बाले कम हुई है और युवा वोटरों की बड़ी तादाद का बार बार हवाला दिए जाने के वाजवूद उम्र के लिहाज़ से सोलहवीं लोकसभा पहले से अधिक बुज़ुर्ग होगी.
पीआरएस लेजिस्लेटीव रिसर्च ने सभी 543 लोकसभा सीटों की प्रोफ़ाइल का अध्यन करके एक लिस्ट जारी है कि भारत की नई संसद कैसी दिखाई देगी.
इस अध्ययन के अनुसार इस बार के चुनाव में कुल ऐसी 61 सीटें हैं जहां से महिलाएं जीती हैं.
अगर प्रतिशत के लिहाज़ से देखें तो महिलाओं की संख्या लगभग 11.3 फ़ीसद है.
हालांकि 15वीं लोकसभा के मुक़ाबले देखें तो महिला सांसदों की संख्या में महज़ तीन सीटों की बढ़ोतरी हुई है. पिछली लोकसभा में 58 महिला सांसद थीं.
बुज़ुर्ग होती संसद
1952 में होने वाले पहले लोकसभा चुनावों में महिलाओं की संख्या पाँच फ़ीसदी थी. जो 1984 के आठवें लोकसभा चुनावों में लगातार जारी उतार-चढ़ाव के बाद आठ प्रतिशत रह गई . 2009 के क्लिक करें 15वीं लोकसभा में यह संख्या बढ़कर 11 फ़ीसदी तक पहुंची. 16वीं लोकसभा चुनावों में महिला सांसदों की संख्या 11.3 फ़ीसद है.
देश में युवा वोटरों की बड़ी तादाद होने की बात बार बार कही गई लेकिन इसके बावजूद इस बार वैसे सांसदों की संख्या अधिक है जिनकी उम्र 55 साल के पार है.
सोलहवीं लोकसभा में 543 सांसदों में से 253 सांसद ऐसे हैं जिनकी उम्र 55 साल से ज़्यादा है. प्रतिशत के हिसाब से ये करीब 47 फ़ीसदी के आसपास है.
15वीं लोकसभा में 55 साल से अधिक उम्र के सांसदों की संख्या 43 प्रतिशत थी.
सोलहवीं लोकसभा में आए मात्र 71 सांसदों की उम्र 40 से कम है यानी क़रीब 13 प्रतिशत है.
शिक्षा और व्यवसाय
इस बार चुनावी फ़तह हासिल करने वालों में महज़ 75 फ़ीसदी सांसद ही ऐसे हैं जिनके पास स्नातक की डिग्री है. पिछले सदन में ये फ़ीसद 79 था.
वैसे सांसद जिन्होंने दसवीं भी पास नहीं की है, उनका प्रतिशत पिछली बार के तीन फ़ीसदी के मुक़ाबले बढ़कर 13 फ़ीसदी तक पहुंच गया है. वहीं जनता के वैसे प्रतिनिधि जो मैट्रिक पास हैं, उनकी संख्या 17 फ़ीसद से घटकर 10 प्रतिशत को पहुंच गई है.
हालांकि डॉक्टरेट की उपाधि रखने वाले सांसदों की संख्या पहले से तीन प्रतिशत बढ़ी है.
पिछली लोकसभा से तुलनात्मक अध्ययन करने पर ये बात भी सामने आती है कि इस बार वैसे सांसदों का फ़ीसद पहले के मुक़ाबले (15) अधिक (20) है जिन्होंने कारोबार को अपनी रोज़ी रोटी का ज़रिया बताया है.
खेती को अपना प्राथमिक व्यवसाय बताने वालों की फ़ीसद पिछली बार (27) जितना ही है.
वकालत का पेशा
पंद्रहवी लोकसभा में 28 फ़ीसदी सांसदों ने राजनीति और सोशल वर्क को अपना व्यवसाय बताया था. इस बार ये 24 प्रतिशत है.
पहली लोकसभा में 36 फ़ीसदी संसद सदस्यों का पेशा वकालत था, इसके बाद 22 प्रतिशत सांसदों का प्राथमिक व्यवसाय कृषि था और केवल 12 फ़ीसदी सांसद कारोबार से जुड़े थे.
यह काबिल-ए-ग़ौर है कि 16वीं में एक फ़ीसदी सांसद पत्रकारिता और लेखन से जुड़े हैं, जबकि तीन फ़ीसदी सांसद अध्यापक और शिक्षाविद हैं. तो वहीं चार फ़ीसदी सांसद मेडिकल क्षेत्र से जुड़े हुए हैं.
16वीं लोकसभा में वकालत के पेशे से जुड़े सांसदों की संख्या सात प्रतिशत है. सिविल, पुलिस और सैन्य सेवा से जुड़े सांसदों की संख्या दो फ़ीसदी के आसपास है.