उदयपुर। मेवाड़ की छात्र राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाकर एक दशक तक विजय पताका फहराने वाली छात्र संघर्ष समिति (सीएसएस) ने एक योजना के तहत गत वर्ष हुए चुनावों में भागीदारी न करके एबीवीपी को समर्थन दे दिया था। हमेशा से ही मौका परस्त रही सीएसएस के जिस संगठन को सैंकड़ों छात्रों ने मेहनत कर खड़ा किया उसे उसके कर्ताधर्ताओं ने एक ही झटके में अपने स्वार्थ को लेकर एबीवीपी में विलय कर दिया। विलय का प्रमुख कारण यह था कि सीएसएस के पदाधिकारी एबीवीपी व भाजपा के युवा मण्डलों में अपने पद चाहते थे लेकिन विलय के बाद भी पदाधिकारियों में से किसी को भी कोई पद नहीं दिया गया तो वह अब पुन: छात्रसंघ चुनावों में अपनी ताल ठोकने की तैयारी कर रही है। हालांकि सीएसएस चुनाव लड़ेगी या नहीं इस पर अब भी संशय बना हुआ है।
सुविवि को दिए चार अध्यक्ष: संघ पृष्ठभूमि वाले कुछ नाराज छात्र नेताओं ने छात्र संघर्ष समिति बनाई। सीएसएस का उद्भव 2004 में एबीवीपी से ही हुआ था। सीएसएस का पहला चुनाव रवि शर्मा ने लड़ा और वे छात्रसंघ अध्यक्ष बने। छात्र हितों के कार्य कर इस संगठन में विश्वविद्यालय में अपनी पकड़ मजबूत की और दिलीप जोशी, परमवीर सिंह चुण्डावत, अमित पालीवाल के रूप में तीन अध्यक्ष विजयी हुए। सीएसएस का वजूद खत्म होने के बाद और पदाधिकारियों द्वारा अपने स्वार्थ लोलुपता में लिए निर्णय के बाद परमवीर सिंह और अमित पालीवाल अब अलग संगठनों से जुड़ गए है।
करार टूटा तो फिर उतरी मैदान में: गत वर्ष खेरवाड़ा विधायक नाना लाल अहारी के पुत्र सोनू अहारी ने चुनाव में खड़ा होकर सारे समीकरण खत्म कर दिए थे। सुखाडिय़ा युनिवर्सिटी के इतिहास में इतने धनबल का उपयोग नहीं हुआ जो पिछले साल देखा गया। एक दशक से अजेय रही छात्र संघर्ष समिति ने भी नतमस्तक होकर एबीवीपी को समर्थन दे दिया था। छात्रसंघर्ष समिति के आयोजक कटारिया विरेाधी गुट से माने जाते रहे है, जो पूर्व अध्यक्ष पंकज बोराणा के समय खुलकर सामने आई थी, बडगांव सरपंच कैलाश शर्मा अपने पुत्र दीपक शर्मा को एबीवीपी से चुनाव लड़वाना चाहते थे और कटारिया बोराणा के नाम पर अड़ गए। हालांकि उस समय दीपक शर्मा को हार मिली थी, लेकिन छात्र संघर्ष समिति का हमेशा के लिए बीजेपी व एबीवीपी से विरोध हो गया।
ब्राह्मण व परिवार के सदस्य ही प्रत्याशी: परमवीर सिंह को छोड़ दे तो छात्र संघर्ष समिति ने आज तक ब्राह्मण व परिवार के सदस्यों को ही छात्रसंघ अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया और इस बार भी इसी तरह उम्मीदवार को मैदान में उतारना तय किया गया है। चुनाव के लिए गौरव शर्मा ने भी कैम्पेनिंग भी शुरू कर दी है, जो गत वर्ष भी सीएसएस की ओर से अध्यक्ष पद के दावेदार थे लेकिन एनवक्त पर एबीवीपी में विलय कर सीएसएस ने चुनाव नहीं लड़ा था। सीएसएस में छात्र नेताओं की बात करें तो इस संगठन के प्रवक्ता पद पर रहे निखिल रांका की छात्रों में अच्छी पेठ है लेकिन ब्राह्मण गुट का ही प्रत्याशी उतारना इस संगठन की प्रमुखता है।
॥यह बात सच है कि सालभर हमारी ओर से कोई स्टेटमेंट नहीं आया, लेकिन छात्र हितों के लिए दोनो ही राष्ट्रीय संगठनों ने भी कुछ हीं किया। हम फिर से पूरी ताकत के साथ उतरेंगे और जीतेंगे।
– अशोक शर्मा, सदस्य,संरक्षक मण्डल
॥सीएसएस आज तक छात्रहित के जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ती रही है, एबीवीपी ने उसी हिसाब से काम करने का वादा किया था। चुनावी एजेंडा भी हमारा लेकर चुनाव लडा इसलिए समझौता किया था, लेकिन वादा खिलाफी हुई जिस कारण फिर से चुनाव लडेंगे।
– सूर्य प्रकाश सुहालका, मुख्य संयोजक
॥एबीवीपी ने हमसे वादा खिलाफी की। छात्र हितों के लिए किसी तरह के काम वर्षभर में नहीं हुए।
– दिलीप जोशी, पूर्व अध्यक्ष सीएसएस