Udaipur Post. किडनेपिंग जानते होंगे आप। किसी का पहरण कर लिया उठा कर ले गए और फिर परिजनों से वसूली की जाती है। ये बड़े जधन्य अपराध में आता है और कानून में इसकी बड़ी सजा भी मुक़र्रर है। लेकिन एक किडनेपिंग और होती है जिसको ना अपराध में साबित कर सकते ना ही कानून में इसकी कोई सजा है। परिजनों से इस किडनेपिंग में भी जम कर वसूली की जाती है।
वो होती है मेडिकल किडनेपिंग जी हाँ मेडिकल किडनेपिंग। इसमें जो किडनेप किया जाता है वो मरीज होता है तो मरीज को या उसके परिजनों को नहीं पता चलता की मरीज कैसे किडनेप हो गया बस परिजन को डरा डरा लाखों रुपया लिया जाता है औ वो भी लीगल। ये कैसे होता है ये में आपको आगे समझाउगा पहले इसका एक जीता जगता उदाहरण देखिये राजस्थान के उदयपुर में पारस जेके हॉस्पिटल का ।
एक व्यक्ति जिसकी सुगर के अलावा कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं है वो पारस जेके हॉस्पिटल में चेकअप के लिए आता है और भारती कर लिया जाता है। फिर शुरू होता है इन हॉस्पिटल वालों का तांडव आखिरकार परिजनों से ये हॉस्पिटल 10 – 11 लाख उगाह लेता है इसके बावजूद नहीं छोड़ता और आखिरकार उस व्यक्ति की जान चली जाती है परिजन लाखों रूपये से भी गये और अपने परिवार की मुखिया का मौत।
घटना की पूरी जानकारी देता हूँ। जैसा की मृतक के परिजनों ने बताया।
सुरेश बागड़ी जिनकी उम्र करीब 50 55 होगी खुद गाडी चलाकर उदयपुर के पारस जेके हॉस्पिटल गए। हॉस्पिटल वालों ने भर्ती कर लिया। फिर शुरू हुआ नार्मल इलाज। जहाँ सुरेश बागड़ी के मेडिकल हिस्ट्री के नाम पर शुगर थी लेकिन हॉस्पिटल में भारती होने के बाद उन्हें कोरोना भी हो गया। हार्ट अटैक भी हो गया किडनी डैमेज की शिकायत भी हो गयी ब्रेन डेमेज का खतरा भी हो गया। यादाश्त भी कमज़ोर होने लगी दिखाना भी कम हो गया ऑक्सीजन की कमी भी हो गयी। ये स्साब हॉस्पिटल वालों ने परिजनों बताया या डराया। मै इसको डराना ही कहुगा। क्यूँ इसका खुलासा भी आगे करुगा। तो सुरेश बागड़ी एक अच्छा खासा व्यक्ति खुद कार ड्राइव करके अस्पताल आता है और हॉस्पिटल द्वारा उसको भर्ती या किडनेप यहाँ किडनेप कहना ही सही होगा उसको किडनेप कर लिया जाता है और उस व्यक्ति के परिजन जब जब हॉस्पिटल से लेजाने की बात करते है छुट्टी दिलाने की बात करते है तो ये लोग इस तरह डराते है मानो दुनिया की साड़ी खतरनाक बीमारियाँ आपके उस परिजन में है। अगर आपने उसको वहां से हटाया हटाते ही जो मरीज है उसकी मौत हो जायेगी। परिजन मजबूर हो जाता है अपने उस मरीजन के आगे और डॉक्टरों की इस वसूली के खेल में आजाता और हज़ारों लाखों रुपये जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी ये लोग निकलवाते है।
एसा ही कुछ सुरेश बागड़ी के किस में हुआ लगता है। जांच पता नहीं इसकी सही ढंग से होगी या नहीं। मेरा उनके परिजनों और बाकी उनके समाज वालों से कहना चाहुगा आपने आवाज़ उठाई है आप इसको लड़िये इनकी इस वसूली वाले राज से लड़िये। आपके पिटा जी का इन्हों शुरू से क्या इलाज किया क्या ट्रीटमेंट किया इसको शुरू से लाइन ऑफ़ ट्रीटमेंट निकलवाइये इसकी जांच करवाइए इसमें सिद्ध हो जाएगा की ये एक मेडिकल किडनेपिंग थी।
परिजनों ने एउर समाज के लोगों ने पारस जेके हॉस्पिटल में हंगामा भी किया पुलिस भी आई आगे कारवाई होती है या नहीं होती है ये आगे पता चलेगा।
मै मेडिकल किडनेपिंग जो शब्द का रहा हूँ वो बिलकुल सही है जैसा की स्वर्रश बागड़ी जी के साथ हुआ वैसा कई लोगों के साथ होता है। अगर आप अपने घर के किसी बड़े को इमरजेंसी में छोटी मोती शिकायत पर भी पारस जेके या उसके जैसे किसी मल्टी सुपर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल में लगाये बस समझ लो आपका काम हो गया आपके परिजन को ये लोग चेक करने के पहले भारती करेगें और अगले दिन जब तक आपकी आँख खुलेगी आप होश में आओगे तब तक वो आपके पुरे परिवार का यानी मरीज के परिवार का एसेसमेंट निकाल चुके होंगे उन्होंने अंदाजा लगा लिया होगा की इस मरीज से कितना रुपया निकाला जा सकता है। बस उस टार्गेट से इनका खेल शुरू होगा। हॉस्पिटल बिलकुल पांच सितारा होटल टैप होता है। आपके बैठने के लिए एक लिफ्ट के पास छोटी सी जगह होती है और आपका मरीज जो किडनेप कर लिया गया है वो जेल में यानी आईसीयू मै पहुच चुका होता है। आपका बस एक ही काम होता है लिफ्ट के पास लगी कुर्सियों पर बैठ कर इंतज़ार करना सिर्फ इन्तार्ज़ार करना मरीज के ठीक होने कानाही मरीज के नाम से आपके नाम पुकारे जाने का और इसलिए नहीं कि आप को आकर कहेगें कि आपका मरीज ठीक हो गया आप से आकर कहा जाएगा कि जाइए निचे काउंटर पर जाइए और इतना पैसा जमा करवाइए। जो हज़ारों से बढ़ते हुए लाखों में पहुचेगी।
हाँ काउंसलिंग काउंसलिंग के बारे में भूल गया काउंसलिंग के नाम पर आपको डराने का काम किया जाता गई। बात होती है की आपकी काउंसलिंग की या नहीं। काउंसलिंग भी इनकी बड़ी अजीब होती है। प्रशानिक संभालने वाली कोई महिला जो बड़े होटल के मेनेजर जैसी दिखती है वो आपको बड़े मेडिकल बीमारियों के नाम बताती है आपक कुछ समझ नहीं आता आप सोचत हो या दो दिन में एसा क्या होगया मै ज़रा सी तकलीफ को लेकर अ[पनी मान या अपने पिटा क लेकर आया था आखिर एसा क्या होगया की भर्ती हो गए वार्ड में उसके बाद आईसीयू में भी चले गए और अब ये बड़ी बड़ी बिमारी भी हो गयी। इससे पहले के आप कोई डिसीजन ले आपके मरीज को आईसी यु में ऑक्सीजन भी चढ़ जाता है और और हज़ारों रुपये के इंजेक्शन भी लग जाते है। इस बिच आपको इस बात का आभास हो की मुझे यहाँ से ले जाना चाहए उसके पहले तो वेंटिलेटर की डिमांड आजाती है आपको ना चाहते हुए भी हाँ कहना पड़ता है और आपके जीते जागते चलते फिरते आये व्यक्ति को वेंटिलेटर पर चदा दिया जाता है। आप बेबस उसी लिफ्ट के पास कुर्सी पर रात दिन कसमसाते रहते है। दिन हफ्ते में तब्दील हो जाते है जब उनको लगता है की आपके सब्र का बाँध टूट रहा है बस तब वो आपको छोड़ते है लेकिन तब तक आप लाखों रुपये बहा चुके होते है। आगे मै आपको पूरी आगे की कहानी भी बताउगा की मेडिकल किडनेपिंग में क्या क्या होता है फिलहाल इतना ही यहीं तक इस न्यूज़ का अगला भाग देखना मत भूलना .
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