कुछ फिल्मे प्रेम आधारित होती है और कुछ फिल्मे प्यार की होती है तो यह फ़िल्म प्यार की कहानी है,
लेकिन जब भी लेखक निर्देशक जटिलताओं के साध प्यार की कहानी पेश करते है तो अत्यधिक संवेदनाओं (इमोशन्स),के चक्कर मे अवसाद(डिप्रेशन) परोस देते है.
गुलज़ार साहब का एक गाना है “सिर्फ एहसास है इसे रूह से महसूस करो प्यार को छू के कोई नाम न दो” यह पक्तियां बरबस ही याद आ गई फ़िल्म देखते हुए .
सुजीत सरकार विकी डोनर, मद्रास कैफे, पीकू, पिंक के नाम ज़हन में दौड़ने लगते है वही लेखिका जूही चतुर्वेदी विकी डोनर, पीकू, मद्रास कैफे लिख चुकी है. दोनो की जोड़ी भी शानदार रही है. तो इस बार भी उम्मीद एक विशेष फ़िल्म की थी जो कि पूरी तो होती है लेकिन धीमी गति से और धीमी गति की होती है उसके दर्शक सिमट जाते है एक वर्ग विशेष तक ही फ़िल्म सिमट जाती है
कहानी :- एक लड़का डेन(वरुण) बहुत ही लापरवाह होने के साथ उसे यह भी नही कि वह होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा है और इन्टरशिप के दौरान वह एक पांच सितारा होटल पहुचता है लेकिन अनुशासन हीनता ओर लापरवाही के चलते उसे वहा से बार बार निकाल दिए जाने की वार्निंग मिलती है.
वही उसकी साथी स्टूडेंट शिवली(बनिता संधू) डेन के बिल्कुल विपरीत है वह अनुशासित और कर्मठ है अपने काम को लेकर, विपरीत स्वभाव के दो लोग साथ होते है तो प्रेम पनपना स्वभाविक ही है, दोनों के बीच प्रेम की बहुत महीन लाइन खिच जाती है और एक दिन शिवली हादसे का शिकार हो जाती है और वह कोमा में चली जाती है फिर डेन की ज़िंदगी मे प्यार की जगह महसूस होती है और वह अपने प्यार को पाने के लिए क्या क्या त्याग, समर्पण, और कोशिशें करता है यह पक्ष भी लाजवाब है
कभी कभी ज्यादा संवेदनाए(इमोशनल)होना अवसाद(डिप्रेशन)की तरफ ले जाते है बस रह रह कर यही महसूस होता रहा फ़िल्म के दूसरे भाग में साथ ही फ़िल्म गुज़ारिश की याद ताजा होती रही. लेकिन जिस खूबसूरती से सुजीत ने प्यारकी कहानी को दिखया है वह लाजवाब है. फ़िल्म को रफ्तार धीमी लगती है लेकिन तीर निशाने पर पहुच जाता है. शांतनु मोइत्रा का पार्श्व संगीत भी धीमे धीमे दिल तक पहुचता है .
बुरा पक्ष
फ़िल्म केवल कुछ नोजवानो को पसन्द आएगी क्योकि रफ्तार ओर पटकथा बहुत ही धीमा है फ़िल्म का बजट फ़िल्म निकाल लेगी ओर जैसी धीमी रफ्तार की फ़िल्म है वेसे ही धीमे धीमे जनता को खिंचेगी
*मेरी तरफ से फ़िल्म को 3 स्टार*
कलाकार :- वरूण धवन, बनिता संधू, गीतांजलि राव,
संगीत :-शांतनू मोएत्रा
अबधि :- 1 घण्टा 55 मिंट
समीक्षक -इदरीस खत्री
यह विडियो देखिये
https://www.youtube.com/watch?v=5LDOfHn5e7U&t=22s