इन विधानसभा चुनावों में पहली बार चुनाव आयोग ने ‘इनमें से कोई नहीं’ यानी ‘नोटा’ का प्रावधान किया था जिसका असर छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग के इलाकों के साथ-साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में देखा गया.
लेकिन विश्लेषकों को लगता है कि बस्तर संभाग के विधानसभा क्षेत्रों में ‘नोटा’ का रुझान काफी चौंका देने वाला है.
अब तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, दंतेवाड़ा सीट पर सबसे ज्यादा 9677 मत ‘नोटा’ के पक्ष में पड़े. दंतेवाड़ा के बाद नक्सल प्रभावित बीजापुर में भी 7179 लोगों ने नोटा का चुनाव किया.
दंतेवाड़ा में भाजपा के मौजूदा विधायक भीमा मंडावी का कड़ा मुकाबला दर्भा घाटी में हुए माओवादी हमले में मारे गए कांग्रेस के वरिष्ट नेता और सलवा जुडूम के जन्मदाता महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा से था.
इस सीट पर सबसे ज़्यादा नोटा का इस्तेमाल होना इस बात के संकेत हैं कि एक तबका ऐसा भी है जो दोनों ही प्रमुख दलों के साथ साथ चुनाव में शामिल सभी दलों को नकार रहा है.
ये सब तब जबकि बस्तर के जंगली इलाकों में नोटा के बारे में ढंग से प्रचार नहीं हो पाया. कई इलाके ऐसे रहे हैं जहाँ चुनाव अधिकारी पहुँच नहीं पाए और ना ही मतदान में तैनात कर्मचारियों को ही इसके बारे में प्रशिक्षण दिया गया.
सलवा जुडूम को नकारा
कुछ समीक्षकों का कहना है कि दंतेवाड़ा में नोटा पर इतना रुझान इस बात का भी संकेत है कि लोगों ने सलवा जुडूम को नकार दिया है. वहीँ समीक्षकों का एक तबका ऐसा भी है जिसका मानना है कि नोटा का इस्तेमाल ज़्यादातर नक्सली विचारधारा से सहानुभूति रखने वालों ने किया है.
बस्तर में ही दूसरे नक्सल प्रभावित इलाके, जैसे बीजापुर में 7179 मत नोटा के पक्ष में पड़ने की बात से भी इस मान्यता को बल मिलता है. हालांकि चुनाव के अंतिम आंकड़ों के उपलब्ध होने पर ही बताया जा सकता है कि नोटा का रुझान शहरी इलाकों में ज़्यादा रहा या फिर जंगल के क्षेत्रों में.
बस्तर में नक्सल प्रभावित सीट नारायणपुर में भी नोटा के पक्ष में 6 हज़ार से ज्यादा मत पड़े. उसी तरह बस्तर विधान सभा सीट पर भी पांच हज़ार से ज्यादा मत पड़े.
यही हाल चित्रकोट, कोंटा, भानुप्रतापपुर और अंतागढ़ विधानसभा सीटों का भी रहा जहाँ नोटा के पक्ष में पांच हज़ार के आसपास मत पड़े.
हालांकि बस्तर में नोटा के लिए जागरूकता उतनी नहीं हो पाई, दूसरे राज्यों में जैसे कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में भी नोटा के पक्ष में वोट पड़े.