तुलसी को अवैध हिरासत में रखने वाली और उसके एनकाउंटर में शामिल थी दूसरी टीम, आजम को झूठे चोरी के केस में फंसाकर तुलसी को पेशी पर ले जाया गया, जहां कर दिया उसका एनकाउंटर
– नारीश्वर –
उदयपुर। सोहराब व तुलसी प्रजापति के फर्जी मुठभेड़ की असली कहानी दूसरी ही है, जो बताया गया वो सच नहीं है। सच पर पर्दा डाला गया। इन दोनों का एनकाउंटर महज इसलिए कर दिया गया, क्योंकि गुजरात और उदयपुर के पुलिस अधिकारी सरकार से अवार्ड चाहते थे। अवार्ड के लिए इन अधिकारियों की फाइलें होम मिनिस्ट्री को भी भेजी गई, लेकिन इसी बीच दोनों ही एनकाउंटर फर्जी होने की कहानी सामने गई, जिसमें ये सभी अधिकारी फंस गए और पिछले सात साल से जेल में बंद है।
अंडरवल्र्ड और पुलिस अधिकारियों से मिली अन्दनी जानकारी के अनुसार इन दोनों फर्जी एनकाउंटर की कहानी की शुरुआत ३१ दिसंबर, २००४ की सुबह साढ़े ११ बजे उदयपुर में हाथीपोल क्षेत्र से हुई थी। यहां तुलसी, आजम और सिल्वेस्टर ने हमीद लाला की गोली मार कर हत्या कर दी थी। इस दौरान दूसरी बाइक पर सोहराब भी था। हत्या के पीछे कारण था यहां के मार्बल उद्यमियों में खौफ पैदा करना, क्योंकि आजम और उसके साथियों ने मुणवास स्थित मरियम मार्बल के मालिक अली हुसैन से १८ लाख की फिरौती मांगी थी, लेकिन अली हुसैन और हमीद लाला दोस्त थे। इस कारण हमीद लाला बीच में आ गया, जिससे आजम और हमीद लाला के बीच वर्चस्व को लेकर खींचतान शुरू हो गई। इसीलिए आजम ने तुलसी और सोहराब के साथ मिलकर हमीद लाला की हत्या कर दी। हालांकि हमीद लाला की हत्या के वक्त उसका भाणजा मोहम्मद रफीक चश्मदीद गवाह था, जिसने इन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाकर जहीर, रईस खडख़ड़, हनीफ उर्फ छक्का, शकील कालिया सहित अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दी थी। बाद में पुलिस को पता चला कि उक्त मामले में जिन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दी थी, वे लोग शामिल नहीं है। इसका पता भी इसलिए चला, क्योंकि सोहराब, आजम के सज्जननगर निवासी रिश्तेदार के यहां पर किराये से रहता था और हमीद लाला की हत्या हुई, उसी शाम आजम का भाई सज्जननगर की तरफ जा रहा था, जिसे पुलिस ने पकड़कर पूछताछ की, तो उसने सारी कहानी उगल दी, लेकिन तब तक तुलसी, सोहराब, आजम सहित अन्य आरोपी फरार हो चुके थे। हालांकि इस हत्याकांड के सभी आरोपी बाद में न्यायालय से बरी हो चुके हैं। इस हत्याकांड के बाद तुलसी और सोहराब ने सूरत में कपड़ा व्यवसायियों से फिरौती मांगी थी, जिनकी पहुंच वहां के राजनेता से थी। इसी दौरान वहां के सीनियर आईपीएस अधिकारी डीजी बंजारा को पता चला कि सोहराब और तुलसी आंध्रा में हैं। इस पर आंध्रा पुलिस के जरिये सोहराब, तुलसी और सोहराब की पत्नी कौसर बी को नवंबर, २००५ के अंतिम सप्ताह में आंध्रा के सांगली बस स्टैंड से पकड़कर गुजरात पुलिस अहमदाबाद लाई। यह जानकारी डीजी बंजारा ने उदयपुर के तत्कालीन एसपी दिनेश एमएन को दी, जिस पर एमएन वहां गए। बाद में एक टीम बनाई गई, जिसमें तत्कालीन प्रतापनगर थानाधिकारी अब्दुल रहमान, सब इंस्पेक्टर हिमांशुसिंह और श्यामसिंह को गुजरात भेजा गया। इस टीम ने गुजरात पुलिस के साथ मिलकर अहमदाबाद में सोहराब का २६ नवंबर, २००५ को एनकाउंटर कर दिया। इसी बीच कौसर बी की हत्या भी कर दी गई और तुलसी प्रजापति को उदयपुर पुलिस के हवाले कर दिया गया।
तुलसी की गिरफ्तारी की सच्ची कहानी : सोहराब और कौसर बी की हत्या के बाद तुलसी को गुजरात पुलिस ने उदयपुर पुलिस को सौंप दिया था। यहां लाकर तुलसी को हाथीपोल थाने में अवैध हिरासत में रखा गया। एक झूठी कहानी बनाई गई, जिसमें बताया गया कि तत्कालीन डिप्टी सुधीर जोशी, अंबामाता थानाधिकारी रणविजयसिंह और हाथीपोल थानाधिकारी भंवरसिंह हाड़ा ने तुलसी को भीलवाड़ा से गिरफ्तार किया। बाद में तुलसी को जेल भेज दिया गया, तब तुलसी ने स्थानीय वकील सलीम खान के जरिये कोर्ट में रिपोर्ट दी कि उदयपुर और गुजरात पुलिस से उसको खतरा है और उसका भी एनकाउंटर हो सकता है। उसने उसे मारने के चार तरीकों का जिक्र भी अदालत के सामने किया था, जिसमें से एक तरीके से बाद में उसे भगाकर गोली मार दी गई।
तुलसी से डर गई थी उदयपुर पुलिस : तुलसी काफी डेयरिंग और शार्प शूटर था। यह बात दिनेश एमएन भी जानते थे। उसने १४ साल की उम्र में पहला मर्डर किया था और उसके एनकाउंटर से पहले २४ साल की उम्र तक उसने दस मर्डर कर दिए थेे।
सारी हत्याएं उसने भरे चौराहे पर भीड़ के बीच की थी। उसके सरगना सोहराब और कौसर बी की मौत से वह बुरी तरह टूट चुका था और पूछताछ में पुलिस अधिकारियों के सामने ही वह सोहराब व कौसर बी को मारने वालों को जान से मार देने का प्रण करता था। तुलसी ने एक अधिकारी से कहा भी था कि अगर वह छूट गया, तो अन्ना (दिनेश एमएन) को मार देगा। तब उदयपुर पुलिस ने तुलसी का एनकाउंटर करने की तैयार की। तुलसी और आजम को २८ दिसंबर, २००६ को अहमदाबाद पेशी पर ले जाना था, लेकिन अंबामाता पुलिस ने आजम को स्कूटर चोरी के फर्जी मामले में प्रोडक्शन वारंट से गिरफ्तार कर लिया। इधर, पुलिसकर्मी युद्धवीर, करतार, दलपत और नारायणसिंह के साथ ट्रेन से तुलसी के डमी को अहमदाबाद भेजा गया, जिसे रास्ते से भागना बताया गया। इधर, तुलसी को उदयपुर पुलिस की दूसरी टीम गुजरात के साबरकांठा ले गई, जहां उसे जीप से उतारकर गोली मार दी गई। इस फर्जी एनकाउंटर में गुजरात के पुलिस अधिकारी भी शामिल थे। तुलसी के फर्जी एनकाउंटर के मामले में उदयपुर के पुलिसकर्मी युद्धवीर, करतार, दलपत और नारायणसिंह गुजरात की जेल में बंद हैं, जबकि ये लोग तुलसी के साथ थे ही नहीं।
दासोत को बचाने बन गए सरकारी गवाह : तुलसी के फर्जी एनकाउंटर मामले में खुद और सीनियर आईपीएस अधिकारी राजीव दासोत को बचाने के लिए तत्कालीन डिप्टी सुधीर जोशी, सीआई रणविजयसिंह और भंवरसिंह हाडा सीबीआई में सांठ-गांठ करके सरकारी गवाह बन गए। उन्होंने सीबीआई कोर्ट में हुए १६४ के बयान में बताया कि उन्होंने जो कुछ भी किया, वह सब दिनेश एमएन के कहने पर किया था। सीबीआई को तुलसी को अवैध हिरासत में रखने, आजम को झूठे मामले में फंसाकर तुलसी के एनकाउंटर के षडय़ंत्र में शामिल के लिए इन तीनों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी थी, लेकिन मिलीभगत के कारण इन को सरकारी गवाह बना दिया गया। पता चला है कि काफी बड़ी धनराशि देने से ये लोग छूट पाए।
तुलसी के भतीजे को भी फंसा झूठा : सोहराब के एनकाउंटर के बाद जब तुलसी उदयपुर की जेल में था, तब उसका भतीजा कुंदन उसके एक दोस्त के साथ तुलसी से मिलने आया था। तुलसी ने कुंदन को सोहराब व कौसर बी के फर्जी एनकाउंटर की पूरी कहानी बता दी, जिससे यहां के पुलिस अधिकारियों को डर था कि बाद में कुंदन व उसका दोस्त उनके खिलाफ साक्ष्य न बन जाए। इसलिए वापस जाते समय सलूंबर पुलिस ने कुंदन और उसके साथी को फर्जी एनडीपीएस एक्ट में गिरफ्तार कर लिया। हालांकि बाद में जब तुलसी का एनकाउंटर हो चुका, तो उसके बाद कुंदन और उसका दोस्त इस केस से बरी हो गए।
संदेश : दबाव में आकर न करे गैर कानूनी काम
कुख्यात अपराधी सोहराब और तुलसी को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराने के मामले में न तो सुपारी देने वाला सामने आया, न ही सुपारी खाने वाला। षड्यंत्र रचने वाले अफसर भी अब तक बाहर ही है। लेकिन वे लोग अंदर धकेल दिए गए, जिन्होंने ऊपर के आदेशों की पालना करना अपना कर्तव्य समझा। इस पूरे प्रकरण से पुलिस फोर्स के लिए यह संदेश निकलकर सामने आता है कि वह किसी भी दबाव में आकर गैर कानूनी काम न करें। इस सबक को सदैव याद रखें।
-संपादक