उदयपुर. आर्य समाज उदयपुर का वेद प्रचार सप्ताह ज्ञान काण्ड, कर्म काण्ड और उपासना काण्ड इन तीनों का प्रतिपादन करते हैं वेद । वेदों का प्रचार व प्रसार उपनिषद् ब्राह्मण ग्रन्थ और योग सांख्य, न्याय, वैशेषिक मीमांसा व वेदान्त आदि दर्शन द्वारा ऋषियों ने किया। ये ऋषि परम्परा ब्रह्मा से प्रारम्भ होकर जैमिनी ऋषि तक अविच्छिन्न रही। तब तक सम्पूर्ण विश्व में वेद एवं सत्यविद्या का प्रचलन था। ये विचार आर्य समाज उदयपुर के वेद प्रचार सप्ताह में पं. ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने व्यक्त किये।
श्री शास्त्री ने अपने प्रवचन में कहा कि इस ऋषि परम्परा को पुनः जीवित करने का श्रेय महर्षि दयानन्द को जाता है। महर्षि दयानन्द ने नारा दिया – “वेदों की ओर लौटो”। वेद मानवमात्र के लिए उपयोगी ज्ञान का बीजरूप संकलन वेद है। ईश्वर का ज्ञान तो इससे भी कहीं अधिक व अनन्त है। ऋग्वेद में ज्ञानकाण्ड है, यजुर्वेद में कर्मकाण्ड तथा सामवेद में उपासनाकाण्ड है। ये तीनों ही काण्ड मानव जीवन हेतु अत्यन्त उपयोगी व आवश्यक है।
इससे पूर्व वीरेन्द्र शर्मा ने सपत्नीक यजमान के रूप में यज्ञ सम्पन्न किया। इन्द्रदेव पीयूष ने ईश्वर भक्ति के भजन से भक्तजनों को भक्तिरस से सराबोर किया।
ओइ्म, वेद और नमस्ते हैं भारतीय पद्धति
परमपिता परमात्मा का निजनाम ओइ्म है। उस ओइ्म का मानवमात्र के लिए संसार में जीवन जीने की नियमावली है वेद और भारतीयों का अपना अभिवादन है – नमस्ते। ये सन्देश ज्वलन्त कुमार शास्त्री ने हैप्पी होम सीनियर सैकण्ड्री स्कूल में छात्रों को दिया। शास्त्री आर्य समाज उदयपुर के वेद प्रचार सप्ताह के अन्तर्गत छात्रों को सम्बोधित कर रहे थे।
व्यक्ति विशेष के नाम से अभिवादन वैदिक तथा वास्तविक भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती है जो भावना, नम्रता व सदाचार नमस्ते में है वह अन्य अभिवादन के प्रचलित तरीकों में नहीं है। इसी प्रकार गीता, पुराण आदि सम्पूर्ण भारतीय धार्मिक विशेषता को पूर्णतः समाविष्ट नहीं कर पाते अतः ये ग्रन्थ हमारे धर्मग्रन्थ नहीं हैं। हमारे धर्मग्रन्थ वस्तुतः वेद हैं।
आर्य समाज के प्रधान सुरेशचन्द्र ने बताया कि यह कार्यक्रम निरन्तर 17 सितम्बर, 2017 रविवार तक संचालित होगा।