उदयपुर | राजनीतिक पार्टियों में बगावत के पीछे के कारणों को जानने के लिए जब राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान के विशेषज्ञों से चर्चा की, तो सामने आया कि बगावत करने वाले कुछ इनोसेंट जनप्रतिनिधियों को छोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर लोग ब्लैकमेलर्स या फिर लूजर्स होते हैं। ऐसे लोग अपने फायदे और निजी हितों की पूर्ति के लिए पॉलीटिक्स ज्वाइन करते हैं। कुछ समय की राजनीतिक सक्रियता के बाद ये लोग अपनी लालसा को पूरा करना चाहते हैं, लेकिन जब ऐसे लोगों को सफलता नहीं मिलती है तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आते हैं। राजनीति विज्ञान के अनुसार तीन तरह के बागी होते हैं। इनमें पहला, जिसको अपनी जीत का पक्का भरोसा होता है। दूसरा, जो अपनी पार्टी के प्रत्याशी को कमजोर करना चाहता है और तीसरा, वह जो लाभ का पद या धन लेकर बैठ जाता है, यह प्योर ब्लैकमेलिंग की श्रेणी में आता है। नगर निगम चुनाव में बगावत करने वाले भाजपा और कांग्रेस पार्टी के नेताओं को भी राजनीति विज्ञान के सूत्र के अनुसार तीन श्रेणियों में चिह्नित किया जा सकता है।
कल नामांकन वापसी के आखरी दिन 31 प्रत्याशियों ने नाम वापस ले लिए। इनमें भाजपा के 16 व कांग्रेस के 14 बागी शामिल हैं। इधर, चुनाव मैदान में भाजपा के चार और कांग्रेस के पांच बागी डटे हुए हैं।
बागी नंबर वन : इनमें वार्ड चार से कांग्रेस के बागी अजय पोरवाल जैसे नेता आते हैं, जिन्हें अपनी जीत का पूरा भरोसा है। ऐसे प्रत्याशी अत्यधिक आत्मविश्वास से भरे होते हैं। कई दफा ऐसे प्रत्याशियों को सफलता भी मिल जाती है, जैसे वल्लभनगर विधानसभा में भाजपा के बागी प्रत्याशी रणधीरसिंह भींडर निर्दलीय के रूप में उतरे और उन्हें सफलता मिली। यहां यह बताना भी जरूरी है कि श्री भींडर का चुनाव चिह्न क्रबल्लाञ्ज था और अजय पोरवाल का चुनाव चिह्न भी क्रबल्लाञ्ज है।
बागी नंबर टू : ऐसे बागी प्रत्याशी, जिन्हें यह तो पता होता है कि वह चुनाव नहीं जीतेंगे, लेकिन अपनी पार्टी के प्रत्याशी को नुकसान जरूर पहुंचा सकते हैं। राजनीति विज्ञान के अनुसार ऐसे प्रत्याशियों में भाजपा के वार्ड 33 से अशोक घरबड़ा, 42 से संतलाल अग्रवाल, 39 से मांगीलाल पूर्बिया, १९ से गिरीश वैष्णव। कांग्रेस में वार्ड 10 से गीता पालीवाल, 38 से रमा वैष्णव, 25 से चांदमल साहू, 34 से भगवतीलाल नैणावा आदि को शामिल किया जा सकता है।
बागी नंबर थ्री : ऐसे बागियों में दो तरह के लोग आते हैं, जो या तो दबाव के कारण नामांकन वापस ले लेते हैं या फिर पार्टी के बड़े नेताओं से सांठ-गांठ करके संगठन में पद या पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी से रुपया-पैसा लेकर बैठ जाते हैं। राजनीति विज्ञान के अनुसार ऐसे प्रत्याशियों में भाजपा से वार्ड दो के खूबीलाल पहाडिय़ा, चार से मदन, आठ से आभा आमेटा, 10 से दामोदर दिवाकर, 11 से विजय मेहता, दिनेश सोनी, 19 से भंवर जैन, 20 से शंभूसिंह देवड़ा, 22 से कनक जोशी, मोहन, यशवंत मेनारिया, 26 से लोकेश नागदा, 41 से विवेक सामर, 44 से सुशील देसरला, 47 से सिद्दिका, 49 से योवंतराज माहेश्वरी और कांग्रेस में वार्ड दो के किशन मेघवाल, चार के मुजीबुद्दीन, पांच से योगेश धाबाई, आठ से नूर बानो, नौ से कांता पालीवाल, 24 से आशा मालवीय, 26 से दिनेश राव, 37 से एनके जैकब, 38 से रजिया बानो, शकीला बानो, 39 से दीपक चौधरी, 46 से शाहिदा शेख, 48 से शब्बीर हुसैन और 55 से अरुण टांक आदि को शामिल किया जा सकता है।
एक्सपर्ट व्यू —–
पार्टी के लिए काम करने वाले नेता अपने काम का रिवार्ड चाहते हैं। उस रिवार्ड में उनकी चाहत होती है कि उन्हें चुनावों में टिकट मिले। जब मौका आता है तो ये स्वयं को एक्सपोज कर टिकट की मांग करते हैं और नहीं मिलने पर बागी खड़े हो जाते हैं। बागी तीन तरह के होते हैं। इनमें से एक वो, जिनको जीत का पक्का भरोसा होता है। दूसरे वो, जो अपनी पार्टी के प्रत्याशी को डेमेज करना चाहते हैं। तीसरे वो, जो लाभ का पद या रुपया लेकर संतुष्ट हो जाते हैं।
– संजय लोढ़ा, विभागाध्यक्ष, राजनीतिक विज्ञान विभाग, सुखाडिय़ा यूनिवरसिटी
बागी होना मानव स्वभाव है, जिसे अटेंशन सिकिंग बिहेवियर (ध्यान आकर्षण व्यवहार) कहा जाता है। चुनाव पूर्व राजनीतिक पार्टियों द्वारा जो पैनल बनाया जाता है। उसमें ये अपना नाम चलाते हैं। नाम चलने के साथ प्रचार शुरू कर देते हैं। अपने-आपको चुनाव लडऩे के अनुकूल मानना शुरू कर देते हैं, लेकिन जब ऐसे लोगों को टिकट नहीं मिलता तो हताश हो जाते हैं। हताशा, दो तरह की होती है, जो आक्रामकता और निराशा को जन्म देती है। आक्रामक लोग बागी होकर मैदान में उतर जाते हैं वहीं निराश लोग पद और धन लेकर बैठ जाते हैं।