उदयपुर | झीलों की नगरी में नगर निगम के चुनाव नवम्बर में है | और सच मानों तो इन महापौर और पार्षद के दावेदारों ने शहर भर में ऊधम मचा रखा है | चेन नहीं है इनको, बस एक बार भाईसाहब की कृपा बरस जाए यही जुगत दिन रात लगी रहती है | इस फेर में इन्हे अर्जुन की भांति सिर्फ भाईसाहब और महापौर की कुर्सी ही नज़र आती है | क्योंकि महापौर की कुर्सी का रास्ता भाईसाहब की “मेहर” से होकर ही जाता है, ये इन्हे अच्छे से पता है |
आचार संहिता लगाने की आनन फानन में नगर निगम महापौर धड़ाधड़ लोकार्पण पे लोकार्पण और उद्घाटन पर उदघाटन करवा रही है | शहर का विकास गया अभी फिलहाल तेल लेने लेकिन बस ये लोकार्पण और उदघाटन तो इनके हाथों हो जाए वर्ना इसका श्रेय आगामी बोर्ड के खाते में जुड़ जाएगा | खेर बात हम यहाँ इन लोकार्पण की नहीं कर रहे थे हम तो बात कर रहे थे थे महापौर की कुर्सी को लार टपकाती नज़रों से देखने वालों की | जरा इन लोकार्पण के किसी एक प्रोग्राम का जायजा लीजिये साहब आपको सारा माजरा समझ में आजायेगा |
अब तक शहर में भाजपा का बोर्ड ही बनता आया है और आने वाला बोर्ड भी भाजपा का ही होगा अगर जनता ने मौजूदा बोर्ड की कार्य शैली पर गुस्सा नहीं निकाला तो | वैसे विपक्ष में बैठी कांग्रेस को बोर्ड चाहिए भी नहीं क्यों कि इन्हे नगर निगम बोर्ड चलाने का अनुभव नहीं है, और हम उदयपुर वासी कोई एक्सपरिमेंट के जीव भी नहीं के अब इनको मौका देकर खुद पे कोई प्रयोग करवायेगें | तो बोर्ड शायद भाजपा का ही बनेगा और इस बात से भाजपा के पदाधिकारी कुछ हद तक आश्वस्त भी है | इस बार नगर निगम बोर्ड के लिए जनरल सीट है इसलिए कई महत्वाकांक्षी भाजपा नेताओं की लार टपकाती नज़र इस महापौर की कुर्सी पर जमी हुई है, और ये कुर्सी की लालच इनसे ना जाने क्या क्या करवा रही है |
अधिकाँश समारोह में मुख्य अतिथि हमारे मेवाड़ के कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया अरे अपने भाईसाहब होते है | और ये भी माना जाता है कि नगर निगम बोर्ड का महापौर वो ही नेता बनेगा जिस पर भाईसाहब की असीम कृपा होगी | और इस कृपा लेने के फेर में आजकल भाईसाहब के मजे हो रखे है | हर कार्यक्रम में ये महापौर के लड्डू भाईसाहब के आसपास इतने मंडरा रहे है कि भाई साहब एक नज़र कही घुमा ले तो ये महापौर कुर्सी के चहीते उस नज़र का पीछा करते हुए उस दिशा की हर वस्तु हर सुविधा को पलक झपकते ही भाईसाहब के चरणों में ले आते है | अरे इससे भी कमाल की बात तो ये है | स्व. भैरो सिंह साहब की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर राज्यपाल का कार्यक्रम तय था और उसमे भाईसाहब को तो होना ही था | इस कार्यक्रम में सबसे आगे पंक्ति में बैठने के लिए महापौर के दावेदारों में होडम होड़ मची हुई थी | और तो और कुछ महापौर के दावेदार तो दौड़ दौड़ के वो काम कर रहे थे जो काम एक आम छोटा कार्य कर्ता उसके जीवन भर करता है जैसे कुर्सियां उठा उठा कर लाना मालाएं इधर से उधर पहुचना | अतिथियों को पानी पिलाना | ये सारा काम भाईसाहब की नज़रों में आने के लिए हमारे महापौर के दावेदार कर रहे थे | खेर अपना क्या है अपने को भी देखना ही हे अपन तो जानते है | अभी ये पानी पिला रहे हे, कुर्सी उठा रहे है, मालाएं उठा रहे है, इनको पता है कि अगर महापौर बन गए तो इनके लिए ये काम पांच साल तक बाकी के लोगों को करने है और इन्हे अपनी मनमर्जी से राज काज सम्भालना है और शहर में ” पिक एंड चूज” की नीति अपनाते हुए काम करना है | अब ये मत पूछना कि “पिक एंड चूज” नीति क्या होती है | इस बारे में फिर कभी बात करेगें | फिलहाल तो इन महापौर के दावेदारों ने ऊधम मचा रखा है |
अच्छा इस पार्षदों के दावेदारों की बात करना तो भूल ही गया छोटे हे तो क्या हुआ साहब इसमे भी बोहत दम है | अपने वार्ड के मोदी से कम थोड़े हे ये पार्षद | भाई साहब सुबह उठते है तो कमसे काम २५ पार्षद के दावेदार भाईसाहब के धोग लगाने पहुंच जाते है | भाईसाहब भी सोचते होंगे यार किस मुसीबत में फंस गया | काम कुछ करत्ये नहीं बस २४ घंटे चापलूसी और जी हुजूरी के अलावा कोई काम नहीं | आखिर भाईसाहब ने दुनिया देखि है और आज इतना बड़ा कद बनाया है वो सिर्फ किसी कि जी हुजूरी करके नहीं बनाया अपने तजुर्बे और जनता में अपनी ऊँची छवि के दम पर बनाया है और | वैसे जनता को उम्मीद है कि इस बार भाईसाहब किसी काबिल आदमी को ही महापौर बनने का आशीर्वाद देंगे |
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