उदयपुर । नगर निगम के नये महापौर की कार्यप्रणाली को आमजन में सराहा जा रहा है, लेकिन अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ चलाए गए अभियान को सीमित करने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। यह दबाव पार्टी के भीतर से आ रहा है। सूत्रों ने बताया कि भाजपा के पिछले बोर्डों के दौरान किए गए अवैध निर्माणों तथा अतिक्रमणों पर चल रहे हथौड़ों ने उन पार्षदों तथा सर्वेयरों के लिए धर्मसंकट पैदा कर दिया है, जिन्होंने आंखे मूंदने की एवज में अच्छी खासी “दस्तूरी” प्राप्त कर ली थी। साथ ही उसका निर्धारित हिस्सा ऊपर तक भी पहुंचाया था।
पता चला है कि पूर्व पार्षद ऐसे मामलों को नजरअंदाज करने के लिए दबाव बना रहे हैं। इनमें तीन सौ से ऊपर वे मामले भी है, जिनके खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने पर शहर विधायक गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा में सवाल खड़ा किया था। हालांकि उसके बाद भी उन चिह्नित अतिक्रमण और अवैध निर्माणों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। उस समय रवीद्र श्रीमाली सभापति थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में कमिश्नर को एक सूची देकर कार्रवाई का निर्देश दिया था। बाद में कमिश्नर ने बताया कि एक सूची उनके पास आई जरूर है लेकिन उसका करना क्या है, यह नहीं बताया गया है। सूत्रों के अनुसार जो भी तोडफ़ोड़ की जा रही है वे सारे अतिक्रमण और अवैध निर्माण भाजपा के पिछले चार बोर्डों के कार्यकाल में ही हुए हैं। बहस इस बात पर चल रही है कि जिन्होंने हमें “चंदा” दिया और जो हमारे भरोसेमंद लोग या कार्यकर्ता है, उनके खिलाफ कार्रवाई विश्वासघात है। ऐसे में भाजपा के जनाधार को भारी नुकसान पहुंचेगा। पता चला है कि महापौर ने अब सारे सूचीबद्ध मामलों की छंटनी शुरू कर दी है। वे इन्हें नया क्रम दे रहे हैं। इसमें कोशिश यह है कि बड़े मामलों को पहले ले लिया जाए, हालांकि बड़े अवैध निर्माणों पर कार्रवाई में भी बड़ा संकट है। उनके ऊंचे रसुखात है। इसलिए पैंतरा यह तय किया गया है कि ऐसे मामलों को नियमित करने की अच्छी “शास्ती” वसूल की जाए ताकि आम लोगों में गलत संदेश न जाए। कुल मिलाकर यदि अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने का काम लगातार चलाया गया तो भी कम से कम दो बरस लग सकते है।
दबंग महापौर के खिलाफ उठ रहा विरोध
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